हिन्दी - संकेत &]
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ऋषि-प्रणाली
' हिन्दी-साहित्य-सस्सेलन प्रयाग; डी० पी० आई०, यू० पी० तथा
वी० पी० व बरार हाई स्कूल, इन्टरसीडियट बोड द्वारा स्वीकृत )
[ उदूं , सराठी, गुजराती आदि हिन्दुस्तानी भाषाओं में
अजुवाद आदि के स्वोधिकार स्वरक्षित हैं ]
( संशोधित तथा परिवद्धित संस्करण )
आधविष्कर्तो--
ऋषिलाल अग्रवाल
भूतपूर्व - अिंसिपल शीघ्र - लिपि - वर्ग -
हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग ।
प्रकाशक---
श्री विष्णु -आट - प्रेस, प्रयाग ।
विजया-दशमी
निवेदन
इस संशोधित और परिवद्धिंत संस्करण को निकालने में कुछ
रदोबदल करने की आवश्यकता पड़ी है जैसे क्रिया का पाठ पूरा
का पूरा बदल दिया गया है । अब संशोधित नियमों से क्रियायें
बढ़ी सरलता से लिखी और पढ़ी जा सकती हैं। संधि का एक
नया पाठ भी पढ़ाना पड़ा है।
यद्यपि मैंने इसको स्वोहृ पूर्ण बनाने में कोई बात उठा
नहीं रखी फिर भी पुस्तक के शीघ्रता से छुपने के कारण
संभवत: बहुत स्री गलतियाँ रह गई द्वोंगी | इसके लिये
पाठकों से क्षमा-प्रार्थी हूँ। उनसे यह भी नम्र निवेदन हे कि
यदि उन्हें इस पुस्तक के किसी भी अंक में कोई त्रुटि जेचे तो वे
अपनी आलोचना लिखकर मेरे पास अवश्य भेजने का कष्ट
करें। में उनका बड़ा अनुमद्वीत दोझूँगा और अगले संस्करण को
निकालते समय उधका पूरा विचार रक्खूँगा। शेष कृपा ।
ऋषि कुदी | हि | हु
विजया दृशसी १९४७ “भरकाशक
अस्तावना
यदि कोई संभव को असम्भव और असम्भव को संभव कर
सकता है तो वह परमात्मा ही हैं। बगेर उनकी अलुमह या
कृपा के क्रिसी काय का सुचारु-रूप से पूरा होना तो दूर रद्द
उसका आरंध भी नहीं हो सकता। इसलिए कोटानिकोट
घन्यवाद है उस परमपिता परमात्मा को जिसको हो असीम
कृपा से आज मुझे इस “प्रस्तावता” को लिखने का अवसर
मिंला है।
एक अच्च्री दिन्दी-शार्ट-हैंड प्रणाली का आविष्कार कर
प्रचलित करने का विचार मेरे हृदय में पहले-पहल सन् १६२२
ईं० में उठा था जब कि मैं “लीग ननरीमेंम्बरेंसर” के. दफ्तर में
हेड-कलक के पद् पर काम कर रहा था। उस समय अंग्रज़ी
शा्ट-दैंड में मेशे अच्छी गति थी ओर निमी तोर पर कॉश्वित
में बैठकर कोंसिज् के सदस्यों की स्पीचें भी लिखता था। में
यह अक्सर सोचता था कि आखिर जब विदेशी आषा में दी
हुईं वक्त ता कुछ नियमों के आधार पर सरलतापू्वक लिखी
जा सकती है तो कोई वनह नहीं कि भरप्र-प्रयत्न किये जाने
पर हिन्दी तथा डिंदुस्वानी भाषा में भो कोई ऐसी प्रणाली का
आविष्कार न हो सके जिपके द्वारा हिन्दुस्तान- को मुख्य २
भाषाओं में दी गई वक्तताओं को लिखा अथवा पढ़ा जा
सके | पर उस समय इस विचार को इस वजह से काय-रूप
में परिणित न कर सका थाकि पहले तो झुमेे समय कम था
ओर दूसरे इसको माँग भी न थी ।
[ ४ ]
उस समय में सरकारी नोकरी में था और ययपि
उससे मुझे आसदनी भी अच्छी थी परन्तु फिर भी व्यापार
की तरफ अधिक क्ुकाव दोने के कारण में अक्सर यही
सोचता था कि ऐसा कौन सा काम किया ज्ञाय जिससे नोऋुरी
से पीछा छूटे। इसी समय हसारा दफ्तर इलाहाबाद से
उठकर लखनऊ चला गया। लखनऊ मेरी बृद्धा माता जी को
” ज्ञरा भी पसंद न भआाया। उन्हें पुरय सल्षिज्ञा गंगा का तट
छोड़कर लखनऊ में रहना बहुत ही कष्टकर प्रतीत हुआ। वह्द
अक्सर कहती थीं कि भगवान ने अन्त में कहाँ से कहाँ लाकर
पटका । इन सब बातों ने हमारे विचार 'को और भी बदल
दिया ओर हम ८ मद्दीने की छुट्टी लेकर इल्वाह्वाद लौट भआये ।
यह सन् १६२४ की बात है।
अब दम सोचने लगे कि क्या करना चाहिए जिससे
लखनऊ न ॒त्ोटना पड़े। आखिर मुख्तारशिप और रेविन्यू-
एजेन्टी को परीक्षा देने का निश्वय किया और इश्वर की कृपा
से उसमें सफल्तता भी मिली परन्तु उस समय असहयोग
आन्दोलन जोरों पर था और लोग अदालत का वहिष्कार कर
रहे थे, इसलिए उधर भी जाना उचित न सममा।
व्यवसाय की तरफ लड़कपन से द्वी कुकाव था, उसने फिर
जोर मारा और इसी ससय एक घतिष्ट सम्बन्धी के कहने-
सुनने से मैंने एक प्रेस की स्थापना की और दैेश्वर की कृपा से
कुछ ही दिलों में यह प्रेस प्रान्त के अच्छे प्रेसों में गिना जाने
लगा परन्तु अभाग्य या साग्यवश वहाँ से भी हटना पढ़ा।
इसी समय हिंदी-शीघ्र-लिपि की पुकार सुनाई पड़ी, फिर क्या
था, एक सरल-सुबोध तथा सचोक्ष पूण प्रणाली के आविष्कार में
लग गया और उसके फल स्वरूप यह पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।
[ ४ ||
काम प्रारंध करने के पूर्व कुद्न समय इस बात के विचार
करने में व्यतीद हुआ ऊक्वि पुस्तक किस ढंग से लिखी जाय ।
एक बिलकुल नई प्रणाली चालू की जाय या जो अंग्रेजी की
चालू प्रणालियाँ हैं उनमें से किस्ती एक को आधार मान कर
आगे बढ़ा जाय | अन्त में यही निश्चय किया कि जो १००
बष का समय अंग्र जी-शा्ट-हैंड की प्रशाल्षी को एक निश्चित
स्थान पर ल्ञाने में लगा है उसे व्यर्थ फेंकना कोई बुद्धिमानी न
होगी और इसलिए अंग्रेज़ी की किसी प्रणाली को ही आधार
मान कर काम किया जाय |
इस समय अंमग्रज़ी में प्रस्तुत चार प्रशालियाँ अधिक चल रही
हैं. १, पिटमेनस २. सल्लोन डुप्ज्ञायन ३. प्रेग और ४. डटन।
इनमें पिटमेंनस की ही ऐसी प्रणाली है जिसके जाननेवाले
अधिकाधिक संख्या में मिलेंगे और मेरे विचार से यह प्रणात्नी
भी अधिक सरल तथा सम्पूर्ण है । इसके वर्योच्षर भी हिन्दी
के वर्णात्तरों से अधिक मिलते-जुलते हैं। अतः मैंने यही
निश्चय क्या कि पिटमेनस प्रणाली के ही आधार पर पुस्तक
तैयार की जाय परन्तु सलोन-डुप्लायन की सात्ना-प्रणाल्ी कुछ
सुगम सालूम पड़ी, इसलिए वर्णों के साथ ही साथ मात्रा लगाने की
अणाली को भी अपने नियमों में सुविधानुसार समावेश करते गये |
इस तरह पिटमेनस ओर स्लोन डुप्लायन की सभी अच्छी बातों
को ध्यान में रखते हुए बिलझुल ही एक नई प्रणाज्ञी का आदि-
चब्कार करने में सफल हुआ हूँ जिसके द्वारा हिन्दी-माषा तथा
उसकी व्याकरण के सभी आवश्यक अंगों की पूर्ति की गई
जो कुद्ध भी सद्दायता हमने अम्रेद्जी प्रणालियों से ली है
उसके लिये दसे स्वर्गीय सर आइज़क पिटमेन और स्लोन-
हुप्लायन साहव के हृदय से कृतश्ष हैं
[8 )
पुरतक की सबसे बड़ी विशेषता यद्द है कि हमारी प्रणाली से
हिन्दी शाट्टे हैंड सीखने वाला उद् , दिन्दी या हिन्दुस्तानी भाषा
में बोज्ी हुई वक्त ताओों को तो अच्छे तौर पर लिख ही लेगा
पर यदि वह अंग्रेजी शार्ट-हैंड को सीखना चाहे तो उसे
पिटमैनस् या स्लोन-डुप्लायन की पुस्तकों में दिये हुए केवल
शब्द-चिन्ह, वाक्यांश, संक्षिप्त तथा विशेष चिन्द् को
सीखना पड़ेगा। इनके सीखने से वह हिन्दी, उदू तथा
हिन्दुस्तानी के अलावा अंग्रेज़ी का भी एक कुशल शीघ्र-लिपि-
लेखक हो सकता है | उसे अंग्रेज़ी के शाट्टे-हैंड सीखने-
सममने या याद रखने में कोई भी असुविधा या उलमन
नद्दोगी।
इसी तरह अंग्रेजी-शार्ट-देंड जानने वाल्ले छात्र हमारी
प्रणाली से हिन्दी, हिन्दुस्तानी या उर्दू शा्टे-दैंड को बहुत ही
शीघ्र सीखकर एक कुशल शीघ्र-लिपि-लेखक हो सकता दै।
हमारा अनुभव है कि इसके लिये अधिक से अधिक चार-पाँच
महीने का समय पर्याप्त होगा ।
हमारा उद्देश्य यद्द रद्दा कि हमारी प्रणाली से सीखने
बाला छात्र हिन्दी, उ्दँ तथा हिन्दुस्तानी के अलावा अंग्रेजी
हर कम-से-कम १५० शब्द प्रति मिनट की गति से लिख
सके ।
इस अणाली का आविष्कार करते समय इस बात का भी
पूरा ध्यान रक््खा गया. दे कि इन्दीं वर्णाक्षरों में थोड़ा-बहुत
परिवत्तन करने से भारत की अधिक से अधिक भाषाओं के
लिए भी पुस्तकें तैयार हो सकें। उद्, मराठी और गुजराती
भाषा में तो इसका संस्करण बहुत द्वी,शीघ्र प्रकाशित किया
जा रहा है |
[ ७ ]
प्रणाली सर्वाज्ञ-पूर्ण है और संकेत-लिपि का कोई भी आंगे.:”
छोड़ा नहीं गया। शब्द-चिन्द (3080०27७778 » वॉक्यॉश
( 72॥78860878/779 ); संत्षिप्त-संकेत ( 00767806078 ) हर
एक विभाग में अधिकतर काम आने वाले शब्दों के विशेष संकेत,
( 067%५70679 5.060॑ंक। 07768 ); एक ही वर्णोक्षरों
से उच्चारण करिए जानेवाले शब्दों के लिए विभिन्न संकेत
(08#787ंघआांए8 ०एॉ-००४७) अदि यथा-स्थान दिये गये हैं ।
अभ्यास भी विभिन्न विषयों पर इतने अधिक दिये गये हैं
कि कोई भी छात्र इन दिये हुए अभ्यासों को दी पूर्णे-रूप
से मनन तथा अभ्यास करते पर एक सिद्धस्थ-शीघ्र-क्षिपि-लेखक
हो सकता है ।
यदि जनता ने इस प्रणाली को अपनाया तो मैंने यह हृद्-
निश्चय्र कर लिया हे कि अब जीवन का शेष समय इस अंग को
पूरा करते में बिताऊँगा और इसी निश्चय के अनुसार उदूं-
भराठी-गुनराती आदि संस्करण के अलावा दिन्दी में संकेत-लिपि
का एक बुदतू कोष भी तैयार कर रदा हूँ। यद्दी नहीं अपना
विचार तो इस विषय पर एक मासिक-पत्र भी निकालने का है
पर यह सब उसी समय दो सकेगा जब कि जनता और उत्त
सहानुभावों का सहयोग प्राप्त होगा जो कि इस विष्रय को
सर्वोह्न-पूर्ण देखना चाहते हैं ।
कृतज्ञता-प्रकाशन
इस वक्तव्य को समाप्त करने के पदिले हम उन श्रीमानों
के श्रति अपनी हार्दिक कृतक्षता प्रकट किए बिना नहीं रद सकते
जिनकी सद्दायता तथा सद्ानुभूति के कारण दी मैं सफत् हुआ
हैं। इनमें सर्वे प्रश्मम दें. इमारे देश के पूज्य नेता स्नास-पन्य
[ '८ |
श्रीमान् बाबू पुरुषोत्तम दास जी टंडन । जिस समय मैंने:
अपने इस आविष्कार के बारे में आपसे चरचा की तो आपने ::
चढ़े ही उत्साह-बद्धेक शब्दों में इससे सहानुभूति प्रगट की ,
ओर यह कट्दा कि यदि यद्द प्रणाल्री अच्छी जेँची तो में इसे.
“सम्मेलन” में भी स्थान दूंगा। इखलिए मुझे आज्ञा मिली
कि में अपनी यह प्रणाली उनके नियत किये हुए विशेषज्ञों को
दिखाऊँ। उन विशेषज्ञों में से एक थे श्रीमान प्रोफेसर अजराज
जी, एम० ए०। यह रवरय॑ भी शार्ट-हैंड की एक पुस्तक लिख
रहे थे परन्तु फिर भी मेरी प्रणाली को जाँचने और सममने
पर इन्होंने बड़ी दृढ़ता से अपनी राय दी कि यह प्रणात्री
हिन्दी-प्राहित्य-सम्मेलन ऐसी भारत में प्रतिष्ठित संस्था के लिए
सर्वेथा योग्य ही है और फिर इसी निर्णय के अनुसार शऔमान्
टंडन जी ने हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन में ए शीघ्र-लिपि-वर्ग
खोलकर मुझे; पढ़ाने की आज्ञा दी। इसके लिए मैं इन दोनों
भद्वाजुभावों का हृदय से ऋतज्ञ हूँ। ले
इसके पश्वात् ही जब मैं श्रीमान् डाक्टर बाबूराम जी
सक्सेना से मिलता तो उन्होंने भी इस प्रणाली के बारे में मेरे
वक्तव्य को बड़े ध्यान से सुन और कुछ पुस्तकें दीं जिससे मुमे
आगे अपने काय्यें बढ़ी ही सहायता मिली। इसके' लिए मैं
आपका बड़ा ही ऋृतज्ञ हूँ। ८० जे पड
अब रही हिन्दी-साहित्य-सस्मेलन के हमारे परीक्षा-मंत्री
श्रीमान् दयाशंकर जी दूबे, एम० ए०, एल० एल० बी० की
बात | इन्हीं की देख-रेख में इस कालेज का कायये चल, रहा ,
दै।ये समय २ पर ज्ञिन मद तथा सहानुभूति-पूर्ण शब्दों ,
द्वारा मुझे उत्साहित करते रहे हैं और जिस तत्परता के साथ ह
मेरी कठिनाइयों को दूर करते रहे हैं उससे तो -मुमे: यही, “
हे ७ कल
सालूस हुआ है कि किसी से काय्य लेने, किसी- संस्था को “
सुचार तथा सुव्यवस्थित रूप से चलाने तथा संगठित करने
की आप में अद्वितीय प्रतिभा है। आपने मेरे काय्य में बड़ी
ही रुचि दिखाई है और इसके लिए में आपका हृदय से
आभारी हूँ ।
यहाँ पर में श्रीसान् पं० लक्ष्मीनारायण जी नागर, बी०
ए०, एल-एज्न० बी० का नाम लिये बिना नहीं रह सकता। आप
समय-समय पर--यहाँ तक कि सेरे घर पर आ-आकर भी
मुझे! अपने सीठे तथा सहानुभूति पूर्ण शब्दों से इस काम में
हृदतापू्वेंक लगे रहने के लिये उत्साहित करते रद्दे और हर
एक प्रकार की सद्दायता देने या दिलाने का आश्वासन देते रहे ।
इसके लिए में आपका हृदय से ऋतज्ञ हूँ ।
अब रही डिज्ञाइनिक् और छपाई आदि की बाद | पुस्तक
के लिखे जाने के बाद यह हमारे लिए एक समस्या सी हो गई थी
कि आखिर इसकी छपाई किस तरद्द से की जाय पर इस समस्या
को हमारे सुहृद श्री रामकष्ण जी जौद्दरी, मेनेजिंग डाइरेक्टर,
दी इलाहाबाद ब्लाक-चक्सं लिमिटेड और मिन्न सि० मोहम्मद
इस्माइल ने बड़ी ही कुशलता के साथ हल किया ।
डिज्ञाइनिकु का खास श्रेय तो इस्माइल साहब को है। आप
एक बड़े ही कुशल चित्रकार और डिजाइनर हैं और आपने
जिस चैय्ये तथा सत्र के साथ इस काम को पूरा किया है उसके
लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाय कम होगी | कभी २ में जब
ऊब कर किसी संकेत को पूणु-रूप से ठीक न बनने पर चालू
करने को कद्दता था तो आप उसका तीव प्रतिवाद कर ऐसा न
करने की सलाह देते थे।
[ १० )]
. इस पुरुतक की सारी छपाई ब्लाकों द्वारा की गई है। इन
उत्ताकों का बनाने भौर पुस्तक के छापने का सारा श्रेय पर्वेकथित
हमारे सुहृद जोदरी जी ही का है | मुके यह आशा नथी कि
यह ब्लाक कल्ञकत्ते के एकाघ कारखाने को छोड़कर कहीं और
बन सकेंगे परन्तु जिस तत्परता, सुचारुता वथा शीघ्रता के साथ
आपने इस काम को किया है. उसे देखकर वो भुम्के कमी कभी
आश्चर्य होता था। इससे मालूम हुआ कि आपका इस विषय
में बहुत दी अच्छा ज्ञान है और प्रबन्ध भी सर्वोत्तम है।
अंत में में अपने मित्र पं० जयनारायण तथा शिष्य श्री
हुकुमचंद जी जैन को भी बंगेर धन्यवाद दिये नहीं रह सकता
क्योंकि आप लोगों ने भी मेरी पुस्तकों, लेखों तथा अभ्यासों के
गहने आदि में बड़ी सहायता दी है। इति--
२५६-चक, प्रयाग, --अषिलाल अप्रवाल
+ फरवरी, १६३८
ऋषि-कुटी |
|
>
|
३. >4क००५० ८3 कैककनन+ जन गन-तररे ई ७ +3
८
विषय-सूची
झं० हे विषय प्ष्ठ-संख्या
१, वणमाला चित्र कप ० श्८
२, वर्ण॒क्षरों की पहचान. ... >> रह
३. वण॒सातल्ा ५9% लक २०
७. व्यंजन श लि २१
४ व्यंजनों को मिलाना. ... २७
६. सर्वर (मोटी बिन्दु और मोटे डैश से लिखे जाने वाले) ३३
स्वर (हल्झे बिन्दु और हलके डैश से लिखे जाने वाले) ३७
८ दो व्यंजनों ।के बीच स्वर का स्थान मत 8१
९, तब के दाएँ-बाएं अक्षरों का प्रयोग »».. ४४
१०, स ओर म-न का प्रयोग ... ००... ४६
११. शब्द-चिन्ह ध्य «०५... ७४
१९, स, श ओर ज् (१) हि ०७६:
१३, स, श और ज (२) कफ »«... दं८
१४, सवनाम मा ». ७२
१४५, व! का प्रयोग कर «०... घ०
१६, “न का प्रयोग मत »«. पर
१७, 'र' का प्रयोग नह ००»... धर
१८, “ल' का प्रयोग क ६६.
१६. स्व, स्त, या स्थ, दार यात्र, स्प याम्व के आंकड़े... १०४
२०, लिक्ल और वचन (.» ल््भ. र्रश
२१. स, स्व ओर ल, र के कुछ और प्रयोग ब्न.. रै१३
२२. 'र और ल' के ऊपर और नीचे
लिखे जाने का नियम .... «». ईैं२०
[ १२ ]
नँ० विषय पृष्ठ-संख्या
२३. प, ब, जु और ६€ के «०... शरे८
२४. द्विष्वनिक मात्राएँ कक » . ईै३े४
२५, त्रिष्वनिक ३ ««» . हैदेई
२६. ट, त और क के ल्*. १३७
२७. तर, दर, टर या डर... «१४७
२८, व और य का प्रयोग. ... «»«.. १४९
२९, घण, छण या शन आदि का प्रयोग «१५१
३० सर्वर ( लोप करने के नियस ) »«.. रैण५
३१. क, लर, रर «१६%
३२, प्रत्यय की न््न््र्श्ण
३३. उपसरगोे बे «१६
३४- क्रिया श् न... १७४७
३५, संघि नव. रैम
३६. कुछ संख्यावाचक संकेत »» रैय
३७, विराम ७६: - दे
दसरा भाग
श८ कुछ विशेषनियम . ल्». रैधर
३६. वर्णोक्षरों से काटने पर नये शब्द «१९३
४०. वाक्यांश आर »«» रैध६
४१. कुछ ज्ञुट शब्द ६४ न. ६
४२. वाक्यांश--१०-६ तक .... २०९-२१७
४४३. साधारण-संत्तिप्त-संकेत ... २१९-२२६
४७, उदू के कुछ प्रचलित शब्द »« रेप्ेहे
४3५. साधारण-व्यावह्ारिक शब्द् «२३७
ब्यवस्थापिका-सभा .... ह ०». रेदे७
[| (३ ]
नं० विषय पृष्ठ-संख्या
अंतरोष्ट्रीय का “रेड
कांग्रेख न् ३४ बन०. शिष्य
स्वायत्त-शासन ४ «» रे४झओ
प्रवाघी-भारतवारसी . ,,.. "०. “ेधेओे
हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन... »« रेछहे
तीसरा भाग
४६, राज्य-शासन के पदाधिकारी »« २४६
४७, सरकारी-संस्थाएँ «० रेड
श८, ग़र-परकारी संस्थाएँ ..,, «« रैईहे
४६. पोस्ट-आफ़िस-विभाग ... «० ५७
४०. रेलबे-विभाग मर -. रे४९
४१, बालचर-संडल कक “२६२
४२. प्रह-नक्षत्रादि हि बन २६४
४४३. शिक्षा-विभाग ढक *«.. २६७
४४७. ऊृषि ९००० ००००. ७०
४६४. स्वास्थ्य “विभाग श्र ०० दे
४६. जेल-सेना-पुलिस न «० २७४
४७, न्याय-विभाग फ न... न
इम स्टाक-एक्सचेंज »«. रें८६
४६. बेंक और कम्पती. ,.., ०» शेटरे
६०. किस्म कागजात $्छें "०० रे८६
६१. कुल व्यावद्यारिक पत्र ... गन. ६४
६२, नेताओं तथा नगर व प्रान्तों के नाम *«० ६७
६३. एक ही वर्णो से उच्चारण किये
जाने वाले शब्दों के दिभिश्न संकेत न ०१
_जमथमम्पेपइडिसमररसधलन0,
विद्यार्थियों से निवेदन ॥
आवश्यक सामांन--- -ा+
लिखने के लिए एक बही-नुमा लंबी नोट-बुक होना चाहिए।
जिसकी लाइनें कम-से-कस है इंच की दूरी पर हों। इसका
कार्रंज़ न ज्यादा चिकना और न खुरदुरा दी द्ोना चाहिये।
लिखने के लिये एक अच्छा लचीले निब वाला फाउन्ठेन पेन
होना चाहिये अन्यथा किसी अच्छी पेंसिल से भी लिखा जा
सकता है | पेंसिज्ष न कढ़ी ओर न अधिक नरम ही दोना
चाहिये । '
* दूसरी बात है इन चीज़ों को विशेष-विधिं से काम में लाने
की | लेखक को नोट-बुक को सामने लम्बाकार रखकर बैठना
चाहिये जिससे शरीर का बोम दोनों द्वाथों पर न पढ़े। दाहिने
पथ से पेंसिल या कज्षम को पकड़ कर इस तरीके से कापी पर
रखना चादिये जिससे कि केवल नीचे की “दो अंगुलियाँ मात्र
कापी से छूनी रहें और कलाई या हाथ. कापी से बराबर ऊपर
रहे जिससे लिखने में सरलता हो और थक्रावट न मालूम
हो। बाएं हाथ के अंगूडझे और पदिली ,अंगुलियों से एप का
निचला-बाँया दिस्खा पकड़े रहें जिससे लिंखते-लिखते ज्योदी
सम्तय मिले और पेज का अन्त सा हो चल्ले स्थोंद्री पन््नेको
उलदठने में सुविधा! दो | इस बात का व्यान रखना चाहिये कि
पेन्सिल या कन्नम को जोर से दववकर न पकड़ा जाय क्योंकि
ऐश्ला करने से हाय जल्दो-जल्दो नहों चज्ञता और लिखने में
यक्रावट सी मालूप होती है! '
आजा मल अक
[ शव |
अस्यास--* का
अच्छे सामान शीघ्र-लिपि-लेखक को केवल सहद्दायता मात्र
दे सकते हैं पर उनके अभ्यास की कमी को पूरा नहीं कर
सकते । संकेत लिपि के बणोक्तर ही ऐसे सरल ढंग पर निर-
धारित किये गये हैं कि जितने समय में आप नागरी लिपि के
कक! अचर को लिखे'गे उतने दही समय में संकेत-लिपि के “का
अक्षर को कम से कम चार बार लिख सकते हैं। आवश्यकता
केवल अभ्यास की है । अभ्यास इतना पक्का होना चाहिए कि
वक्ता के मुँह से शब्द के निकलते ही आप उसको लिख जे,
ज्ुरा भी सोचना न पड़े। इसके लिए पहले-पदल आपको
केबल वणोक्षरों का अच्छा अभ्यास करना चाहिये, उल्नट-
पलट कर, चाहे ज्ञिस तरह बोला जाय आप उसे आसानी
से लिख सके । इसके पश्चात् आप पाठ के अंत में दिये हुए
अभ्यासों को लिखे', पहले , अलग-अलग कठिव शब्दों
को ओर फिर मिल्लाकर इतनी बार लिखे' कि बोले जाते पर
सरलता से लिख तें। दो-तीन बार तो धीरे-धीरे बोले. जाने
पर लिखे फिर चौथे या याँचवे' बार इस तरह बोले जाने पर
लिखे' कि वक्ता से आप तीन चार शब्द बराबर पीछे रहें
जिससे आपको दाथ बढ़ाकर लिखने ओर वक्ता को पकड़ने
का अभ्यास दो। अन्त में बोलने वाले की_ गति आपके
लिखने की गति से आठ-द्स शब्द प्रति सिनट अधिक होनी
चाहिए जिससे आपको ओर भी तेज़ हाथ बढ़ाने का अभ्यास
दो । यदि ऐसा करने में, कुछ शब्द छूट जायें तो कुछ इज
नहीं, आप लिखते जायें और वक्ता को पकड़ने का प्रयत्न करते
ज्ञाय | नया पाठ लिखने पर जो नये शब्द या वाक्यांश आदि
आदें उन्हें कदे बार लिखकर ऐसा अभ्यास कर ले' कि वह्द
[ १६ ॥
बय समय आप द्वी आप छ्ाथ से निकलने लगे, सोचना
नपड़े।
दूसरी बात यह है कि आप कुछ न कुछ अभ्यास पअतिदिन
जहाँ तक हो सके एक निश्चित समय पर करे । ऐसा अभ्यास,
उस अभ्यास से अधिक तल्ाभप्रद होता है जो बीच-बीच में अन्तर
देकर किया जाता है चाहे वद्द अभ्यास अधिक दी समय तक
क्यीं न किया जाय |
इस संकेत लिपि के लिए यह परमावश्यक है कि अभ्यास
एकाध बार वो स्वयं लिखकर किया जाय पर अधिकतर किसी
श्रच्छे जानकार के बोले जाने पर ही नोट लिखा जाय, साथ
ही साथ सभाओं, परिषदों ओर समीटिंगों में जा-जा कर
बैठा जाय और वक्ताओं की वक्त ताएँ सुनी तथा सममी जाएँ
क्योंकि लिखने के साथ द्वी खाथ कानों का साधना भी बहुत
दी आवश्यक है जिससे सुनी हुईं बात फौरन द्वी सममक में
था सके |
इसके पश्चात् ही सभाओं में बेठकर निधड़क लिखने की
योग्यता आ सकती है। घबड़ाना जरा भी न चाहिये क्योंकि घब-
ड्ाने से सब कास विगढ़ जाता है ओर आप में लिखने की शक्ति
रहते हुए भी आप कुछ न लिख सके'गे।
( २१ )
[4 हु
व्यन्नन 7 फिक्
इस संक्षिप्त लिपि में व्यंजनों की रचना अधिकतर ल्योमित
की सरल रेखाओं को लेकर ही की गई है पर जब सरल रेखा "
से काम नहीं चल! तब चक्र रेखाओं का सहारा लिया गया है |
ट् न (
८ री गन
कर 2 सो _झ
(१) (२) (३)
याद करने के लिए नीचे से चलना चाहिए। प्रथम चित्र में
पहली रेखा से कवर, दूसरी रेखा से चवर्ग, तीसरी रेखा से टवग
ओर चौथी रेखा से पवर्ग सूचित किया गया है। तब्गें सरल
रेखा से न बनाकर वक्र रेखा से बनाया गया है | इसका कारण
यह है कि दम आँगरेजी शाठे-हैंड ( पिद्स प्रणाली ) के ध्वनि
संकेतों को भी जहाँ तक दो सका है साथ साथ लेकर चले हैं
जिससे कि अँग्रेजी के पिट्समैन प्रणाली का जानने वाला यदि
दिन्दी-शाट्ट-हँड सीखना चाहे तो उसे उल्लकन न पड़े । अगरेज़ी
में ? को 'प? की रेखा से सूचित किया है, इसलिए हमने इस्र
धप! को ट, च, त, या स, न सानना उचित नहीं सममा यद्यपि
शेसा करना बहुत ही सरल था।
स्क् ६० बम+ चथ जल छः 7 कल
|
हर
( २२ )
तबगे और स के लिए दाएँ और बाएं दोनों तरफ से एक
ही प्रकार की वक्त रेखा ली गई है जैसे--चित्र १ और २ में
दिए गये हैं ।
08 6 2
(१) (२)
श और स में इघलिए भेद् नहीं किया गया कि मुद्दावरे से
पता लग जाता है कि कद्दों पर स की आवश्यकता है और कहाँ
पर श की | पर यदि कहीं पर विशेष भेद करना द्वो तोख के
चिन्ह को काटने से श पढ़ा जायगा।
आज की टिन्दुस्तानी भाषा में उदू की बहुलता अर्थोत्त् उदू
ओर फारसी शब्दों के प्रयोगाधिक्य के कारण जु का उपयोग भी
अधिक द्वोता है जैसा सजा, मर्जी आदि शब्दों में वहाँ पर इस्री
बाय ओर दाये 'स' के संकेत को सुविधानुसार मोटा कर लेना
धाहिए।
'छः का उच्चारण या तो “ख' होता दे या 'श' और इन दोनों
अक्तरों के लिए संकेत निर्धारित किये जा चुके हैं. इसलिए “घ” के
लिए स्वतंत्र रूप से कोई दूसरा संकेत निधोरित नहीं किया गया ।
“ए' का कास भी “न” से लिया गया है | शब्द को उच्चारण
करते द्वी यह पता लग जाता है कि शब्द को 'श' से लिखना
चाहिए कि “न! से | इसलिए 'ए? के लिए भी कोई दूसरा संकेत
निधोरिव नहीं किया गया है ।
शेष फुटकर वर्णोक्षर अलग अलग रेखाओं से निरधारित
किए गये हैं। पाठकों को इनका पदले भत्नी-मॉति अभ्यास कर
लेना चाहिए।
( २३ )
बाएँ और दाहिने संकेत सुचारुता के विचार से कये गये
हैं| कहाँ किसको लिखना चाहिए यदद आगे ससकाया जायगा।
रेखाओं के बारीक और मोटे होने पर, उनके ऊपर से नीचे
ओर नीचे से ऊपर लिखे जाने पर या उनके सरल ओर, कठे द्ोने
पर खूब ध्यान रखना चाहिए और इनका इतना अच्छा अभ्यास
करना चाहिए जिससे लिखते समय ध्वनि संकेत सुचारु रूप से
आप ही आप लिखे ज्ञा सके ।
तीर का निशान लगाकर यह पहले ही बताया जा चुका दे कि
कौन रेखा कहाँ से आरंभ होती है और किस ओर जातो है |
लिखते समय इस्र बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए
किलज्लो रेखा जहाँ से आरंभ होतो है वहीं से आरंभ को
जाय और द्विर ऊपर, नीचे या आड़ी जिस तरफ लिखी है उसी
तरफ लिखी जाय |
इस लिपि को बड़ी सावधानी से खूब बनाकर लिखना
चाहिए, यहाँ तक कि एक एक वर्णन इतना लिखा जाय कि वह
पुस्तक में दिये हुये वण से मिलते जुलते मालूम द्वों । इसमें जल्दी ,
करने से लिपि कभी भी आगे चलकर फिर न सुधरेगी और परि-
णाम यह होगा कि इस तरह जल्दी २ लिखने वाले लेखक महाशय
कभी भी कुशल हिन्दी-संकेत-लिपि के ज्ञावा न दो सकेंगे |
विचार से देखिये तो वर्णमाला के पंचवर्गो' के जितने अक्षर
हैं, उनका प्रथम अक्षर तो सूल-अक्षर है पर उसके बाद का दूसरा
अक्षर उसी मूल अक्षर में “ह? लगा देने से बना है | इसी तरह
तीखरा अक्षर मूल अक्षर है और चौथा: अक्षर उसी में 'ः त्ञगा
देने से बना दे । जैसे कवर्े का '“क' प्रथम अक्षर है और इसके
बाद का अक्षर ख' क सें ह लगाकर बना है। च के बाद
छुन््ल्च--ह; ज॑ के बाद क>-ज--ह | इसलिये इनके लिए एक
हक अल कमल पी
( रेह )
ही संकेत रखे गये हैं. लेकिन भिन्नता प्रगट करने के लिये मूल
अक्तर काट दिए गये हैं जैसे--क के संक्ेव को काट कर ख और
प के संकेत को काट कर फ आदि बनाया गया है।
तबगे और स, दाएँ-बाएँ और कुछ ध्वनि संकेत ऊपर नीचे
दोनों तरफ से लिखे गए हैं। उनको दोनों तरफ से लिखने का
अभ्यास करना चादहिये। यद इसलिये किया गया दे कि वर्णों
के मिलाने में असुविधा न दो और लिपि के प्रवाह सें अड्चन न
पढ़े जैसे (चित्र नीचे)-न--ल पहले तरीके से लिखना सुविधा-
शी ०
(१) (२)
जनक है, दूसरी तरद्द से ल्लिखने में प्रवाह में रुकावट पड़ती दै
थोर संकेत भी शुद्ध और साफ नहीं बनते |
अभ्यास करते समय संकेतों की बार और मुटाई पर भी
विशेष ध्यान रखना चाहिये | पाठकों को संकेतों की एक नियमित
लंवाई मान ही कर लिखना चाहिये क्योंकि चंद आगे चलकर
देखेंगे कि किसी संकेत के नियमित रूप से छोटे या बड़े होने पर
भी दूसरा अर्थ हो जायगा। संकेतों की नियसित लंबाई करीब
दै> इंच की होनी चाहिये पर पाठकगण इसे अपनी सुविधानुसार
कुछ थोदी बड़ी कर सकते हैं लेकिन संकेतों के रूप और बनावट
में समानता होनी आवश्यक है।
च ओर र के संकेतों को अच्छी तरद्द समम लेना चाहिये।
च ऊपर से नीचे और र नीचे से ऊपर फो लिखा जाता है।
ऊुकाव के चिचार से च लंब से ३५ अंश की दूरी पर नीचे की
( २६ )
७, य र मं ञत्स्त॒ व च
५. श दू ८ घ ज॑ रू < छ
म न य र (नी)
६, ड थ धघ फू भ व श ढ़
अभ्यास--- रे
[ षो8--जो अक्षर दाएँ या बाएँ से लिखें जाते हैं उनको दोनों तरफ से
ल्िस्तो ]
केवल पहला अक्षर दिखो---
१. कल, खत, घर, गरम, शरमस, पर, तर
२. खटक, सटक, चटक, टपक, तद़क, भड़क, त्पक, ऊ
३. ढठक, छुत, जमघट, सटपट, तट, थरथर,नमक, करन
४. दुसमक, धसक, नमक, पकड़, फरस, वट, सन
५, _ बरतन, भरस, सन, रट, छ्र्प, शरम धरस
है. सरपट, दम; पंह, ढ़, ड़, छू
कसर आन मनन.
अभ्यास--- ४
केघछ अंत के अक्षर लिसो--
३. कल्बक, मख, पं, जह्ू, करप, रह
२. पढ़, मच्छर, गाय, रट, उत्लक, जप, पते
३, नस, मचसच, जगत, नम, रटन, छव, जतन
४. कुश, सहज, कल, कलम कब, कुछ, अक्ष
७. नथ, काठ, पद, बाँक, कलम, नम, भव
६. लास, परम, तरह, रस, यव, पट, पता
( २७ )
व्यंजनों को मिलाना
१, व्यंजनों को मिलाते समय इस बात का ध्यान रखना
चाहिए कि कलम कागज से न उठे और जहाँ पर पहले
व्यंजन का अंतहो वहीं से दूसरा व्यंजन आर॑भ हो।
जैसे--चित्र नीचे
३... हि अधि मत .. 3..... ता
कै 0. व
2 -
५“ री न *#> 2 >> + 0०६ हि ब्क ले ४... * #«.. ०. «७३ बे ७४११४९७०७
छु*- जग ५-- दर या तर
६-- सक्त -७-- घंतल
२. जब दो व्यंजन मिलते हैं तो इस बात का ध्यान रखना
चाहिये कि नीचे आने वाला'या 'ऊपर जाने वाला पहला
'झक्तर कापी की रेखा पर हो | दूसरे अक्षर त्ञाइन से करों
( २८ )
भी आ सकते दे | जेसे--चित्र नीचे
मिल अधि रिरिया जा मु र् ५ ड्जे्
है+ हर रकम | ल् ( न ह च्
हे... मिमी की आज कक के पे >० 2 हे बह३७ व है शक, ही मज | ० ० ०० लक
१०- पक्कु २-- टप ३-- 'चग
छ-- फूट ्न्न्दृट <-- मंफ
७5-- तेन पंत टन
३७ कवगें के अक्षर, स, न और उः नीचे या ऊपर आनेवाले
अक्षर नहीं हैं, बल्कि आड़े अच्चर दें। इसलिए
ये अक्षर पहले आते हैं और इनके बाद नीचे आनेवाके
गा मा हैं तो ये रेखा के ऊपर लिखे जाते हैं। जैसे--«
न्न्नी
का जा वर के
00, 00 चित
१-- खट २०» मद ३-- गब
४-- कट ४-- सट ६-- नप
है. फवगे के अक्षर, म, न और ८डः के याद ऊपर जानेवाके
अक्तर आयें तो ये अक्षर कापी की रेखा पर से आर॑भ
कार
कक
छः
वर्णाक्षरों की पहिचान
नोट:--तीर का निशान लगाकर यह बताया गया है कि
कौन रेखा कहाँ से आरंभ होती है और किस ओर जाती है ।
जो रेखाएँ नीचे और ऊपर दोनों तरफ आती जाती हैं, उनमें
जो ऊपर से नीचे आतो हैं उनके नीचे (नी) और जो नीचे से
ऊपर जाती हैं उनके नीचे (ऊ) लिख दिया गया है ।
२. चवग, टवर्गे, तवरगे, पवर्ग, र (नी), ल (नी), सर (नी)
हू (नी), ड़ (नी) और ढ़ (नी)-ये नीचे आनेवाली
रेखाएँ हैं
२. य, र (ऊ), व, ६ (ऊ), ड़ (७) और ढृ (क)--ये ऊपर
जानेवाल्ली रेखाएं हैं
बगे, म, न और उू--ये आड़ी रेखाएं हैं ।
७. ल नोचे से ऊपर ओर ऊपर से नीचे दीनों वरफ एक ही
प्रकार से लिखा जाता है ।
४. कवगे, चबगे, टवर्ग ओर पवर्ग के अक्षर, य, र (ऊ), व,
हू, ड़ (क) और ढु--ये सरल रेखाएँ हैं
६. तबगे, र (नी), क्ष, स, म, न, ड़ (नी) ओर उ--ये वक्र
रेखाएँ
७. कवग्ें के अक्षर--ये सरल और आड़ रेखाएं हैं |
मे. मं, न और उ---ये बक्र और आड़ी रेखाएं हैं
६. बाएँ तरफ से लिखे जाने वाला तवर्ग ओर सर, तवर्ग और
स का बायाँ समूद्द कह्दा ज्ञाता है ।
१०, दाएँ तरफ से लिखे जाने वाला तबग और से, तवग और
स का दायाँ समूह कद्दा जाता है।
, वर्णेसात्ञा के चित्र में तवग और ख्॒ के संकेतों को देखो ।
नप्ण
॥
(६ ० )
(अ) तबगे समूह में पहला संक्रेत 'त' वाएँ समूह का है और
दा संकेत दाएऐँ समूह का है। इसी तरह थ, द, और घ'
भी ह।
(ब) 'स? का पहला अक्षर दाएँ समूह का है और दूसरा
अक्तर बाऐँ समूह का है।
संकेत लिपि
ज्ञिन ध्वनि संकेतों द्वारा हम अपने विचार प्रगट करते हैं
उसे भाषा कह्दते हैं । इसको घुनने के पश्चात् जिन संकेतों हारा
हम इनको लिखते हैं उसे लिपि कहते हैं। सुनकर समझने और
उसे लिखने में बड़ा अंतर होता है । जिचनी जल्दी दम सुन
सकते हैं. उतनी जल्दी उन्हें हम अपने चतेमान लिपि में लिख
नहीं सकते । इसीलिए यह आवश्यकता प्रतीत हुईं कि कोई
ऐसा उपाय ढेंढुना चादिए मरिससे जितनी जल्दी हम सुनते
हैं उत्तती ही जल्दी हस लिख भी सकें। इस नई लिपि को
“हिन्दी की संकेत लिपि” कहते हैं।
बरणमाला
भाषा वाक्य और शब्दों के समूद से बनी हैं जो अपना
विशेष अथ रखती है। शब्द सुविधानुसार स्वर और व्यंजनों
में विभक्त किए गए हैं। हिन्दी की इस संकेत लिपि की रचना भी
इन्हीं स्वर और व्यंजनों की ध्वनि के सद्दारे की गई है. और
विशेष चिन्हों से सूचित की गई है। पर जो सज्जन हिन्दी भाषा
ओर उसकी व्याकरण के अच्छे ज्ञाता नहीं हैं, उनके लिए इस
लिपि का सीखना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है |
( २६ )
होते हैं। जैसे--चित्र नीचे
2 और अक, ५ हेल जल ५ अल 2
१--- कल २-- कब ३--. नव
७. अगर इन अक्षरों के बाद नीचे आने वाले अक्षर या ऊपर
जानेवाले अक्षर नहीं आते बल्कि दूसरे आड़े अच्चर आते हैं
तो भी ये अक्षर रेखा ही पर से आरंभ दोते हैं । जैसे--
चित्र नीचे
के 68 हल फिट २००६ ४७०२३६ के
हीना
क्तन ष् न न न -न- ध् प्रू >> चर ० : धर ४775 ०००
१०- मन २-- सक ३०० केस
प-- गन ५-- रूक ६-- मक
६» परन्तु जब दो या दो से अधिक आड़ी रेखाएँ एक साथ
आजे' ओर उनके पश्चात् नीचे आनेवाली रेखा आदें दो
आड़ी रेखाएँ कापी की रेखा के ऊपर लिखी जाती
हैं । जेसे--चित्र चीचे
० ५
है. पल
९--सनप २--क न प
७. पहले अक्षर का स्थान निधोरित होने के पश्चात् , दूसरे
अक्तर उससे मिलाकर लिखे जाते हैं। उनके स्थान का
विचार नहीं किया जाता है जैसे--चित्र प्रष्ट ३०
2
कक 2 ००...
हे ० आह, २ हम ९ ८ -
है न हे ६
कं
मन न) ! 4 (श् 222 कर मर
#न (३ ८... ५- ५ 8 मल ९ ५ कप |
$ पक २..... पक हे हे
कक के नमब ६-- तरक
७... फेरक्र 9 सरफ्ट दि रब
३.5 (५ भत्रर १२... पर
बता 8 गा कप
चित्र तीस
- गायन पर बे £“&>०»-- $ रे हे / शीट
४. प् की या शी ऐ॒ ।
0 न ३८ हे
0] सस
| ( ३१ )
$. सरल धंत्तर इस तरद दोदराए जाते हैं। जैसे--चित्र नीचे
१ रच हि २् है अप लि लत पक पर
४ री प् 2 ६ हे
8 मत बट
2५० मकर
१-- प५ २- टड ३-- गष'
९2० अं आन अभ ६“ पवष
उन कक एन चच ड़ ९. हंहे
१०. चवरगें के अक्षर और र (ऊ); ढ़ (5) जब दूसरे अक्षर से
मिलते हैं तो ऊपर और नीचे की लिखावट से पदचाने
जाते हैं। च और र फे कोण का विचार नहीं रह जाता।
चवरगे के अक्षर नीचे को और र (ऊ) और डू (ऊ) ऊपर
को लिखे जाते हैं जैसे--चित्न नीचे
९ >> ७: 3 हे (" 2 लक
धू, ४9. ६ _7 ७.०. & ../८ हक
१--पच २-पर॒ ३-छुट ४-- रन
औ- चूत ६० मंच $ ७नन्« सर ८ छड़
( हेरे )
११. स दाया-बायों और ल-र नीचे ऊपर नियमातुसार लिखे
जाते हैं । नियम आगे मिलेगा ।
बा य् “5८ 70. यों ८
"वी. आल. व या ८:
५
१.
डे
रे छ
ा & न या <्
लल या लम २, लर या तर
लक या ल्ची ४७. यत्न या यल्
नल ६. स्रप था सप
अधभ्यास---५
[ भोद--नीचे लिखे जानेवाले र, ६, ब और दाएं तरफ दिखे जानेवाल्े
सवर्ग ओर स ओर कटे हुए स, न बड़े भक्षरों में लिखे गये हैं ]
६
२५
डर,
छ,
"
के
७, रपट,
संग,
ढक,
थन,
कट, डट, सट,
घन, संग,
छुक,
डग,
तन, छुन,
जप, तब, कंष, कस, सन, बन
घर, चत्र, इक, रख, जतल्न, यह
सब्र, शहर, व्हज्ष, जद्बनन, भजन, पटक
मऊपठ, रन, पहन, महक
ठग,
फन
चद
नंट
६ हेडे )
रे. कद, मलमत्, देलचतल्च,. खठमद्य,
३, बरतन, . टसटम, . पनघट, .. रहपठ) |
३०, घर पर चल | बरु वक मत कर । जल भर ।
च और र का विचार कर अक्षरों को प्रिद्ञाओ--
११, रच; मर, पर, चेरन, मरन, . परी
१२० जहर, मगर; हर हर कर, चरन पर सर घर ।
स्वर
स्वर-ध्वति का उच्चारण विना किसी दूसरे ध्वनि के सह्दा-
यता के आप ही आप हो सकता दे। यहाँ स्वर दो प्रकार से
लिखे गये हैँ । एक मोटी बिन्दु ओर मोटे डैश से और दूसरा
हल्की बिन्दु और हल्फ्रे-डेश । -
मोटी बिन्दु ओर मोटे ठेश से लिखे जानेवाले स्वर
श्र ५ | ता - (१)
ई |
ए् ; । झो ->;- (२)
डे ६ | #$ -;६०-(३)
उपरोक्त रुबरों को याद करने के लिए निम्न वाक्य याद कर
लें। इससे सहायता मिलेगी ।
अझ रे री | मा चोर कूद (गया)
अर एू ई | आओ »अ व
५ श् ३ | १ दे मे
( ४ )
उपरोक्त चिन्द्रों को ध्यान से देखने पर प्रतीत होगा कि एक
दी एक विन्द से तीन २ स्वर या सात्राएँ नियत की गई हैं परन्तु
इस विचार से फिर भी वे अलग अलग स्वरों का बोध करें _
उनके लिए अलग अलग स्थान नियत किए गए हैं | एक दी चिन्द
एक स्थान पर एक रवर को, दूसरे स्थान पर दूसरे को और तीसरे
स्थान पर तीसरे रवर को सूचित करता है। इन्हें स्वर के स्थान
कहते हैं। यह प्रथम, द्वितीय और तृतीय तीन स्थान होते हैं।
किसी रेखा के प्रारंभिक स्थान को प्रथम, बीच के स्थान को द्वितीय
ओर अंत के स्थान को तृतीय स्थान कहते हैं। यद्द स्थान जिस
जगह से अक्षर लिखे जाते हैं प्रारंभ द्वोते हैं। इसलिये ऊपर से
नीचे लिखे ज्ञानेवाले अक्षरों में ऊपर से आरंभ होते हैं।
जैसे--(१) चित्र नीचे
दर ९ ३३
१. ३: बे र् है
3. ष््
- ३३ - - 9 -
]
६ £ 24%
३, ९ कर ३.०5, ५०८
«» ., «६ - - धदऋ->+ -
4... 3 २ के देश 583
बा
नीचे से ऊपर लिखे जानेवाले अक्तरों में नीचे से आर॑
है) जल चित्र ऊपर मम क
आड़े अक्षरों में बाएँ से दाएँ तरफ पढ़े
जैसे--(३) चित्र ऊपर हक
। ( देश )2
.इन खबरों को व्यंजनाक्षर के पास लिखना चादिए लेकिन
इतना पास न लिखें कि अक्षरों से मिल जाये।
. ऊपर के छः स्वर मोटी विन्दु ओर मोदे डेश से सूचित किए
गये हैं । डेश व्यंजन के पास किसी भी कोण में रखा जा सकता
है पर लस्बाकार अधिक सुविधाजनक और भत्ना मालूम होता
है। जैसे-चित्र नीचे.
३ / या / ४ ८५ या. ८:५5 _
जब स्वर ऊपर या नीचे, आनेवाले व्यंजन के पहले रखा
जाता है तो पहले पढ़ा जाता है। जैसे--चित्र नीचे
१९ ./ २.१३ ३ ४७ ४ |
भू ६ ६ 3 पी
१ -- आज २-० आठ ६ई-- आप ४७ इेट
४ आश छह अधथ ७०७ आर ८*०वतला
जब स्व॒र ऊपर जानेवाले या नीचे आनेवाले व्यंजन के बाद
इख्रा जाता है तो व्यंजन के पश वात् पढ़ा जाता है। जैसे--चित्र नीचे
न
+
$ ..0.. ३.८६ ३.८८ ४... :
ट्ज हम नह है
गए हे पे 0
१०तो २-रो ३--वे ४--सो
४&--पे ६--ले ७-बे ८-दू
( देह )
जब स्वर व्यंजन की आइडी रेखा के ऊपर रखा जाता है तो
बइले और नीचे रखा जाता है तो बाद में पढ़ा जाता दे ।
सैछे-चित्र नीचे
हैं 27 ०86 205० मत ++ - | ६ कऑन ह+
रे 6४5: ८ हि आय जे नीजिजटनी.००- डर ककछ ९ नन्दा लत,
१-- एक आम देख ज्ख
२-- मे खो ने कू
मोदी बिन्दु प्रथम स्थान में अ, द्वितीय स्थान में ए और
ठृतीय स्थान में ई की ध्वनि देता है। जैसे--चित्र नीचे
8 20. अंश की हक
२ . ५ किए । ॥ कर *
बे. दा 5 & शाम 5 ६ “>> हे
४. ४ जीत ५ यह 2
१--आअढ एट द्देट
२-- अप एप टेप
३--म से मी
४७०- से से सी )
[ नोट--अ की भसोटी विन्दु व्यंजन के बाद प्रथम स्थान सें
नहीं रखी जाती क्योंकि “अ' की मात्रा व्यंजन में मित्री
रहती दे । ] ह
६ ३७ ).
इसी तरह'मोटा डैश प्रथम स्थान में आ, द्वितीय स्थान में
शो ओर तृतीय स्थान में झ की ध्वनि देता है। जेसे--
। या जा
गर हक ० 2 5
हर २ ते
्् ६
आप आप रूप
आज ओज रुज
घा चो * बू
आतव आओत द््त
हल्की बिन्दु और हल्के डेश से लिखे जाने वाले स्वर
' तुम छः रवर ऊपर पढ़ चुके हो । अब यहाँ छः स्वर और
दिए जाते हैं । पहले के स्वर मोटी बिन्दु और मोटे डेश से बले
थे | यह छः स्वर हल्की बिन्दु और हल्के डैश से बने है ।
ऐे हो | आइयाआई . -; -(९)
, भ कक - -(शे
ड्ड सा है हा हि - (३)
ऐ ओरत _ इस ! साहस अचल. उलट
ऐ ओऔ -] | आइ . ड
१ ३ [९१ 5 ह-
इन स्वरों का प्रयोग पहले छः: रवरों के अनुसार ही द्वोता दै
ओर इनके स्थान भीं उन्हीं के अनुसार नियत किये गये हैं
ऊपर के स्वरों के देखने से प्रतीत होगा कि ऋट, अः और लू
को केाई स्थान नहीं दिया गया। इनकी कोई आवश्यकता न
पढ़ेगी । बीच में श्र: की मात्रा को जद्दोँ विद्यार्थीपयण आवश्यक
सम अपने सन से लगा लें | जैसे दुख । यह 'दुख? लिखा है।
यदि विद्यार्थीगण चाहें तो इसे दुःख” पढ़े' या लिखें। यदि बिखगें
झंत में आवे तो शब्इ-संकेत के अंत में एक हल्का डेश लगाने
से विसगे पढा ज्ञायगा | ऋ का काम र से और लू का काम “'ल”
में ५२? लगाने से निकज्ञ जाता है ।
अनुस्वार “अं? यदि व्यंजन के पहले या बाद में अकेला आबे
वो यथा-विधि अपने द्वितीय स्थान पर रखा जावेगा |
जैसे--चित्र नीचे
९ 4. ७». .(. ३. २72
8, ,?६.. ५४. न
१-- अंडा २-- अंत ३-- अँधेरा
४-- कंप ५--- पम्प
[ चन्द्र विन्दु ओर अनुस्वार विद्यार्थीयणय अपनी समझ खत
जगा लें। ]
मद ऑल अतीक कद जल अर पथ बज है जलन अप आज लक कि
( हे६ )!
यदि अलुरवार व्यंजन के पहले या बाद किसी रवरके पश्चात्
आधे तो उसी स्वर के स्थान पर एक हल्का शून्य रख देना
चाहिए | जैसे--चित्र नीचे
है है... 0५0. 0 75
१-- आँच २-- आँव ३-- आठ
- इससे यद्द मालूम होगा कि जहाँ पर यह शून्य रखा गया दै
उस स्थान का स्वर सातुनासिक है | स्थान के विचार से स्वर को *
मालूम कर लेना चाहिये जैप्ते--आऑत ( ऊपर के चित्र में नं० २
से सूचित शब्द ) में चूँ कि शून्य प्रथम स्थान में रखा है, इसलिये
इससे पता चलता है कि यहाँ कोई प्रथम स्थान का स्वर है।
प्रथम स्थान के स्व॒र अ, आ ऐ, ओर आइ द्वोते है। सब स्वरों में
अनुरवार मिलाकर पढ़ी, किससे ठीक शब्द बनता है। अँत, एंत,
आइत ठीक शब्द नहीं बनते । आँत ठोक शब्द बना इसलिए
आँत शब्द ठीक है ।
पर यदि आरंभ में और स्रष्टवा चाह तो शून्य के नीचे उस
स्थान की मात्रा भी लगा दो। जैसे नं० १, २, ३ और ४
चित्र नीचे
१, <- सम ; ३... >-- ४८ ट
९... साँप २ चोंच ३--घींच ४-- पछ
सींच और पेड अगले नियम दो व्यक्षत फ़ेयीच स्वर
स्थान' के अनुसार दिया गया है |
( ४० )
अभ्यास-- ६
2) 86 7 2 36 2
पा 0 6 + 0 0 2 8:
पर आर
दल पक 2260 जा
8 जज 8 2
3 3 पक
अश्यास ---७
पा, फ्री, छा, लो, ने, से, का, को,
आस, झोम, आज, ईश, शोध, हँख, ऊख,
राम, शाम, रोम, काम, बाप साख, रात
रमेश, साध, कासा, लेता, ज्ोठा, मोटा, आराम
बटेर, पालतू, मेला, देखा, आग पानी, रानौ
छोटा, गरसी, रोशनी, णनाज, आदमी
गाय, घास, बोली, आराम, आजादौ, रेत
6 हुक :ुए ७ (४ (०७ ३०
( ४१ )
दो व्यंजनों के धीच स्वर का स्थान
स्वर जब दो व्यंजनों के बीच में आता है तो प्रथम ओर
द्वितीय स्थान पर तो यथानियम पहले व्यंजन के पश्चात् रखा
जाता है पर जब तीसरे स्थान पर आता है तो पहले व्यक्लन के
तीसरे स्थान पर न रखकर आगे वाले व्यंजन के कृतीय स्थान के
पहले रखा जाता है, क्योंकि यद्द सुविधाजनक होता है। ऐसा
करने से पहले व्यक्लन के बाद तृतीय स्थान और उसके आगेवाले
व्यव्ञन के पहले के प्रथम स्थान में उन्तकन न पड़ेगी ।
कभी २ ऐसा भी होता है कि दो व्यंजनों के मिलने के कारण
तीसरे स्थान की जगह नहीं बचती । इन्हीं बातों को दूर करने के
लिए उपरोक्त नियस रखा गया है।
हिन्दी में एक अच्ञर के बाद एक ही मात्रा लगती है। इस-
लिये अगले व्यंजन के पहले किसी मात्रा के आने का डर नहीं
रहता । छोटी “६? की मात्रा नागरी लिपि में यद्यपि अक्षर्रों के
पइले लगती है पर उसका उच्चारण अक्ञरों के बाद ही होता है,
इसलिये संकेत लिपि में वह मात्रा सी व्यंजन के बाद द्वी रक््खी
जाती है। ऐसे शब्दों में जहाँ सा> के बाद कोई दूसरा स्वर आता
है। जैसे--/खाइये' 'पिल्ाइये! आदि | [ यहाँ ख भौर ल में आ
की मात्रा के पश्चात् दूसरा स्वर “इ” है ] ऐसे स्थान में किस तरह
लिखना चाहिये इसका नियम आगे चल कर सिलेगा |
( ४२ ) ०
इसलिये ठतीय स्थान की मात्रा न० १ की तरद् लगानी
चाहिये--नं० २ की तरह नहीं । चित्र नीचे द
्
का के ९ डे ही सु २. 4 ५
१) ने ३् है १ डे बच ९/ ५ ३ २२ कर
|, जल ह
- १४९३
कप, हर
सु
ऊपर के चित्र नं० २ के पहले संक्रेत में यह नहीं मालूम .
होता कि ठृत्तीय स्थान 'ट? के बाद दै या 'क” के पहले तथा दूसरे
में “क! के बाद है या पहले 'प' के पदलें। इसलिए इस प्रकार
मात्रा लगाने से पढ़ने में बड़ी उल्मकन होती है ।
इसलिये तृतीय स्थान की मात्रा नं० १ की तरह ही लगाना
ठीक है ।
( ४३ )
अम्यास-...६
अभ्यास--<
लक आशिक
कम लि मी
जज) 2
६... रा का
3, अत, रुत, दो, तो, दूं; था, थी, थे
हि टूृंद, उ्ड, भोदा, दी, देना, लेना, दाम
# 2३.७ कक
पोश्ता, .रास्ता,. दासता;
पथ, पढ़, दर, से, दस)
थापी, थकना, थोक, चठ, ताप, साप
हवा, सद्दा, ड्द्द, दाम, झादमी
थन, घान, धमकी, तनकी, देवता
दास नाता
पातक, नभाती
( ४४ )
तवरग के दाएँ बाएं अचरों का अयोग
तबगे के अक्षर दाएँ-बाएँ दोनों तरफ से ल्िखेजाते हैं । जै छे--«
चित्र नीचे ॥
कि 0 बी 8 मा मा आल की,
ते थ दूँ... ५ थे
तवगे के दाहिने व्यंजन के वाद पवग, कबगे, र (नी० ऊ०)
अर (दा) और ल (ऊ) आता है। जेसे--चित्र नीचे
१. ३] २...) ४ ह
४......)” ५ ) न 05.
कक. हम सपक. कक
१-- तप २-- दक "३--घर (नी)
४-- तर (5७) ५० तप (द) ६-- तत्न (ऊ)
तबगे के बाएँ व्यंज्ञन के बाद चवर्गे र (नी), स (बा)।६"छ०
नी०), न, व, य, और ल (० नी०) आता है। जैसे--चित्र नीचे
2) _ २. - ४ की 278
४-5 ४ हि (, 2 (८ 28
रण __((' का को हे
से. अमन... न्मा..ओ कान,
( ४५ )
१-- तव २७- तर (नी) ३-- तस (बा) ४-- तह (ऊ)
४० तह (नी) $-७ तन ७-- तब ८ तय
४६००» तल (ऊ)। या तल (नी)
टवरगे, तबर्ग और म के पहले तवबर्ग दाहिने और बाएँ दोनों
वरफ लिखा जाता है । जैसे--चित्र नीचे
“है -( ' के. किए
तट तत दस या दम
इसी तरह चवरगे, स्॒ (दा), हू (नी) और म के बाद दाहिनी
दरफ से लिखा जाने वाल्ञा तवर्ग आता है। जैसे--चित्र नीचे
- मर] । ७
त स॒ (दा) द है (नी)त मत
कवगें, पवर्गें, य र (ऊ), न, ल (ऊ), ब, स (बा) ओर हृ्
(ऊ) के बाद बाई' तरफ लिखा जानेवाला तबर्गे आता है। जैसे--
"चित्र नीचे
१. है बा छा
6 मम हा
१०- कत प्त यव र(ऊ)व चंद
२-- लद बत स(बा)त ६दृ (ऊ)त
( ४६ )
टवगे तवर्ग और सम के बाद तवगे दोनों तरफ दिखा जाता
है। जैसे--चित्र नीचे ह
१ ६३
३ ५७७४ ठढ त् भर तत
जब कभी तबगे किसी शब्द में अकेला व्यंजन हो और मात्रा
उसके पहले आववे--चाहे उस व्यंजन के बाद भी सात्रा दो--तो
बायों और यदि मात्रा व्यंजन के बाद आर्वें-पहले नदीं--तो
:दाहिना संकेत लिखा जाता दै। जेसे--चित्र नीचे
हे आओ ओर
अं 2 (६. _( | .े.
आध ऊझद दे दो आधा थे
था थी *ईंदू ओदा ओथ थू
इस दाएँ बाएँ को लिखावट को सममने के लिए यह अत्या-
-'चश्यक है कि आप इस सांकेतिक लिपि के भूल तत्वों को ठीक
तौर पर समम लें । पहली बात धारा प्रवाह की दढे। संकेतों को
आगे की तरफ बत्रिना किसी रुकावट के लिखा जाना चाहिए।
इसमें तनिक सी रुकावट हुई या आगे से पोछे लौटना पड़ा कि
वक्ता बहुत दूर आगे निकल जायगा और फिर उसकों पकड़ना
'बहुत कठिन द्वो जायगा।
मु
( ४७ )
« दूसरी बात संकेतों के सुचारुता की है। यह लिपि बहुत तेजी
के साथ लिखी जाती है । इसलिये यह श्रावश्यक होता है कि
तेजी से लिखे जाने पर भी संक्रेतों की सुचारुता न जाय ।
दाएँ-बाएँ व्यंजन इन्हीं असुविधाओं को हटाने के लिये लिखे
गए हैं जिससे प्रवाह से पीछे न लौटना पड़े और व्यंजनों के
बीच ऐसे स्पष्टकोण--जदाँ तक हो सक्े--बनते रहें कि शीघ्राति-
शीघ्र लिखे जाने पर भी साफ पढ़े जायूँ। जैसे--चित्र नीचे
१. हे « या +> २ > या > शी
१, ऊपर न॑० १ में 'सत दाएँ-बाएं दोनों तरफ से लिखा गया
है। सत (दा) में रुकावट पड़ती है ओर संकेत भी अच्छा
नहीं बनता । इसलिये खत (वा) लिखा जाना चाहिये।
४ इसी तरह मनं> २ में 'तच? दायाँ-बायों दोनों तरफ से लिखा
गया है। 'ठच' दाहिने में कोई कोण नहद्दीं है और यदि जरा
भी छोटा रह गया तो पढ़ा मी न जा सकेगा और केबल
त (दा) रद्द जायगा। इसलिये त (बा) लिखा जाना चाहिये।
( ४८ )
अभ्यास--१० . - ढ
हि ट्रै 8 जे ह नरक 4
६....८ 2. 2 - 44 6.7
| का: ५ हक 33,
हर
अस्पास-..१ १
१. दीम अफीस बुट. सूद मेत्र सोर
२० सूद मूसा बूर सूत नीक्षा ट्वीरा
३. सीन सेड सीरा चीनी. टीन रीम
७, खूब टीका खीर काली. धोमा. पीर
५. की पेदी सुद्ी मोदी पीठ दान काम
६, मेरी टीम जीत यह ।
७ पेड़ के मज्न में पानी दे ।
८ूघ. मु्ता भाग यया।
2. वह भ्रफोम खाकर मर गया।
१७. छेंठ जी ने मीठे २ आम खाये ।
$
न्वममन्त४८०ा>4कामपम कब.
,. ( ४६ )
स ओर म-न का प्रयोग
()स
तबे के समान “स” भी दाएँ-वाएँ ओर स, न ऊपर नीचे
लिखा जाता है। इसके नियम ये है ।
१३... थ्ड < ह
२, > ई ः सन 2 कप का के
के / 5 पा
| आल ड़
दाहिने स के बाद कवगे, तबगे (दा), र (ऊती) और स
(दा), आता है। जेसे--नं० १ चित्र ऊपर
सक सत (दा) सर(ऊ) सर(नी) स स (दा)
वाऐँ स के बाद चवर्ग, तब (बा) य, व; स (था)
हू (नी - ऊ), ल (नी - झ) और न--ये सब आते हें।
जैसे--नं० २ चित्र ऊपर
सच सत (बा) घ्यथ सव सख (बा) स ६ (ऊ)
सह (नी) सल (नो) सल (ऊ) सन
पवर्ग, दबे, र (नी) और से के पहले दायाँ-बायाँ दोनों से
आता है । जैसे--नं० ३ चित्र ऊपर
सप सट सर सम
( ४० )
हम 30%: रे - आस, बट 20 हि 86, ही
|
हि पर 4 9 आय 2 66 अर ले 26 लक पक ली
हि *' इडबड
हा या के
इसी तरद्द फवर्ग, तवगे, पवर्गे, य, व, ६ (७), स (बा), र
(उ), ल (ऊ) और म॒, न के वाद बायाँ 'स” आता दहै। जैसे--
मे० १ चित्र ऊपर
कस त(बोास पस यस् वस द(उगरेस
स(बा)स र(ऊ)स ल(ऊखस नख
चवर्ग, तवर्ग (दा), स (दा) के बाद दायाँ स लिखा जाता है ।
जैसे--नं० २ चित्र ऊपर हे
च्स त(दा)स सर (दा) स
टवरग के बाद 'स” दोनों तरफ लिखा जाता है। जैसे--
से० ३ चित्र ऊपर ४
ट्स ;
जब कभी यद्द 'स? किसी शब्द में अकेत्ला रहता है और मात्रा
पदले आती दै--चाददे उस व्यंजन के बाद भी मात्रा हो--तो
बायाँ और यदि मात्रा बाद में आती है--पहले नहीं--तो दायाँ'
“स! लिखा जाता है। जैसे--चित्र नीचे
4 किन /5 कम
आशा (या) आज (बा), उषा (बा), शो (दा), आदि
(२) भर, मर
है
बिक
कक
कक 5 की]
. हर हु प् ज्थ्र शत ७६७४:
हे ह > र> े
हे ह जज कटा त न जज... “». “5 +
है 3
९. मयास (कटा) ञ अल
(» है (नी) स
जैसे-.न चित्र ऊपर (बा)
(ब), चपय, चव्,
फेवगे, प्र, नौ
< ने ओर स
+रफ झत हैं । जैसे शिव
भक् कम
तह (३),
और बाद दोनों
ब््
हक]
ह।
रर्
रे
४
;
( ४२ )
हक कि हु 5
८ 0 50४
५-२
0 8 5 अल
कक 5
५ 9 के ->4ि ओ+
१०२ नीचे आनेवाली परत रेखाओं के बादू म॒ या मे (कटा)
हे.
अथोत् न आता है और ऊपर जानेवाली सरल रेखाओं के
बाद न या न (कटा) अथोत् सम आता है। जैसे--नं ० १-२
चित्र ऊपर
(६९१) चस ठट्सम पे हे (नी)म
(२) यन वन्न ह॒ (छीन र२(ऊ)ोन
पवगे के बाद न भी आता है। जैसे--नं० ३ चित्र ऊपर
पन बन
४. तबगे (वा), स (बा), ल (ऊननी) के बाद सम और न दोनों
आते हैं। जैघे--नं० छ चित्र ऊपर
त् (बा) म-त (वा) न, स (बा) सन्स (बा) न, ल (ऊ) सन्त (ऊ)च
ल(नी)म लीन
४५. तवगे (दा), स (वा) और र (ली) के बाद मया म (कटा)
अथोत् न आता है| जेसे--नं० ५ चित्र ऊपर
| त (दा)स, स(दा)स, र (नी)स
है।
ह ०
हि
/2%+] फ्रिफ ७" ९
हर कैजजज
न् भ्क्ठट क
कक छ् धर ड्
फू का हे
अक कह हे
अभ्यास-- श्र
के 3:8६ रह
.. «या
0.
का
०
( शर्ट 2)
शुच्द-चिन्ह
हर एक भाषा सें बहुत से ऐसे शब्द हैं. जो भायः हर पक ,
बाक्य में काम आते हैं । इनके लिये संकेत-लिपि में एक प्रकार के ,
स॑क्तिप्त-चिन्ह मिधोरित कर दिये गये हैं। ऐसे चिन्द्रों को
“शब्द्-चिन्ह” कहते हैं । "
शब्दों में लिड् और वचन के विचार से जो परिवतन होते
हैं उनका शबदू-चिन्हों पर कोई प्रभाव नहीं पढ़ता बल्कि ये
मुद्दावरे से पढ़ लिए जाते हैं ।
ये शब्द-चिन्द् छुविधानुसार रेखा के ऊपर, रेखा पर या रेखा
को काटते हुए बनाये जाते हैं।
अधश्यास--९ ४
९ हु ७ ब् | हैं.
9 हु
दे 20 20 ७४० हु, ०2 0
अर 8
१. एक दो। २. ऊपर, पै, पर में
३. दै,हो हैें,हैँ. ४. का को
४. कि, की के
[ नोट--पूवेषत् नीचे किसे जानेयाल्े त् और र बड़े भक्षरों में द्िणु
गये हैं। ]
१. आझादा सा दवा पीता सानना इरा बोश
सीता बाबू बाजा क्ाक काट गोद नाता
३. रोते देखा आगम चाजो मात्री काम
जस+>-३००> जन >> 3,
( ४४ )
योग इअसछी _ कारन छोसी . जातक
बदला जागता शरावना भयानक छोनेवाल्वा
एक आदमी पेड़ पर है।
भोज्ञा का धाप कानपुर जाता है।
राम को दो बोर करदी काट कर दे दो ।
छड़का रोते रोते छेदी के घर पर चद्बा गया
लात्ची आदमी सदा मारा जाता है।
अभ्यास--१५
है /
2३ कम /
2 हक अल ५ मिल अल
हर छु - "/-४- 4० ५०२४७६
हु थ्ं ६ हे है 2२० श्े 58
१,
हम
३५
४
अभ्यास--१ ६
४०५) ४४ /त. * गज 4८५ «८ अर: 22०८० /...
पा पर टी ५... ्ः
कम - क्या किया २. हाँ हुआ - होता
तुम तुमने तुम्हें तुम्हारा तुमको
जलन उनने उन्हें. उनका उनको
'पलइ:ताकाओ २७००५ १००+मरण>्नम.
साज्ञा हार टोवा भूत जाना खाना
पड़ोसी ताकत घोसला.कादने
नज्ञाकत भतीजी डरावना दोपहर
क्या वह बाजार गया है | हाँ वद्ठ गया है। अभी तो उसे कुछ
हो देर हुई है ।
हों उप्ने कोन काम किया णो सजा हुई ।
तृम कौन हो । तुम्हारा क्या नाम है। तुमने यह कोट कथ पाया ।
७. वे कमजोर ये हार गये । तुमको उनकी मदद करनो थी।
झा
९,
डन लोगों से कुछ न होगा | उनके जाने दो ।
झगर कुछ हुआ होता तो उनने जरूर कहा होता।
३२.9. (,._ मर
बे महा 5 नम
कहाँ. जहाँ वहाँ यहा
यदि-दाम-दान दे-देना-देता दिन-दी-दिया
आएँगे - आगे - गाय गया
नी
बात “बाद बढ़े -बड़ा बहुत - बुरा
अतः-अति भाँति - तीर इत्यादि - अत्यंत
हाथ-साथ-साथी थोड़ा था-थी-थे
न नहीं
[ नोद--ए को श्ाइन के उपर क़िखने से 'झप!, लाइन पर बिखने
से 'पहल्चे--पैधा! ओर जाइन को काटकर लिखने से
यद्यपि-पीछे पढ़ा जायगा । ]
( ५६ )
अभ्यास--- १७
१.
रे
है,
४५
५५
३५
छ,
झ्
( ६० )
अभ्यास--- १८
गणेश. गदाधघर नमक. गिरजा गरिरघर
गुबनार जीवन तेराक तोकषना पाइप
गुलाव जुमला. पेराक. दिहात दौलत
नूपुर नेगचार बेरागी .बेद्दतर बेजनाथ
' मुटाई . सुश्किज जकगातार ल्िपाई
करंजा. कावत् जंतर जाँचकः. पेंचक्त लोबान
घद्द बहुत बढ़ा भादमी दो गया है। अब बात-बात में बिगड़
जाता है।
झत; सिद्ध हुआ कि बढ़े आदमी के हाथ में ताकत है पर दौनानाथ
गरीब आदमी के सहायक हैं।
हाँ, अमीर लोग दीनानाथ को भूल्रे दै', उनकी पहुँच उनके पास
नहीं है, न होगी ।
» पहले तो क्लोग झ्ति करके घुरा-करते हैं, बाइ में भाँति-भाँति और
तौर-तोर की बातें इत्यादि बनाकर अत्यंत सूख बनते हैं ऐसे आदमौ
का साथ कोन साथी देगा |
( .६१ )
स, श् ओर ज्ञ (१)
व्यंजन स, श केवल वक्र रेखा द्वी से नहीं बनता बल्कि एक
छोटे बत से भी चनता है। यह व्यंजन की सरल और वक्र
रेखाओं में बड़ी सरलता के साथ जोड़ा जा सकता है। इसका
उच्चारण स और श के अक्ञावा ज भी होता है। जैसे--मेन्न,
जहाज, जामिन, जुल्फ आदि में ज, ज़, जा और _जु है |
जब यह 'स! बुत किसी व्यंज्ञन की सरत्त रेखा के आरंभ में
मित्तता है या बीच में इस तरह आता है. कि व्यंजन के बीच में
कोण नहीं बनता तो यह दाद्विने से बाएँ की तरफ लिखा जावा
है। यदि यह वृत किसी सरत्न व्यंजन के श्रंत में आता है तो
बाएँ से दाहिने को लिखा जाता है । कवर्ग में यह बृत नियमा-
नुसार आदि, मध्य और अंत में चादे जहाँ आबे ऊपर लगता
है। जैसे--नं० १-२-३ चित्र नीचे
| ९ दे [ ५ 8 ०
5 3 58
नर
है ४ हा 202 का 72,
| ४
खप खद सच सक खर
प्ख ट्ख चसख कस रस
पसप दसद चसच कसक रखर
( $१. )
जहाँ व्यंजन की सरल रेखा कोण बनाती है वहाँ से बूव
कोण के बादर बनाया जाता है। जैसे-ननं० १ चित्र नीचे
227: हक पी 7 ही! 2 मल आर 3
टसक पसक डसक रखक
जब यह स वृत्र व्यंजन की किसी अफ्रैत्ञी वक्तरेखा में मिलाया
जाता है तो उसझे अन्दर लगता है और यदि दो वक्र रेखाओं
के बीच से या एक्र वक्र ओर दूसरी सरल रेखा के बीच में
आता है तो सुविधानुसार पहली या दूसरी पक्र रेखा के बीच में
चनाया जाता है। अधिकतर तो यह पहली ही चऋरेखा के बीच
में बनाया ज्ञाता है पर यदि लिपि की घारा प्रवाह ओर सुचारता
में सहायता मिले तो दूसरी चक्र रेखा के भीतर भी लिखा जा
सकता है | जैसे--नं० १ चित्र नीचे
5 ( ह ( 0 दोक कि ० पद
2 ७ छठे “8-:-> ८०. « 8: 5
हम मम हे /0.7 >& अह+5 ५ “०३० ह् व
59220: € या (8 ० ह॒
(१) संत सद् सर सम सन सस
तस्र दस रस मस नस सस
तसक. लखम. ससक रसर ससस
२
( ६३ )
छ्लेकिन (२) तसल (ऊ) या तसल (नी) आदि
जब किसी व्यंजन में स वृत पहले लगता दे तो वह ध्ृत सबसे
पहले पढ़ा जाता है। इसकी मात्राएं ज्ञिख व्यंजन में यह वृतत लगता
है उसके पदले रखी जाती हैं. और बृत के बाद पढ़ी जाती हैं।
फिर व्यंजन और व्यंजन के बाद में रखी हुईं उसकी मात्रा पढ़ी
जाती हे। जैसे--'शाल्ा? शब्द में ( शब्द नं० २ चितन्न नीचे )
पहले ध्वत्, फिर व्यंजन के पहले रखी हुई मात्रा 'आ? फिर व्यंजन
ल्! और अंत में व्यव्जन “ल' की मांत्रा “आ? पढ़ी जायगी।
जैसे--चित्र नीचे
र, 65७. 2 222: ६६
का 2 22
सूस. शात्रा सास शादी
शाक शान शोर रोज़
इसी वरह जब “सः वृत अंत में आता है तो जिस व्यव्ज्जन में
“छ वृत लगता है पदल्ले वह व्यक्षव ओर उसकी सात्राएँ पढ़ी
- जाती हैं और अत में 'स” बन पढ़ा जाता है । 'स” बृत के पश्चात्
फिर कोई मात्रा नहीं आतो। जैसे-मूस शब्द में पहले म
उयँ जल और उसको मात्रा 'उ? पढ़ी जायगी और अंत में “सः दूत
यढ़ा जायगा। बृत के बाद मात्रा आते से बृत न लिखा जायगा।
( ६5४ )
जैसे--नं० १ चित्र नीचे हे
(१) मूस बास चीज्ञ कोस खास
लाश साज्ष पीस पूख ठोंस
य और व के आरम्भ “स” दंत उसके आँकड़े के अन्दर द्वी
लिखा जाता है। जैसे--नं० २ चित्र नीचे
(२) (४) खसय (|) सब
जब ह! संकेत के आरम्भ मे 'स! वृत मित्ाना दो तो 'ह? के
रेखागत वृत को ही दुगुना कर दिया जाता है। जैसे--नं० ३ ,
बिन्न नीचे
(३) सह 5 शहर सियाना सुबवास
नोट--य, व और हू के अन्त से नियमानुखार र (ऊ) की
वरद्द स वृत ज्ञगता है।
१. का मा ++0
हैँ ] ॥
|]
0. >+9० ७ ४७२ ७ ५
२. 0) & (0) ०८: कि
३ है 23 सह ्द 6 दल 72
बीच में स वृत ज्ञिप्त व्यंज्नन के बाद आता है पहले वह
व्यंज्षन और उसकी मात्राएँ पढ़ी ज्ञाती हैं और फिर “ख? चूत पढ़ा
जाता है । जो मात्राएँ बृत के पश्चात् आती हैं वह उसके अगले
व्यज्ञन के पहले यथा-स्थान रखी और पढ़ी जाती हैं ।
यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब बीच में से”
बृत या कोई दूसरा ऑकड़ा आ जाय तो तृतीय स्थान की मात्राएँ
जिस व्यंज्ञन के बाद होंगी उसी व्यज्ञन के बाद ठृतीय स्थान पर
रखी जायेंगी और बत या ऑकड़े को छोड़ कर अगले व्यंजन के
( ६५ )
तृतीय स्थान के पहले न रखी जायँगी। जैसे नीचे के (किपमिस!
शब्द में । यहाँ “क” के ठतीय स्थान की मात्रा बीच में 'स' बृत्त होने
फे कारण 'क'! के ठृतीय स्थान के पश्चात् ही रखी गयी है । अगले
व्यज्ञन सम के तृतीय स्थान के पहले नहीं। जैपे--लं० १
चित्र नीचे
९ हे ८० . ८ ० ॥॒
« “ही 0 +०>+ दूँ पल हु ९:9८ _ः हि
माशूक पशुपति जोशीज्ा परेशान
किसमिस कासनी संसार
शुब्द-चिन्ह
पक न ठ्5 थी ८?
>क ९ ५
& |
सामने - सम्पूण... सम्बंध - समय यद्द
साहब - सुनचइह सत्र-सबसे-सूबे. सबब सबक
इस इन
( ६६ )'
अमभ्यास--१६
व्य म
७ ९9 ( जा हे अ ४ ह * के रे,
का ही शक
९. ७८ 4 ह ०“ - | ] रा हर कर
हा ले 99 #४ ४७ 9 हि]
4४
कल
( ६७ )
अमभ्यास---२ ०
4१ 6४ | ४ +
87५६
ली. ४. टी
हम दधने हमें हसारा हसको
राक-द्वारा ओर-भरत ओर-रुपया
सर शर स्र॒ शाम सार घाल सेव
कूछ टप्स जप नस्न॒ भेप्त लेख घोचा
नाश्वा कसाई. काइस. कोसना समोत्ता
किपमित चूतना जाबइसाज तसकौन . नौसादर
आसमान मुसलमान वास्तव व्यवत्ताय विकसित
शासक को दिन-रात बड़ी सुप्रीवत का सामना करना पढ़ता है।
शासन करना कुछ खेद्व नहीं है।.| | «
भत्ने शासक हमारी शिक्षा को सरत्न बनाने शोर उश्के द्वारा
विद्या की ओर--मरद और ओरत दोनों की--सुरुचि लगाने का
सुधिचार करते हैं ।
इससे इसको रुपया भ्रोर धन मिलता है |
इम सरस्व्रती को दापिद्व करंगे। यह हसने पदले है से निश्चम
किया है।
( ६८ )
स, शु ओर ज (२)
चूँ किये स, श बृत शब्दों में सबसे पहले ओर अंत में
पढ़े जाते हैं. इसलिये यदि शब्द के पहले या अन्त में मात्रा
आवे या किसी शब्द मे 'स” अकेला व्यंजन दो तो “'सः को
वृत्ताकार न बनाकर 'छ? व्यव्ज्ञन को पूरा संकेत लिखना चाहिए |
जैसे--नं० १ चिन्न नीचे
| ४:76 ,
रु के त +
० 0 आय 0 34
3
१. पैधा आश शो
तासा ओसारा मूखा
पर यदि आरंभ में *अ या आ' की मात्रा आये या अन्त में
थे! की मात्रा आवे तो . आरंभ में एक छोटा डैश लगाकर बृत
लिखा जाय और अंत में वृत को बढ़ा कर एक छोटा सा डैश त्ञगा
दिया जाय | इससे आरसभ में 'अ या आ! की मात्रा लगी, समझी
जायगी और अन्त मे “ई? की सात्रा समझी जायगी। जैसे--नं०२-३
२ असामी असली अस्तवल असेम्बत्ती
2. सारूसी खुशी पासी हसी
यह तुम पहले ही पढ़ चुके दो कि स और श के
उच्चारण में विशेष अंतर नहीं 6 और मुद्दावरे से सरलता-
पूर्वक समझा भी जा सकता है और इसलिये उनके लिए एक
ही संकेत वनाये गए हैं पर यदि उनको 'स' बुत से लिखने में
अशुद्धि का डर हो तो 'श! को उसके पूरे संकेत से लिखना
ु ( दृ£ )
चाहिए | जैसे--नं० १ चित्र नीचे
९१. 0) हे और (॥2 ५ आर ८८ न्+) ५
२ कर श पी
१--(४' सर और शर (बाण) (7) शव और सब (सैकड़ा)
बच के स्थान पर जब 'स्रः उच्चारण करते हैं तो ख वृत्तया स
व्यक्ञन का प्रयोग होता है । जैसे - न॑० २ चित्र ऊपर
२०० पटपद षडरस
डक की
_ £%» | ....७..
/ लि 5 08
जिस जिन चाहे-चाहते-चाहिए छोटा अच्छा
मालूम-मानों सथ्य-सतलब
आज-जाय भोजन-समाज-जो जीवन-जरूरी
9
की हट
प्
( ७० )
बज 22 9
“न ३ पक हो (
3
( ७१ )
अभ्यास--२२
न 7 ३ हर
(६ 3 5
५ है ५ |
लाला-लम्बा लोग-लेकिन लिए-लाये
ऐसा-आशा स्वतः इसलिये-इश्वर
अब कब जब तब
शिवात्रा शीतल सरुस्थज्ष श्वास्थ्य
सुधार अवश्या मसखरा माता
नासमऊझ नाक्षयान चोकत 'चौदस तस्वीर
दुश दशसलव दुश्तूरो दस्तावेज
गोशाला उल्लास काशमीर संख्या
लाता सोताराम और बहुत से लोग बस्ती गये थे। व हाँ से
बहुत सी चीजे लाए।
पेप्ता काम न करो कि लोग तुमझ़ो बुरा कहें | इश्यर से डरो।
झगर रोशनी न हुईं तो ब्लोग शाम को काम कैसे करेंगे
वह ऐसा तेजु दौद़ा कि गिर पड़ा । इसलिये आज हुकूच नहीं
गया ।
चुम्र यहाँ कब झाये। जब से तुप्र यहाँ थे तब से में भी था।
अब चलो घर चले।
सर्वेनाम
( ७छ३ )
सचनाम !
सर्वेनाम सें अधिकतर शबद-चिन्हों का ही प्रयोग किया गया
है। बहुत से स्वेनाम चिन्ह पहले आ चुके हैं और बहुत से
अभी वाकी हैं। इनको किन संकेतों का सहारा लेकर बनाया गया
' है, बह यहाँ पर दिये जाते हैं । कि
मूल सर्वेनाम में उपरोक्त चिन्ह लगाकर गरदान बनाई गई
है | प्रवाह का विचार कर कभी कभी ये चिन्द्र उलट पल्नट दिये
गए हैं| जैसे--'स! के लिए। 'र? का चिन्ह कभी पहले और
कभी बाद में आया है जेसे--हसारा । इसमें 'र” का चिन्ह पहले
आया है ।
.. पूरी सूची अगले पृष्ठ-पर दी जाती है। इसको ध्यान से
सममू कर याद बरने में बड़ी सरलता पड़ेगी ।
( ७४ 3)
पर ॥ 80% 4
0. ४ ४“ 97 ३ शत ५ $
् ५० ७ | 225 आर ४ सम
। ॥ ग॒ ॥.] ई
0 2600 महक हु] [१५४ जल '
४ ५ । | | | ५
ग आग ४ 9 ॥. ह' ९, हू गा
रो, है ५ 2 0 : €!
। ९ । |
00 आज ओह
| 3 १ «8:67 7
5 3 लक. 5 लि
० 9 उ ०४ डहेडंडडएईं् ह
( ४५ )
$. में सुझसे मैंने मेरा सुझको' सुझे सुझमे सुझपर
२, उस्त उससे उध्तने उसका डउचस्तको उसे उसमें उसपर
३, हम इससे दमने हमारा दमको हमें धदममें इसपर
४, तुम तुमसे तुमने तुरद्वारा तुमको सुस्दें तुममें तुसपर
४ इस इससे इसने इसका इसको इसे इसमें हलपर
६ इन इनसे इहनने इनका इनको इन्हें इनमें हनपर
७, तने उनसे उनने उनका उनको उन्हें उनमें उनपर
८. आप आपसे आपने आपका सझापको ३८ समापमें आपपर
६. जिस निप्तसे जिसने मिसक्ना मिसको जिसे जिसमें बिशपर
१०, तिस तिपसे तिसने तिसका तिध्को तिसे तिसमें तिप्तपर
११, किस किससे किपघ्तने किप्रका किप्तकों किसे किप्तमें किघपर
कुछ और सर्चनाम
१९५, जो जो लोग कौन कुछ कैसा. किसी
१३, सो कोई कई ऐसा जैसा. तैसा
१४७, वेसा क्या यह ये बह वे
थी के लिये १५-नं० १ का चिन्द्र और दी? के लिए
१५-लं० २ का चिन्दर निरधारित किया गया है। जैसे--नं० १५
न॑ं० १५-पहली लाइन--कभी. जी. तभी ध््भी
नं० ९५-दूसरी लाइन--मैंदी तूदी हमददी वही यही येद्दी
नं० ९५-तीसरी लाइन--में त्षी हससी तुमभी इसी उसी
झादि--
तरह का चिन्ह 'त' लगाकर बनता ह जेंसे--नं० १६
१६, जिस तरस किस तरह इस तरह उस त्तरहु
( ७दे )
नोढट--(१) स्थान का पूरा ध्यान रहे । जे। चिन्ह लाइन के ऊपर है
वे ऊपर लिखे जायें और जे। चिन्दर लाइन पर हैं, वद
लाइन पर लिखे जाये | लाइन के ऊपर और लाइन पर
के शब्दों का पूरा विचार न करने से अथ में बढ़ा अंतर
पड़ ज्ञायगा। जेसे---
मैं, उस, हम, तुम।
(२) लिद्-मेद से चिन्हों में अंतर नहीं पड़ता। जैसे--«
कैसा कैसे कैसी, ऐसा ऐसे ऐसी।
(३) हिन्दी भाषा में स्वेनाम का अत्यधिक प्रयोग होता
है अतः विद्यार्थियों को इस प्रकरण को आजिह कर
लेना चाहिए | जिसकी लेखनी से ये जितना ही अधिक
भिस्सृत होगा उत्तना द्वी अधिक सफल्न लेखक धन सकेगा।
(६ ७८ )
अभध्यास--२४
१. जो स्वो यद वह वे कौन. कोई
२. ये मैं तुम मुझको मेरा तुम्हारा इमारा
३. इनसे इनपर उसका हसारा हसपर तुमपर
२. ही तुम-भी दध सरद उस-तरद किस-तरह
५. जो दोग केध्ा क्या कभी झसी
६ तमी. मैेंडी वचह-भी . तूद्दी तुमसे... झुमसे
७. सुन्दरबन एक जड़ल है। इसमें कईँ किस्म के जानवर कुछ छोटे,
कुछ बढ़े रहते हैं। जो जिसको पाता है खा जाता है। कोई किसों
का विचार नहीं रखता । जिछ-तरह के जानवर यहाँ रहते हैं उनसे
किपतो-तरद भी जान छुड़ाना सुश्किल दै।
झू. उछने उसको कलम और उसकी ही स्याददी से भाप कई तसवीरें
खींदी । न तुमको घुज्लाया न तुस्हारे पास आया । यह सुममें कमी
थी #ि मैंने घुमझो, न तुम्दारे बदन को इसकी कोई सूचना दी
तिससे तुम एुस्सा हो गये ।
अभ्यास--२४
[ चोट--नीचे के वाक्यों में करीब १ सब पिछुजे शब्द-चिन्ह आ
गये हैं। ]
१, उसने उप्तको पुक पैसा दिया।
२. बहुत बड़ी बात और बाद में घुरी बात दोनों बुरी है।
8, अब तुम कब आशझोगे | जिपत-तरह सी हो उनको साथ छेकर अति
- तेजी से आना ।
हु
( ७६ )
वह यहाँ व्दों जहाँ कहीं भी हो सका गया पर मार स्राने के धिचा
झोर कुछ नहीं पाया ।
इंश्वर स्वतः कुछ नहीं करता लेकिन वह इसारे, तुस्द्ारे या उनके
द्वारा सारा काम करता है ।
यदि तुम चादो तो एक अथवा दो अमरूद खा सकते हो ।
वे बाजार गये थे। वहाँ से भाँति भाँति और तौर-तौर के लित्ोना
इत्यादि अत्यन्त सरते दास पर ल्ञाए। क्या अब आशा की जाय कि
लड़के खुश हंगे ।
सामने जो लाता साहब लम्बी छड़ी लिये खड़े हैं उनके द्वारा
कई ऐसे काम हुए हैं जिनको भाज छोटे बड़े सब मानते हैं। अतः
पहले उनकी बात और बाद में उनके साथी की बात मानी
जाती है ।
सुबद उठकर सबझू याद करना चाहिए । यह जोचन के लिए जूरूरी
है। विद्या से सम्घन्ध रखने चाढे समाज को इस ओर सब ज्लोगों
का ध्यान खींचना चाहिए ।
दान में रुपया-गाय आदि सब कुछ देना चाहिये। इसके सबब
से सम्पुणं काम तथा घन सिलता है। रात-दिन, औरत-मरद
सबको जब कभी समय मिलते, थोड़ा बहुत जो कुछ हो सके, यह्द
कास करे । इस तरह हाथ जोड़े मिससे सालूस द्वो मार्तों और
कोई काम से कुछ मतलब हो नहीं है तब अच्छा फत्र द्वोता है।
( ८० )
का प्रयोग
एक छोटा सा घुमावदार ऑकड़ा व्यंजन की सरल रेखा के
अंत में जब बाये' से दाहिने तरफ जोड़ा जाता है तो उससे
'तः का अथे निकलता है। यद् ऑकड़ा कवर्गे में ऊपर की
'तरफ और य, र (5), व और ह् में बाएँ तरफ लगता है
जैसे--न॑० १ चित्र नीचे
९.०७ ९. «20 २... ....३.......5) . .
लक, 6 |,
शक 5 अं ० 0
४ /79. +- .25..
श ...« ९ | व पर 9 | रे ८ हैक १... नम ०० ००
पं थक न श न बचने बडे हक दे नबी ५ कब्० ०७ ०७
्षकिन 2 अति ० हद कै
५७०.. कर पे आओ _>- 4
६. 64
२. मय /क ही 2 ० है क
मम कील जल 40 का पे
१, रत २, पद ३, खत
डे. गत # 5ते
( 5१ *)
व्यंजन की वक्र रेखा के अंत में यह छोटा आँकढ़ा: घुमाव
के साथ अंदर की तरफ लगता है और उसमें एक लम्बाकार
छोटी सी आड़ी रेखा हलके डेश के रूप में कूगा दी जाती है।
बक्र रेखा में ऐसे डेश लगे हुए आँकड़े से भी “त” पढ़ा जाता
है। जैसे--नं० २ चित्र पृष्ठ ८० ह
१. सत्त २, लत ३. डृत
४2... संत एप, नंत
केवल क्रिया के साथ इस घुमावदार आँकड़े का अथ ता,
ती, ते? दोता है ओर वाक्य में मुहावरे से अथ ज्गाकर सममा
जाता है कि स्थान विशेष पर उसका अथथ क्या है,ता, ती या
ते जैसे--नं० ३ चित्र पृष्ठ ८०
. १. मैं जाता हूँ। यहाँ आँकड़े का अथ ५ता? है। यदि
सत्लीलिज्ग में हो तो इसका अथ 'ती होगा
२, वे जाते हैं। इस वाक्य में इस आँकड़े का अथ्थे "ते?
होगा | बहुबचन है ।
संज्ञा के साथ यह आँकड़ा व्यंजन की सरल और वक्र दोनों
रेखाओं में केवल “त? का अर्थ देता है। यदि कोई स्वर “तः के
पश्चात आता है तो 'त? का आँकड़ा नहीं बनाया जाता, पूरी
रेखा लिखी जाती हे जेसे--नं० ४ चित्र पृष्ठ ८०
पोतच गोत भात, सात नाव. खात
लेकिन - पोता गोता साता नाता
यह 'तः का आँकड़ा व्यंजब के सरल रेखाओं में लगकर
बीच सें भी आता है और इस तरद्द मिलाया जावा है। जैसे---
नं० ५ चित्र पृष्ठ ८०
पतप॒ पतक रतर कतक कत्तप चतट
६
(८२ )
जहाँ ठीक न मिले वह्दों संकेत पूरा लिखा जाय । जैसे--
नं० ६ चित्र पृष्ठ ८०
रवह् आदि
जब “व” बीच में आता है तो यद्द ऑकड़ा केवल “त” का ही
उच्चारण देता है “ता, ती, ते! का नहीं । यदि “व” के पश्चात्
कोई स्वर आता है तो वह अगले व्यंजन के पहले नियमानुसार
लगाकर प्रगट किया जाता है | जैसे--न० ७ चित्र पृष्ठ ६०
जतवन जताना जोतना पोतना पोताना पतला पुतत्ना
बीच में यह “व” का आंकड़ा ' केवल सरल रेखा के अंत
में लगकर आता है, वक्र रेखा के अंत में लगकर बीच में नहीं
आता। जैसे--नं० ८ चित्र पृष्ठ ८०
पताका -- लेकिन -- मतलब नतीजा
अम्यास--२६
लि मनकक |
कल जज ५
कं
नै
7 की 0 2 पक
कद्दते-त्ताकत वक्त-किताब
वास्तव-अथवा वास्ते सबंधा
एकद्स एकट्ठा
ज्यादा चीज़
अत ॥ 8 ३ 465५ धर
५. शत 2 मल “इन 4 ४ 5
5 कम जे 0 मद 2. आर ५
2 3
व आम रा ॥ 28 6 मन
४ #. -पी-- रे 0५.09... लक !ः ल्८
३३6 4 ७ककक ७
लि मम
६. ही
, छत , ८५ .. सी थक 22 कल: हद.
को मत + मा / 2 लक
ह फ कक कर 2 22
4 हु ना है रचा
( उब )
अभ्यास--२७
87 >
> जनक
0 आल
जन 4
जैटीय "35 बकेकेडड 55 ५८ रा जलन:
आ्रावश्यक-शिकायत शक्ति-मकते-सके +
तथा-तक-ताई' तो तथापि
अन्य-नाई-नया नीचे-नित्य-निरा
खाता खेत सारता ढोता रोती. हँखती
, अस्त झादत आपत एकॉत औसत झागत विपत
कतरना करता काठता कौमत कौलतित गरणजता
झसंगत छाता छुता जावता नयाता नीति पढ़ता
कतार चीरता भारत श्थानोचित गंग्भौरता
« तुम निरे सूखे हो । कोई अन्य नई बात बोलो । नित्य नित्य चड्ी
बात कहते रहने से द्वोग नीचे गिरते हैं ।
तुम्हारी शिकायत सुनते सुनते जी ऊब गया। अब यह आवश्यक
है कि जद्दों-तक हो सके शक्ति भर तुम सुधारने की कोशिश करो,
नहीं तो पिगेगे।
, तुभ तथा सुरद्वारे दोश्त हमारे तड़के की नाई गेंद नहों खेल सकते
तथापि खेलते रहो, आदत पढ़ेगी ही ।
( ८४ )
न का प्रयोग
जिस तरद्द किसी व्यंजन में बाये' से दाहिने तरफ का का उिमवा-
दार ऑँकड़ा लगाने से “त” बनता है उसी तरह यदि दाहिने
बाएं की तरफ घुमावदार एक छोटा सा आँकड़ा व्यंजन को सरल
रेखा के अंत में लगाया जाय तो 'नःबनता है। जेसे--नं० १ नीचे
९ जम ०६ > >> 54 बक) आ लात) जि कर पक
5 रस न अमर + ६ न मकर मी जमिकीदर
5 2 ० 2 कयकर ॑ _
है
20 कक पद
कह व पा नकल... न 08 6 352 के
हर बग्ूद् 5 पा, हक 27 220822:43<
हे कर
अहम
५-0 # अली
का. ा अल
और, ५
न इस तरू नहीं का
गे है रह
कम... >थ के रा है । >ऊ. ब० *% » ञ 5 टे हनन,
के
६० पत श्च खत गन
( ८६ )
वक्र रेखा में यह ओंक़ृड़ा उसके अंत में अंदर एक छोटे
घुम्ताव के रूप में लगाया जाता दे। इसके और “त' के आँकड़े में
केवल इतना दही अंतर द्वोता है कि 'त! के ऑकड़े में एक छोटा
स्रा हलका लम्बाकार डेश जगा रहता है और “न” के आँकड़े
मे कोई डैश आदि नहीं रहता । जे से--नं० २ चित्र पृष्ठ ८५
२--दन सन लव आदि
क्रिया के अंत भे इस ओऑकड़े का उच्चारण “ना या ने?
और कभी कभी नी? मुहावरे के अनुसार होता* है। जैसे---
नं० ३ चित्र पृष्ठ ८४
३--रखना-नेन्नी. लड़ना-ने. मारना-ने. पीटना-ने
रोनाने. लेना-ने-ती
संज्ञा के अंत में इस ऑकड़े का उच्चारण केवल “न दोता
दै। यदि कोई सात्ना 'न! के पश्चात् आती है तो “न! का ऑकड़ा
न लिखकर पूरी रेखा लिखी जायगी। जैसे--नं० ४ चित्र
पृष्ठ ८५
४--कान काना काने आदि
परन्तु -+- शान मान पान आदि
यह “न! का ऑकड़ा 'तः आँकड़े के समान बीच में भी आता
है। केवल अंतर यह हे कि पतः का ऑकड़ा वक्त रेखा में लग
कर बीच में नहीं आता पर यद्द 'न! का आंकड़ा बक्र रेखा में
भी लगकर बीच में अता दै | जैसे --नं ० ५ चित्र पृष्ठ ८५
ए--पनप॑ क्रतंक चनप
तदत सनन खतनर लनर
( ८७ )
जब यह आऔँकड़ा क्रिसी व्यंजन की दो रेखाओं के बीच में
आता है तो इसका अथ केवल 'न' होता है और मात्रा आदि
अगली रेखा के पहले नियमातुसार लगाई जाती हैं।
जैसे--नं० ६ चित्र पृष्ठ ८५
६--पनसारी बनिज्ञ बनेठी चूनादानी ताना
बीच में ज्ब 'न' आँकड़े के साथ दूसरा अक्षर सरतता-
पू्ेंक न मिल्ष सकता हो या जब प्रवाद में रुकावट का डर हो तो
बीच में “न! का आँकड़ा न रखऊऋर पूरा “ना लिखना चादिए।
जैसे--न॑ं० ७ चिन्न पृष्ठ ८५
७--खनिजे
पानदान
पहले तरीके लिखना ठोक दे दूसरे तरीके से नहीं।
[ नोट--अ्रवाह्द से यद मतलब होता कि जद्दों तक दो सके
यदि संकेत आगे को बढ़ते हैं तो आगे ही को बढ़ते
जायें पीछे को न हठें। ऐसा करने से रुकावट होती
है जे! इस संकेत-लिपि के लिए अत्यन्त द्वानिकारक
है।]
5
२ >>
३...
जौन-ज्यों. क्यों उ़ौसनत्यों. या
किन किनसे किनमे? किन्हें किनका किनको किनमें किनपर
जिन जिनसे जिनने जिन्हें जिनका जिनको जिनमें जिनपर
६.2 ( ७
(ः
न
रा
६...
अपना-ती -ने इतना-मी-ने उतना-ती-ने
कितना जितना. तितना
ठुगुना तिगुना आदि, “न! को संख्या के नीचे लिखने से गुना
तमास-ताज्जुबच. तुरन्त-तले तनिक-कतई
८ध )
अभ्यास--२८
॥...८४*, ( गम. # 'डनीनन ६० (न
है; ७४०३४ के ६ ५ ग | हे । |
है हे 2 हा “5
8० कि 5
( ६० )
अभ्यास-- २६
जनन चरम पसन्द दमन नेशन निशान
निस्त उठाना बतलाना भावना. क्षिस्तान
कौनसिद्ध चेतावनी कानून जल्पान.. पधौना
सुघ॒तमान फिल्लस्तीवन. झादशानुधार जनानौ
अनुसार कामिनी कारस्तानी मरदानी
खदके अपने अपने खिलोने और पकवान ब्विए खे हने जा रहे थे ६
वे जितना ही खेलेंगे तन्दुरुस्त होंगे ।
यद बढ़े ताण्डव की बात है कि बद दुगुना, विगुना, चोगुना दो
खाता है फिर भी उतना काम नहीं करता जितवा कम खानेवादे ।
हमको कितना ही कास करता पड़े झार इस बात का कतई
दनिक भी विचार न करें तुरन्त जो काम दो भेज दे ।
मैं इतना काम तो तुरन्त ही कर खक्ता हूँ। मेरे नोचे भौर भी
बहुत से काम करने वाले झाइमो है जो तम्राम कामों को बड़ी
झासखानों से कर सकते हें ।
चिराग के तले हमेशा अंधेरा ही रहता है ।
९ का प्रयोग
न ८
७ ० 8 हा हि
के हे बे
; (र्
( थध्३ )
र का प्रयोग
जिस तरह सरल व्यंजन के अंत में बाएँ तरफ आँकडढद़ा
लगाने से “न! पढ़ा जाता है उसी वरद्द सरल व्यंजन के आरंभ
में बाएं तरफ बाएँ से दाहिने को घुमाव देकर जो आँकड़ा
लगाया जाता है उससे नीचे का र लटकन, रेफा या ऋछ की सात्रा
पढ़ी जाती है। “चक्र शब्द में 'र” लटकन, “घम में रेफा और
#पा! में ऋ की मात्रा लगी है। कदग में यह आँकड़ा नीचे कीं
तरफ लगता है। जैसे--नं० १ चित्र प्रृष्ठ ६२
१--प्र -पू क्र-क चूनच द्रन्द्वी आदि
यू, र (७), 'ल', और (ह? के संकेतों में यह आँकडढ़ा
नहीं लगता बल्कि पूरा लिखा जाठा है। जैसे--नं ० २ चित्न प्रछ६ २
२--हृर चर यर आदि
वक्र व्यंजनों में भी यह न! की तरह व्यंज्नन के अंत के
बदले व्यंजन के आरंभ में उनके भीवर लगाया जाता है।
ज्ैसे--नं० ३ चित्र पृष्ठ ६२
इन्च्त - तु द्र्-च्र ल्रन्स ख्नच्मू जअननचे
ल ओर र (सी) में यद् आंकड़ा नहीं लगता बल्कि पूरा
लिखा जाता है । जैसे--नं० ४ चित्र पूछ ६२
४--लर या लर 5. रे यारर आदि
जिस व्यंजन में यह 'र' का ऑँकड़ा लगता है पहले वह व्यंजन
पढ़ा जाता है और फिर यह आँकड़ा पढ़ा जाता है। पहले आंकड़ा
पदुकर व्य॑ज्ञन नहीं पढ़ा जाता | जेंसे--चं० & चित्र पृष्ठ
छब्न्ग्लं - के थ्र्-्पू द्र्न्तृ अञ्र्-र् जन्नत
नियसालुसार जो मात्राएं इस 'र' ऑआँक्चड्ा में लगे हुए
व्यंज़न के पहले आती है वद्द पहले पढ़ी ज्ञाती है आर जो
( ६४ )
भात्राएँ व्यंजन के बाद आतीः हैं, वह व्यंजन के बाद न पढ़ी
जाकर (२? आंकड़े के बाद पढ़ी जाती हैं, क्योंकि व्यंजन और “र?
आँकड़े के बीच कोई मात्रा नहीं होती। जैसे--नं०६ चित्रप्॒ष्ठ ६२
प्रेस प्रेम प्रताप श्री अन्न प्रस्थान
त्रिजटा प्रोग्राम बृंठेन प्रोह्दित पृथ्वी
३
कत् शिप्रा
ऐसे शब्दों को भी इस 'र! आँकड़े से लिख सकते हैं जहाँ
व्यंजन और 'र? आँकडढ़े के बीच कोई दीघे स्वर न आकर छोटी
अ, इ या उ की मात्राएँ आती हैं। जैसे--नं० ७ चित्र प्रृष्ठ ६२
७-- पेपर पीपर बरखात सरना मरना
डरना परम गरस जरसनी
(५
फरमान. घर्म के नसे फिर
कानपुर
पर यदि पहले व्यंजन और “र” के बीच कोई दूसरी दीघे
मात्रा आवे या (९? अपने पहले आनेंवाले' व्यंजत के साथ न
पढ़ा जाकर अकेला या बादवाले व्यंजन के साथ पढ़ा ज्ञाय तो
4?” का ऑकड़ा न लिखा जाकर “२? पूरा लिखा जाता है। जैसे--
धपरा? में 'र? 'प? के साथ न पढ़ा जाकर अक्केल्ा पढ़ा जाता है
ओर 'चरस” में 'र” अपने पहले व्यंत्रत “च! के साथ न पढ़ा
जाकर बाद के व्यंत्रन स' के साथ पढ़ा जाता है !
इसलिए यहदोँ 'र! का पूरा संक्रेत लिखा ज्ञायगा, आँकड़ा
( ६४ ) -
नहीं । जैसे--नं० ८ चित्र प्रष्ठ ६२
एप पपरा सकरी बाजरा भुखमरा
तबगे ओर “स” के अक्षर दाएँ-बाएँ दोनों तरफ से लिखे
जाते हैं। '? का आँकड़ा भी इसीलिये दोनों तरफ लगता है ।
चेक #
जेसे--मं० ६ चित्र नीचे
६ _.) (६. 9) |
९०. विज
९१ हे /
५
६ जे, छू. सत्र, स्ृ
इनमें सर्वर लगाने का वह्दी नियम है जें। इन व्यंजनों के
अकेले होने पर लागू होता हे अधीत् यदि किसी शब्द में यह
अकेला ज्यंनन हो और उसके पहले फोड़ मात्रा हो--चादे उस
व्यंजन के दाद भी मात्रा दो-तो 'र! ओऑडहूड़ा सहित व्यंजन का
वायाँ समूह आता है जैसे--नं० १० चित्र ऊपर
हिट
१००इनत्र अन्न + आा
(६ ध्दं )
ओर यदि मात्रा बाद में आती है--पहले नहीं--तो दायाँ
समूह लिखा जाता है। जैसे--नं० ११ चित्र पृष्ठ &५
- ११--थी श्री आदि
जब ये दूसरे व्यज्नन से मिलते हैं तो सुचारुता के विचार से
दादिने-बाएँ दोनों तरफ लिखे जाते हैं जेसे--नं० १२ चित्र पृष्ठ ४५
१५--त्रिकाल त्रिशंकु आश्रम ओरोमान
अस्यास--३ ०
९ 0 है सु
ट 0 हे है
३ पा 5 न
परन्तु-प्रायःः प्रत्येक. पूर्वेक-अति-प्रतिकूल
तरह-तरफ तरसों-बेहतर भीतर-तरकीय
कर-करके-नकारण करीव-किनारे
पल 000 पा
| 30% कह 6 # पक की हे है १ लक १
न ६ (की 2 डे
ह पं पी 888 लक मा हि ह!
कल कीिप र क शक 5 «४-०५ ४ मम हि ॥ बडा जैन «०
हनन ल न व ली अल: ही आय
अंक $ ६ ५ ७ ०० ककआकक +क >> क ७ ) का कोड, 9). बह है /ः म -]
है अभ्यास--- ३ै १
की कु
शा मु
57४९ 49246 ० ०
नी 5 0
मं ० 0. 2
पास » पश्चात् पेश्तर आपस
बाहर - खराब देर दूर - धीरे
इधर उधर किधर जिधर तिधर
जैसा चैसा तैसा
गये आम्र ऊपर चम्म चरस परपघन प्रसन्न
प्रताप घरतन प्रदेश वरधा प्रजा चरचा के
प्रगट प्रकोप निरच्छुर गरमवती करनाल
अप्रसत्न दुशन अपरिचित चारुपात्न निरजोश पुरजोश
गर्वोत्ञा चमंसीमा नौकर पराक्रम अम
जैधा करोगे वैघा फत्न मिल्रेगा । बच कर किघर भागोगे। जिघर
भागोगे तिघर द्वी सार पड़ेगी ।
झापध में मिन्नकर रहता चादिएु। बाहर बहुत देर तक था
बहुत दूर तक घृमना खराब बात है ।
खेलने के पश्चात् तुमझो इधर उधर न घूमना चाहिए | घर पर
झपने बाप के पाप बैठकर पढ़ना चाद्विए । पेश्तर सो तुम ऐसा
नहों करते थे। धीरे २ तुमझी आदत सुधघारना चाहिए ।
रे
( ६६ )
क्ष व्यंजन
जो आँकड़ा सरल रेखा के आरम्म सें बाएँ से दाहिने की
ओर, ज्िखे जाने पर “२” लटकन प्रगट करता है, वद्दी आँकड़ा
यदि दाहिने से वाएँ को लिखा जाता है तो 'ल” प्रगट करता है ।
कवगे में यद ऑकड़ा आरंभ में ऊपर की ओर लगता है |
यह आँक॥ड्ठा भी 'र! के समान व्यंजन के बाद ही पढ़ा जाता है।
ज्ैसे--सं० १ चित्र नीचे
आल
5५ 5 पर,
के जी आए 3 उंदज शक जी
8. कर व. ० 6 रच न जम ४ बल
ह तक 5३. “न
थू. आय + ही आ हा
का
5 ओम पी
0 ५8 | हि. कल
८ ०,
न.
२-- पत्ष व्त्न
दक्र रखानों में यह आंकड़ा उनके भीतर आरंभ सें प्र!
0
( १०० »
के ऑकड़े के स्थान पर उससे-बडाःफैला।हुआ आंकड़ा बनाकर
प्रगट 'किया जाताःहै.। जैसे--न० २ चि० प्रू० ६६ ,
२-- वल्ञ ८ सल मत्न नत्र
प्रारंभ या बीच में 'र” की तरह जिस व्यंज्ञन में यदद 'ल” का
आऑकडा जगा रहता है अधिकतर उसके और “ल”के बीच मे कोई
स्वर नहीं आता पर सुचारुतवा के विचार से कटद्दी २आ, इ, 5,'
की हश्व मात्राएँ रहने पर भी यह आँकडा लगाकर “ल” लिखा
जाता है । जैसे--नं०-३ चि०'प्ु० ६६
३--पत्न, बल या बिल, मसल चल कलकल दलदल
र॒ के ऑकड़े की भाँति ल का ऑकड़ा भो य,।र, ल, व और
हू में नहीं लगता ।
नियमानुसार आदि और मध्य में क॒द्दीं पर भी, जो मात्ना
व्यंजन के पहले आती द्वे बह व्यंजन के- पहले ओर जो मात्रा
ज्यंजन के बाद आती दे वह “ल' के बाद पढ़ी जाती है क्योंकि
व्येज़न और ल के बीच कोई मात्रा नहीं आती । हस्व स्वर, अ,
इ, उ की जो सात्रा आती है वह लगाई नहीं जाती आप ही पढ़ी
जाती है। जसे--नं० ७ चित्र प्रू० ६६
४०-अचल- अकल छिल्लकका मुल्क्र पत््भर पत्षक
कलकत्ता संगली मंगलाप्रसाद «
ल के ऑकड़े और उसके पहले व्यंजन के बीच यदि “रः
आओऑकड़े के समान अ, इ, उ की हस्व मात्रा को छोड़ कर कोई
दूसरी दीघ मात्रा आवे-या “ल? अपने पहले आने वाले व्यंजन के.
साथ न पढ़ा जाकर अकेला या बादवाले व्यंजन के साथ-पढ़ा जाय
तो 'ल” का आंकड़ा न-लिखा.जाकर “ल? पूरा लिखा जाता है जैसे
ही
( १०१ )
पुतला में 'लाः त के साथ न पढ़ा जाऋर अकेला पढ़ा जाता है|
इसलिए त में त्का ऑकडा न त्वरगाकर पूरा लिखा जायगा |
जैसे--नं० ५ चि० छु०-६६
४५ौ- मेल खेल. रेज्ञ पोज्च॒ पाला
माला गोला टला पिला
जैसे पहले ही बताया जा चुका है तवग और स के अक्षर
दाएँ-बाएँ दोनों तरफ लिखे जाते हैं ओर इसलिए “ल?” का आँकड़ा
भी दोनों तरफ लगता है। जैसे--नं० ६ चि० प्ू० ६६
६-- तल दल सल
इनमें स्वर लगाने का भी वही नियम है जो व्यंजन के अकेले
रहने पर लागू होता है अथोत् यदि किसी शब्द में यह अकेला
व्यंजन दो और उसके १हले कोई मात्रा हो--चांहे फिर उस
व्यंजन के वाद भी कोई मात्रा हो--तो ल आँकड़ा लगे हुए
व्यंजन का वायाँ समूह आता है | जैसे--नं० ७ चि० प्रू० ६६
७--अतल उथला ऊद्ल
ओर यदि मात्रा बाद में आती है--पहले नहीं--तो दॉया
समूह लिखा जाता है। जैसे--नं० ८ चि० पृ० 8६
प+-दला द्ली
जब यह दूधरे व्यंजन से मित्रता है तो सुचारुता के विचार
से सुविधानुसार दाएँ-चाएँ दोनों तरफ लिखा जाता है।
लैसे--नं० ९ चि० प्ू० ६६
-- दलदल॒ कौशल. स्पेशल “पैदल
शब्द-चिन्ह
€मक लक अ
९ 0 36220 दा ००5) दो आक। हे
शक जे, 2. -
है ट ५ 5
9... कप प्र हि
काला-कल् केबल-मुश्किल
काबिल-बिला बल्कि बिल्कुल - कब्ल - बल
हिस्सा-हफ्ता हमेशा... हिन्दुस्तान-हिन्दू-हिन्दी
बारे-बार सेस्बर नम्बर
१ $ / स्ी
२ ० ०... ५205
रस के
जल-जलपा जेल जल्दी-बिजली
साधारण-सारा.___ सबेरा-सव॑. सिफे-शुरू-खुचसूरत
आा आए आता आता
हर न
( १०४ )
अभ्यास--३ ३२
अकुल्त _अशिक्ष -नाक्षा भअवत्न अटकल फुटकाज
उडकलू. कन्नफ पुतन्ली... कुलवान कोशक्ष
चुलबुल्ला तल्फना पत्रथी भसदका मेक भोजा
४. मतमसद् पतलना पतलून पतली सरत् साइकिल
कल्नमतराश ततल्घाना मज़मज़ भघलिदा
आप कब भायेंगे । जल्दी आना, अभौ तो बहुत सबेरा है, गहों
देर हो जायगी । बिल्ला आपके झाए काम न चढेगा ।
कॉसित के कहें भेम्बरों ने जेल का निरोक्षण |कर झाने पर
अपनी राय पेश कर दी ।
मैं सबेरे उठकर सिर्फ दूध पीता हूँ। इससे बदन पर रौनक
झाती है और खूबसूरती बढ़तो है ।
झाज के साधारण जब्नप्ता में कई पश्नों पर भरा पाइविवाद
रहा । नगर में जछ, विजल्ो, जेल भादि के प्रबन्ध पर बहस
रही । शुरू में तो कुछ गर्मागरमौ रही परन्तु जल्दी ही सारा'
कास खतम हो गया।
( ६०४ )
स्व, स्त, या स्थ, दार या तर, मप या म्ब के भाँकड़े
( ९१)
जो छोटा वृत्त किसी व्यंजन के साथ लगाने से 'सः को
सूचित करता है यदि वही बृत्त बड़ा कर दिया जाय और 'सः
वृत्त के दी स्थान पर किसी व्यंजन के आरंभ में लगाया जाय तो
बह बड़ा वृत्त रव॒ को प्रगट करता है। जैसे--नं० १ चित्र नीचे
१, स्वर स्वतः स्वप्त स्वामिन स्वागत
९. ...2 ९, ....) ७५... -....
इप्तमें मान्नादि भी 'सः वृत्त के नियमानुसार ही लगती हैं
ओर यदि इप्त रत्र, वृत्त के पहले कोई मात्रा आवे--चाहे वह
सात्रा अ या श्र की ही क्यों न द्वो--तो शब्द संकेत पूरे स'
ओर व” को मिलाकार लिखा जाता है जैसे--नं० २ चि० ऊपर
२--आश्यासन अश्व यशस्वी तेजस्वी
इस स्व! वृत्त का प्रयोग बीच और अँठत में नहीं होता।
य, व, और हद के आरंभ में भी यह वृत्त नहीं लग़ता। यदि
बीच में आवे तो 'स” वृत्त और “व” पूरा लिखा जाता दे ।
( २ )
इसी तरह छोटा सा एक चाप ( 876 ) जब किसी सरल या
बक्त व्यंजन के आरंभ या अंत में लगाया जाता है तो वह स्त,-स्प
या ष को सूचित करता है । चाप-बृत्त की रेखा ( परिधि ) के एक
छोटे द्िस्से को कहते हैं| इस चाप-को ब्यंजन में लगाते सम्रय
इस बात का खूब ब्यान रखना चादिए कि यह झआँकड़ा बढ़कर
( १०६ )
किसी दशा मे भी व्यंत्न के आधे के ऊपर न जाने पावे । जहा
तक हो यह आँकड़ा व्यंजन के आधे से कम पर ही लगाया
जाय | जैसे--नं० १ चित्र नीचे ८
१. मम
थ्् हल हि हिल
जी 2 05 नरम अप
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२. . ७४ ८७ 3 ५» ( % » _
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पर ७ ल 4 /छ.,. प्र 3- 0
सत-स्थ - ए-प स््त - स्थ - ४--ढ
सतत - सथ - ४--स सत - स्थ - 8--ल
पएनन््ल्स्त - स्थ - ध॒ , स+ल्-ल्स्त न स्थ - ६
र--स्त्र -स्थ - ४ ; क--स्व - स्थ - 2
यह चाप 'सतर वृत्त के नियमों के अनुसार लिखा और पढ़ा
जाता है और स्वर आ द् के भी रखने के वही नियम हैं । अंतर
केषल यह द्ोता है कि आरंभ में “अ य आ! आने पर भी पूरा
संकेत लिखा जावा है पर अंत में “है” आने पर पूरा संकेत न
लिखकर “'स” के नियमानुसारं वह चाप ज़रा डेश के रूप में बढ़ा
दिया जाता है। आदि या अंत में कोई दूसरी मात्राएं आने-पर
धस! वृत्त के समान, यह ऑकड़ा न ज्िखा जाकर पूरा संक्रेत 'के
( १०७ )
रूप में लिखा जायगा | जैपे--नं० २ चित्र पृष्ठ १०६
२--स्तन मस्त स्तृूप स्थान स्थल स्थिर रष्ट
कृष्ट दृष्टि
: पर--बस्ती जस्ता सस्ती मस्ती रस्ता बस्ता
नोट--यह आँकड़ा बीच में नहीं आता |
किसी व्यंजन के अंत मे ले बाप की तरह एक बड़ा चाप
लगाने से शब्द के अंत में 'दार-धार या त्र' पढ़ा जाता है ।
यह चाप व्यंजन की आधी रेखा के ऊपर तक ज़रूर जाना
चाहिए । इसके अंत में भी स्वर नहीं आता | यह चाप सरल
रेखाओं में व” की तरफ और वक्र रेखाओं के अन्दर लगाया
जाता है | जैसे--नं० १ चि० नीचे
0 0
ध्, हि 8... 30 00% 27 “5
हि. 2 8? बज
३- हमला 232 है. 25 मसल मिलिए न कप मल
२--प - त्र या प- दार - घार च-न्नया च - दार- धार
म-त्रयाम-दार-धार क-न्नयाक - दार- धार
अकेले व्यंजन वाले शब्द के अंत में इसका अर्थ अधिकतर
ज के अथथ में होता है पर एक से अधिक व्यंजन वाले शब्दों
के अंत में लगाने से यह दार या घार! के अथ्थ में भी आता
है। जेसे-नं० २ चित्र ऊपर
:( ०८ )
२-- पतन्न -पुत्र छुत्र तत्र यत्र. रिश्तेदार
इकदार गड़ारीदार मालदार सरदार मूसलाधार
यदि-अंत में 'ऐ' के अलावा कोई स्वर हो या स के बाद त्र या
दार आवे तो त्र या द्र लिखा जाता है। जे से--नं० ३ चि० ए० १ गज
0 /
३-- पवित्रा मिस्त्री “खसस्दार- /
पर यदि अंत में दूसरी मात्राएँ न आकर “ई! ही मात्रा
आधे तो घुमावदार चाप को “स' वृत्त'के समोन ज़रा आगे।बढ़ा
कर लिख देने से 'ऐ” की मान्ना लगी हुईं 'सममकी जायंगी।
लैसे--नं० ४ चित्र नीचे
20] >3- 4-८2 3 अप
कपल 3 3. फ का ग
9 .# 5: अध्ओ “
४-- पत्नी पुत्री ईमानदारी
यह चाप आरंभ में भी आता है पर जब आरंभ में आता
है तो फेवल “त्रः या 'त्रि' को सूचित करता है और पहले पढ़ा
>जावा है। मात्रा आदि नियमानुसार व्यंजन के पहले या बाद
में रखी जाती है और इस जाप के बाद पढ़ी जाती है।
जैसे--नं० ५ चित्र ऊपर
४-- त्रिकाल श्रिपुरारो त्रिशुल तैलोक पत्रिकूट
( १०६ )
जब आँकड़ा सरल रेखा में 'न' के आँकड़े की तरफ
सगाया जाता है तो 'दार या धार! के पहले “न! भी पढ़ा जाता
है और यथा-नियम उसे बढ़ा देने से 'ई? की मात्रा लग जाती:
- है। ल्से--नं० ६ चि० प्ृू० १०८
६-- दुकानदार दृकानदारी
( 9)
'प्! व्यंजन को सोटा कर देने से 'प या ब” लग जाता है पर
ऐसी दशा में (म' और “पप या घ! के बीच में कोई मात्रा नहीं
झाती। म॒ के पहले या 'प या ब! के बाद मात्रा आ सकती है |,
जैसे--न॑० १ चि० नीचे
हे ते...
या हे
लम्प लम्बा अम्बा कोलम्बो
बम्बा या बस्बा
अभ्यास--३ ४
न्ज्का
स्व॒राज्य - स्वास्थ्य. स्वय॑ - स्वतन्त्रता स्वरूप-स्वीकार
प्रस्ताव “प्रस्थान रास्ते "ता हन््दुरुस्त - त्ती
श्मन्र सत्र
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( ११९१ )
,. अभ्यास-- ३४
गे 3. 0. गली
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” ऐ / 8
सहायता समेत-सेतमेत खसहित-सम्मति
ध्रचम्भा - बार॑बार परसात्सा - समाप्र
महाशय - मुस्क्षमान सुसीबत - मुस्लिम
>-++१०;०-
स्वछुंद स्वदेशी स्वागत स्वामिन त्रिपाठी. जिम्मेदार
द्रखारत दस्दाना दस्तावेज दार-सदार ताम्बूल्
सूत्र योगशास्र रोबदार जमादार उदार धानेदार
दमदार सुष्टि स्थलचर दुष्ट तम्दाकू. छुष्टता
समष्टि. स्थापना हृपष्ट.. हतुति स्थिर सुघाकर
महा शय जी झाप किसी को सुसीषत को क्या जानें | हमझो तो
पिफ परमात्मा का दी भरोसा है। यदि वह सद्दायता न करता
तो श्रव तक तो में तुम्हारा शिकार बन गया द्ोता ।
वह चूहे को चुदेदानी समेत उठा ले गया। इसमें अचम्से की
क्या बात है | ऐसा तो चद्ठ पहले भो कहे थार कर चुका है।
जाधो शोर चूहेदानी सद्दित उसको छुज्ा लो ।
हिन्दू भर मुसलमानों में जो रोज बारंबार रूपडे होते हैं उसके
कई कारणों में से एक मुस्लिम-लीग और दिन्दू-सदह्ासभा ऐसी
संस्थाश्रों का होना भी है ।
अब इन रूगढ़ों का-पमाप्त करना ही इसारा उच्देय होना राहिए्।
सेतमेत बैठे २ रगड़ा करना अच्छी बात नहीं। इस विषय में
तुम्दारी क्या सस्सति है १
( ११२ )
लिज् ओर वचन .
यह तो तुम पहले द्वी पढ़ चुके हो कि शब्द-चिन्हों में लिंग
का कोई लिद्दाज नहीं रखा गया। क्रिया-शब्द भी मुद्दावरे से
दी पढ़े जाते हैं | 'बद आता है, वह आती है? आदि | संज्ञा तथा
विशेषण शब्द मात्नाओं या शब्दों के देर-फेर से बन जाते हैं
जेंसे घोड़ो-घोड़ा; गाय-बैल, हरा-हरी आदि। इसलिए लिंग
आदि के अनुसार शब्दों को बनाने के लिए कोई विशेष नियस
की आवश्यकता नहीं है |
वचन
जब किसी शब्द का एक वचन से बहुबचन किया जाता
है तो अधिकतर मात्राओं के देर-फेर से काम चलें जाता है
- जैसे--नं० १ चित्र नीचे
दि लि
9. 8-05 7 अल
१-- घोड़ा. घोड़े लड़का. लड़के
पर जहाँ-मात्राओं का ही हेर-फेर से नहीं रहा वहाँ बहुवचन
ध्य, थे, ओं, यो! आदि लग कर बनते. हैं उस दशा में शब्द के
अंत में संकेत के पास ही एंक बिन्दु रख दिया जाता दे।
जैसे--नं० २ चित्र ऊपर
२--लड़की - लड़कियाँ, . राज्ञा-रानाओं, मार्ला-मालाएँ
६ के . |
252 8
हर हे ः
ल कै (् ” *
आर हा
|.
( १९३ )
से भी यदि शब्द
हल दे जैसे-... /० चे०
क्कि हर ः
ज्ञेः
( ११४ )
दाहिने की तरफ रेफा के स्थान पर लिखा ज्ञाकर किसी व्यव्जन
से मिले तो उसमें स या स्व बत के बाद 'र! भी लिखा हुआ
समझा जायगा। जैसे--नं० १ चि० पृ० ११३
१-- सफर सफरी सत्र सिखरन छुवबर्णें स्वीकृत रवाक्षर
दो व्यंजनों की सरल रेखा में जद्दों कोण नहीं बनता वहां
(९ कौ तरफ बृत बनाने से 'र लगा हुआ समझा जाता दे ।
जैसे--नं० २ चि० पृ० ११३
२-- कसकर डसटर सपर - सपर पररपर
रब वृत बीच सें नहीं क्षयाया जाता |
पर जब दो सरल्ष व्यंजन या एक सरल और एक वक्र व्यंजन
के बीच कोण बनता है तो दोनों (सः वृत और “?? का आंकड़ा
अलग-अलग दिखाया ज्ञाना चाहिए। जैसे--नं० हे चि० पु० ११३
३-- डिसाइनर मिस्नरी एक्सप्रेस बीस - चर तस्वीर
यदि किसी सरल व्यंज्ञनन रेखा के बाद 'स” वृत है और फिर
(९ का ऑकड़ा मित्रा हुआ कवगोें के अक्षर आववें जैसे 'कर, गर
आदि तो इस तरह लिखना चाहिए । जेप्ले--नं० छ चि ०४० ११३
४-- पुष्कर चूसकर डसकर
वक्र रेखा में 'स! बृत, आदि या मध्य में रेफा वाले ऑकड़े
के भीतर इस प्रकार लिखा जाता है कि दोनों बत और रेफा
साफ साफ प्रगट द्वों। स्व वृत वक्र रेखा में 'र” के स्थान में नहीं
लिखा जाता | जेसे--नं० ५ चि० प्ृ० ११३
४-- सदर समर जसोघर वस्तर दुस्तर मिस्र
इसी तरह 'स' वृत 'ज्ञ' के ऑकड़े के भीतर अलग से
लगाया जाता दै चाहे रेखा सरल हो या वक्र इसमें स्व? का
यृत नहीं लगता। जैसे--नं० ६ चि० पू० ११३
६-- सअल सफल सदल सबल सकल
(६ रै१५ )
- जब यह “स” वृत और 'ल' का आँकढ़ा बीच में आता दे तो
भी 'सः वृत उस “ल? के आंकड़े में इस प्रकार लगाया जाता है कि
दीनों साफ २ मिलते हुए भी अलग अलग दिखाई दे। अगर ऐसा
न॑ दो सके तो पूरा संकेत लिखा जाय । जेसे-+नं० ७ चि० पु० ११४.
७--- पशुबल बीसकत्त बाइसकिल
इनमें स्वर यथा-नियम लगाये जाते हैं अथोत् यदि “'स
ब्ृत पद्दले लगता है तो उसकी मात्राएँ व्यंजन के पहले रखी जाती
(हैं और यदि यह धृवत बीच में आता है तो इसकी सात्राएँ अगले
व्यंजन के पहलें रखी जाती हैं । व्यंभनन और ्ल या र! आँकड़े
के बीच अ, इ, उ की हश्व सात्राओं को छोड़ कोई दूसरी मात्रा
नहीं आती और यह पहले ही बताया जा चुका है कि यह, मान्नाएँ
लंगांई नहीं जातो । 'ल या २” के बाद की भान्नाएँ व्य्ज्नन के
बादें रखी जाती हैं । जैसें--वं० ८ चि० प्रू० ११३ |
८-- बीसकले बीसोंकल .. बीसकला बीसखेल
तुमे यह पढ़ चुके हो कि जब 'र या ल” का आंकड़ा किल्ी
व्यंज्ञन में मित्रता है तो या तो उनके बीच कोई मात्रा नहीं रद्दती
या सिफे हस्व अ, इ, या उ ,की मात्रा आती हैं। जेसे--नं० ६
चि० पू० ११३
६-- प्रेम बल्व प्रतिमा...
पर यदि 'र और क्र! आँकड़े के व्यंजन' के बीचे दूसरे
दीघ स्वर आंवें ओर र यो ल के बाद हैरच स्वर को छोड़ कंर
कोई दीघे स्वर न॑ आावे, और सुविधालसार अच्छे संकेत बने
तो उनके बीच की 'आ, ऊ, ए, थओ' की सांत्रा्शओ' को कऋंमश: इसने
चिन्द्रों से सूचित कर सकते हैं ;-- *
' आए चिन्ई' आंकड़ा फे' सिरे पर रखा जाती दे पर दूसरे
चिन्ह भाँकड़े के पास ही व्यंजन के बाद रखे जाते हैं । दसरी
( ह#ह६ ) |
सात्राएँ'' यथा-विधि अपने स्थान 'पर रखी ज्षाती हैं । व्यव्जजन
ओर “'ल या ए! आँकड़े 'के बीच 'ह, औ” आदि की दूसरी
मात्राओं के आंने पंर- या" ल या र'! के बांद ऐसी दीघे मात्रीओं
केआने पर जिससे 'ले या २” अपने पहले वाले व्यव््जन के
साथ न * पढ़ा जाकर' पिछले व्यझ्ज्नन के साथ” पढ़ा' “जाय
या अकैला' पढ़ा ज्ञाय' तो संक्रेत पूरे लिखे जाते हैं।
लैंसें--नं० १० चि० पर० ११३ हु
«“ , १०-पारखल.. घोरतम _ ..' मारकेश
$, - मूलधन भूगोल । हे
, “पर -अकोज्ञा . ममोला पतला
सरल रेखा के अन्त में 'न'! ऑकड़े के स्थान पर . यदि 'खः,
बृत लिख दिया ज्ञाय तो 'न! भी. लगा--हुआ सममा जायगा।
जिस व्यव्ज्जन में घृत इस तरह लगा. होगा पहले वह उ्यंजन,
फिंर न का ऑकढ़ा और अंत में “सर वृत पढ़ा जायगा । नियमा-
लुंसारं वृत को डेश रूप में ज़रा' बढ़ा देने से अंत-में 'ईः पढ़ी
ज्ञायगी जैसे--नं० ११ चि० प्ू० ११३ ६
श-कंस, .... इंस हंसी?! «४ +
धत्क् रेखा में यह 'स' वृत 'न!, ऑकड़े के अंदर अलग से
लगाया ज़ाता दे पर नियमानुसार इत को भी डेश रूप में, ज़रा
चढ़ा देने से अंत मे “ई! पंढ्दी जायगी। दूसरी मात्राश्रों के आने
पर. संकेत, ग्रथार्शनयम., पूरे ,लिखे, जाते हैं।। जैसे-नं० १६
वच० पूं० ११३ ४.8 3 काला . उठे एहा।
“ 7१६+-: मानस एफ रा $ 7]मानसी 7४५ पर 5 धो
89% | # की: 3 हाई ७55८ 4 झड़ के पाए फफी
हे
की]
९ ही 2
/ शब्द:चविन्ह ।
नकली
2१० 8 है 5 बडे
८ 925 5 बे आप
# ल्त्छ हद
अगर - अंग्रेज बगैर - बगैर: - मगर
या-यथाथे - यथा यथेष्टद -यानी युद्ध - युबक
क्यों कठिन - किन्तु
कर ४8. ... कम
८ के पा मर
३
वी न
अर्थात् अतिरिक्त उदाहरण ;
चोड़ा ल्त्वे बीच...
प्रार * परसों परस्पर - पूरा
( श्श्८द )
अस्यास--हन द
४
पल
( ११६ )
अभ््य[स-- ३७
पुषकक्ष.. पेशराज बसीकरन पिस्तौज्ष सरकिछ
सरवराकार सरखत सरकार सफदता
सफ़मेवा. सचर-चर सचरना सकरपाला सदर
काब्षिमा काल्मापानी काह्षधर्म काह्चचक्र
कारखाना कारस्तानी. बोबन्चाल खेल-कूद
इतना बढ़ा भर्थात् ल्ंवा-चौड़ा पतलून पद्दिन कर कहाँ जाने
का हरदा है। यद्द पतलून बढ़े दोने पर भी दुँचा है ।
एक नाव गंगा जी को पार कर रहो थी पर बोच धाहा में
पहुँचते हो दूब गई ।
पररपर न जड़ों । हम क्ोगों के अतिरिक्त भी जो कोई इसे
देखता है, बुरा कहता है ।
इस किश््म का कोई भ्रष्छा उदादरण खोज निकात्यो |
! %० रे,
र ओर ल के ऊपर ओर नीचे लिखे जाने
॒ .,.,.. का नियस, .. , ,... .
ज़हाँ जहाँ झिसी व्यंजन के हचचारण के ;लिए ऊपर , और
नीचे # दोहरे संकेत दिए,गए हैं वहाँ रतरों के ,बिना प्रयोग के
ही उच्चारण करना और सरत्नदापूवक संकेत चिन्हों का लिखा
जांना, इन दोनों बातों का पूरा विचांर रक््खा गयां है। यदि ये
दो बांतें ध्यान में पूरे तौर पर आ' जायेंगी वो समसंमने में“बड़ी
हक होगी | इन्हीं मूलतंत्वों पर इन नियमों की, ,रचना की
ग् |
१० यदि किसी शब्द में 'र” अकेला व्यंजन हो ओर यदि
(अ) 'र! के पहले कोई बृद या आंकड़ा नदों तो यदि
कोई स्वर पहले आवे तो 'र! नीचे को लिखा जाता
» . है और यदि रबर पंदले'न आधे तो “र! ऊपर को
लिखा जाता है| जैसे--नं० १ जि० नीचे.
१ आग आज आओ
222 0. 2 ०
र्, ०१ ०८ 7? ४७ ्र हे
३. के हे 6 26६2 हे
कर हक की का हो
श अप मल. 0 पलट
ओर तञञौ आरा
[ “ओर तथा औरः के शब्द चिन्द्र बन गये हैं ]
( १३१ )
हर रोज़ - '*' '. राज न् रीस. पा.
(ब) जब' (र! के पहले कोई बृत, आँकड़ा या, कोई संकेत
आता है और उस “२? संक्रेत के अंत में कोई स्वर नहीं आता तो
५? नीचे को लिखा जाता है पर यदि . अंत में कोई स्वर आता है
तो “र” ऊपर -को (लिखा जाता है। जैसे--नं० २ चि० ,पूृ० १२०
२-- सीरः - सीरा “सार, ' साड़ी '
२. जब 'र! शब्दों में पहला अक्षर होता है--
(अ) यदि किसी शब्द में “र? के पद्ले स्वर है तो 'र?
नीचे को लिंखा जायगा। यदि पहले स्वर नहीं है तो
,“ ऊपर को लिखा जायगा। जैसे--तं० ३े चि० परू० १२०
-३-- अरब, , अरबी, आरोप, रानी, रोना, रोता-रोता
(ब) शब्दःसंकेतों की रोचकता, पर विचार कर सुविधा-
नुसार 'र!' चवर्ग,,.टवरगे,, तव्ग ओर र, य, व
. ,- अथवा ल आँकृड़ा मिले. हुये कवग॑ के पहले
«ऊपर की, तरफ लिखा जाता है ओर , खबर का
कोई विचार नहीं किया जाता केवल, इस बात का
रू्याल रखा जाता है कि, संकेत न बिगड़ने पाजे'।
जैसे-नं० ४ चि० पु० १२०. , ह
,४-- आराजी ,* आरती - रोटी... : अराशणेट
/. ., उख्ज, अरवा. अरगल +&, ,आय्ये
(स) 'म? के पहले 'र/हमेशा नीचे लिखा जाता है चांद्दे मात्रा
)४४»« पहले आबे या न आवे। जैसे--नं० ४ चि०. प्रू०-१२०
दव्आराम॑ राम रोम : शरसः -शरमीला
ई.' 'जब 'र' शब्द के अंत में आता है तो न न ५:
।
बल द्् शक 5 85 न $
और
कं न
ता
( ११२ )
(झ) यदि कोई स्वर अंत में नहीं आता तो 'र” नीचे को
लिखा जाता है । जैसे--नं० १ चि० प्ू० ११३
१०- सार भारो गाड़ी बार बारी
चोर चोरी ४
(ब) ऊपर लिखे जाने वाले व्यंत्रनों के पश्चात् “र” ऊपर
लिखा जाता है | जैसे--नं० २ चि० पू० १२३
२०- रार द्ोरी यारी वार
(स्) तवगे, स और न॒ के बाद यदि वृत हो तो 'र?
वृत के साथ ऊपर या नीचे लिखा जाता
है। जैसे--नं० ३ चि० पू० १२३
३-- तीसरा... अनुखार शिशिर
नोट--यहों इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तवगें और
सः के दायें चायें का प्रयोग से यदि नं०३ (अ) के
नियम का पालन दो सके तो ज़रूर करना चाहिये--जैसे
धवीसरा' शब्द के अन्त में मात्रा है इसलिए 'र” ऊपर
जाना चाहिए और यह तवगे के दायें-बायें दोनों समूह से
लिखने पर हो सकेता है पर यदि 'तीसरा' लिखना हो तो
दायें समूह से ही लिखा जाना चाहिए जिससे “ नीचे
ज्िखा जा सके | 8.
(द) जब 'र? किसी दूसरे व्यंजन के बाद आता है और
- उसके अंत में कोई ,ओआंकड़ा होता है तो वद्ध ऊपर को
लिखा जाता है । जैसे--नं० ४ चि० प्रू० १२३
- इब्ल्मारना लड़ना. पारख पेरता
४७. » जब 'र? शब्द के बीच में आता है तो अधिकतर ऊपर
लिखा जाता है परक भी कभी स्ुचारुता के विचार से नीचे
भी लिखा जाता है। जैसे--नं० ५ चि० प्ृ० १२३
४9७७७. अंक कया.
है
९
ले
पा
हु
१ ब० 5 लेकिन ३ मी बडे ५ पा
४#>«पारक मारग जारज खारिज
कारक - लेकिन - :क्कर्क सड़क
(२) ल
जब “ल' अकेला आता है तो हमेशा ऊपर लिखा जाता दै
चाहे मात्रा कहीं भी आवे। , ,
१. जब “ल? किसी शब्द खंकेत का पद्ला अक्षर दोता है तो--
(अ) यह अधिकतर ऊपर लिखा जाता हे चाहे आरंभ में
मात्रा आवे या न आवे। जेंसे--नं० ९ चि० पृष्ठ १२७
१०-लाठी. लडु उलट उल्नच लाभ
. (ब) जब कवगे, न, म या ड के पहले 'ल” आवे और
उसके पहले कोई स्वर आधे तो ल? नीचे को लिखा
. ज़ाता है और यदि स्वर पहले नहीं आता तो ऊपर
', को लिखा जाता है । जैसे--नं5 २ चि० पृ० १२४
२--लोक अलग. लाम आलम
/ कर्क /
(स) जब 'ल' के बाद कोई इत आवे और उसके बाद कोई
“वक्र व्यंजन आचे तो 'ल्” उसी बृत के घुसमाव के सार्थ
लिखा जाता है | जैसे--नं० ३ चि० नीचे
ही 777 को कह ४ आज हर मे
२ कि है मल
कल पा ० ग
8 ज् जी अर अर 4
/8 न
"प् हद हु 5 हा ८ आन ५5 हक
अप माह सा
६ जी अर हा
9. थी. <र. ._.९, 5. ..
; अकिन ८5६० ६ है: हज 88...
३--लासुन लाज़िम' लसता अलसर
बे
2, ,जब 'ल? शब्द के अंत में आता है तो
(अ) “हल! अधिकतर ऊपर,लिखा जाता है चादे अँत में मेज़ा_
आधे या न आवे | जैसे--नं० ७ चि० ऊपर
, इफल . फूली माल माली __ जाली
,. ज्ञाल पत्ष .पीला' फसली डॉल डाली
.... (ब) कवर, तवर्ग, स या ऊपर लिखे जाने वाले व्यंजनों के
बाद, 'ल?- यदि अंत में स्वर आता दे तो ऊपर
लिखा जाता है और यदि कोई स्वर नहीं आता तो
5 ( ४५ )
नीचे को लिखा. जाता है। इस नियम को पालन
करने के लिये तबगें और “स' के बाएँ या दाएं समूह|
को सुविधाज्ुसार प्रयोग करना चाहिए ! जैसे--नं०
चि० प्ू० १२४
४--थाली थाल दाल खेलो खेल. अखल
असली वेल '' वाला
8. 'नः के पश्चात् 'ल?ः अधिकतर नीचे लिखा जाता है चाहे अंत
में सात्रा आवे या न आवबे.। .जैसे--नं० ६ चि० परू० १२४
६--नांल नाली नीला ताला
४. यदि 'ल' -शब्द के बीच में आवे तो अधिकतर ऊपर
लिखा जाता हैं पर कहीं कहीं सुचांरुता के विचार से
नीचे भी लिखा जाता है। ज़ेसे--नं० चि० पू० १२७
७-- बालदी .. माल्नती .. खेलती
लेकिन -- कालेंस . ' कोलंबो
चत
रे
( श#श६ ) $
अम्यास--- ३८
साल 400 - किक कं ४७ 2४ 5
सनातन, है हा न हा । ।
खाना-खाते देखना-देखते
संत सद्द्
नोचे की कटद्दानी को संकेत-ल्िपि में अनुवाद करो---
एक नगर में एक छुढ़िया रद्दती थी । चद्द बहुत गरीब थी । लोगों
की मजदूरी करके अपना पेट पाल्तती थी। जब उध्के पास कुछ पैसा हो
गया तो उसने उन पे्नों से एक सुर्गी मोल ली ।
यह मुर्यो रोज पर अंडा दिया करतो थी। बुढ़िया उसको बेच
कर अपना काम चल्नाती थी। एक दिन घछुढ़िया ने छोचा कि सुर्गो का
पेट चोर कर सब अंडे निशान लेना चाहिए जिससे बहुत सा दाम
मिले । +
यह सोचकर उसने मुर्गी को पकड़ कर छुरी से उध्तक्ा पेद चौर
ढाका । मगर वहों एक झंडा भी न निकृद्धां । तब तो बुढ़िया को बहुत
झफस्तोप्त हुआ भौर पछुताने कगी ।
( १२७ )
च्
ई्
( १२८ )
प,ब, ज ओर ह
ज्ञिस तरह आर भ में एक छोटा सा वृत 'स”? के लिए आता
है उसी तरह 'प' के लिए नं० १ का पहलज्ना चिन्ह, “ब” के लिए
नं० १ का दूसरा चिन्द्र और “ज?के लिए नं० १ का तीसरा चिन्ह
काम में आता है । देखो चित्र पृष्ठ १२६ ये चिन्ह बीच और अंत
में नहीं आते | यदि इन चिम्हों के पहले स्वर आता दे तो भी
ये चिन्ह नहीं क्षिखे जाते, पूरा चिन्ह लिखा जाता है। यह
व्यंज्ञनों में इस प्रकार लगाये जाते हैं। देखो चित्र--प्रष्ठ १२९
२-- पक, पंच, पट, पप, पत (दा० बा०), पस, पत्र; पय, पर,
पत्न, पव, पस्व (बा० दा०)
६०-- बक, बच, बट, बप, बच (दा० बा०); बस, बन, बल,
बर, बस (दा० बा०), बढ (नी० ऊ०)
४-- जक, जच, जट, जप, जत (दा० बा०), जम, जन, जय,
जर, जल, जब, जस (दा० बा०)
प्रारंभ में इन चिन्द्दों के बाद दूसरे ऑकड़ें नद्दीं आते | यदि
दूसरे आँकड़े लिखना सुविधाजनक हो तो ये चिन्द पूरे लिखे
ज्ञायें। प में द, ब में य, तथा र और ज में द नद्दीं मिलता।
आरंभ में 'द' लगाने के लिए उसके वर्णाक्षरों को छोटा भी
कर सकते हैं | देखो चित्र--नं० १ का चौथा चिन्द्र।. . .
नियमानुसार इनमें मात्रा 'स! बृत के समान व्यंजन के
पहले, द्वितीय और दृतीय स्थान पर रखी जाती है । जेसे--नं०५
चि० छू० १२६ हा
५--- पाठक, पूजा, बचन, बेचेन, हाथी, 'ज्ञाप, ज्ञामा
कह
( १२६ )
बीच में “ह? के लिए (स्व? के समान बैसा ही एक बड़ा बृत
कं दिया जाता है क्योंकि स्व? वृत बीच में नहीं आता। इस
) बृत में
कर | भी नियमालुसार 'छ वबृत के समान ही मसन्राएं छगती'
र पढ़ी जाती हें । जैल्ले--नं० ६ जि० नीचे
प 4 केक परम > ९ के के गे ढः
छह हक लक पक जे रस हक
/7. कक
६--चाइक महक. झाहकझ्य है चौद्दान .
चोहल पाहइन.. ताइम
( १३० )
अंत में भी ६” एक बढ़े चृ० से सूचित किया,जाता है और
धस! बृत के नियमानुसार लगाया और पढ़ा जाता है, पर यदि
*ह? के बाद ई? के अल्लावा कोई दूसरी मात्रा आवे तो उस बढ़े
चूत को न लगाकर 'ह? पूरा लिखा जाता है। उसी 'ह? के पश्चात्
नियसालुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान की मात्रा लगानी
चाहिए । पर अंत में यदि “ई' की मात्रा हो तो बृत को ज़रा डेश
के रूप में नियमानुसार बढ़ाना चाद्विए | यदि इस चृत के बाद
धन, त* का ऑकड़ा आवे तो “€? बृत को बढ़ाकर ये आँकड़े भी
लगा दिये जाते हैं | कोई मात्रा या ऑकड़े अंत में न आने पर
“€? के लिए अंत में केवल एक बडा बृत लगा दिया जाता है।
जैसे--नं० ७ चि० पृष्ठ १५९
७-- कह कलद पनही पनद्दा पौददद
इम्तिद्दान बेहोश बेहोशी
बीच या अंत में यदि 'ह? के बाद स' आवे तो “ह” का वृत
चना कर उसके बाद 'स” का छोटा वृत भी बना दिया जाता है।
ऐसी दशा में यदि “ह” के बाद कोई मात्रा आती है तो उसका
विचार नहीं किया जाता है। जैसे--नं० ८ चि० पृष्ठ १२९
८-+ महसूल तहसीलदार
यह ह? का वृत 'स* चृत के समान ही लिखा जाता है,
इसलिये यदि इसे सरल रेखा के अंत में 'प! के स्थान पर न
लिख कर, “न” के स्थान पर लिखें तो चुत के पहले “न” भी पढ़ा
जायगा पर ऐसी दशा में “व! और “'ह? के बीच मात्रा न दोगी।
जैसे--न ० ६ वि त्रपृष्ठ १२९
६-- पनह. _ कान्दह टोनद
5845
महान
पट्टिचानना
आबत
आओ
पछताना
कहना
चेकि
-महोदय
चना
£( १३१, )
शब्दर्नचन्ह
पा है
लक, न्च्ठे
छः पैन
आइए
अपेक्षा पूछना
कहता है कहते हुए
जेनरल खिलाफ
लक हक 2
2 0 8 ा
१ हम मिल. अल की.
मशहूर
पहिनना पहुँचाना - पहुँचना
बंदोबस्त-ज्बाब देना बनिस्वत
( १३२ )
अभ्यास---४ ०
डे
दर
छल
( १३३ )
अभ्यास---४ १
पाक्ष॒ बावा बिरला बधिटद्दाग पपढ़ा पतरी
पनलेरी . पहाढ. पहेली पारस पारसी
पारसनाथ प्रनमासी बीजयणित थीजारोपण
सीजमंत्र बेबल बेहतरोन जद्घर
जाफरान विक्कास पन्न वाहक बेजनाथ
यदि कोई यद्द चाहता है कि उच्च हो बनी हुईं चीजे दूर तक पहुँचें,
सारे संखार सें मशहूर हों तो उसको बड़ी इमानदारी, मेहनत और
लगाव के साथ इस सहान काम को करना चाहिए ।
झादमी का यद्द फज है #ि दूसरों के सुख-दुख वो पहिचाने, उनके
मुछोबत में मदद करे और यदि समय पड़े और दो सके स्लो उनके
सारे काम का बंदोबश्त कर दे ।
क्यों महोदय जी आपको उस दर्जी के याबत क्या राय है। वह
कपड़े खूब अच्छा सीता है। उसके बने हुए कपड़े पहनने से जी
खुश द्वो जाता है । भ्राज तो वद आपके यहाँ झाया था। आपने
उसे क्या जवाब दिया ।
( १३४ )
विध्वनिक मात्राएँ
किसी २ शब्द मे एक मात्रा और स्वर एक साथ आते हैं और
उनका रुपष्ट अलग २ उच्चारण होता है | ऐसी मात्रा और एक
स्वर को द्विष्चनिक चिन्द कहते हैं। जेसे--आई, आओ, आऊँ, -
ओई, ऊआ, इेओ” आदि।
इन दिध्वनिक चिन्हों में अधिझरृतर पह्टली मात्रा अधिक
आवश्यक होती है क्योंकि पहले आने के कारण उनका बोध
होना आवश्यक है| उसके बाद आनेवाला सर्वर तो सोचकर भी
निकाला जा सकता । इसलिए यह बताने के लिए कि किसी
स्थान पर एक मात्रा और दूसरा स्वर है एक विशेष चिन्ह से
काम लिया जाता है। यद्द चिन्ह दो तरह ऊपर और नीचे से
बनाए जाते हैं | जैसे--नं० १ और २ चित्र १३५
१,
ऊपर की तरफ बायाँ नं० १ और नीचे की तरफ दायाँ
नं० २
बायाँ द्विव्वनिक भात्रा
बायाँ वाल्ला द्विष्वनिक चिन्ह पहले स्थान पर 'ऐ! और
उसके पश्चात् ही कोई दूसरे आनेवाले स्वर को सचित
करता है जैसे--नं० २ चित्र पृष्ठ १३५
३-- गैेआ झा
दूसरे स्थान पर ए” और “ओ” और उसके पश्चात् ही
आनेवाला कोई दूसरा सर | जैसे--नं० ४ चित्र पृष्ठ १३४
४-- देआ तेझ कोआ पौआ लौओआा
३. तीसरे स्थान पर “इ-ह? ओर उसके पश्चात् आनेवाली
कोई दूसरी मात्रा । जैसे--नं० ४ चित्र पृष्ठ १३४
५-- पिश्रा किआ सिआ
४ म
बाया 7 दया
३ अल अत
छु |" 2302 मम ३० रमन <ःि
प् 5 मल] -4
६ ( शर्ट कप हा ८४5५ /.०४ पर“ हु 4 हत/
हक नर « जता किक _श
८ आय
० 2 कि ल् कक पद हि ५ 6 धर
हम पर मर मल मत
दायाँ द्विध्यनिक मात्रा
१. दायों वाज्ञा चिन्ह पहले स्थान में आा' ओऔर इसके
पश्चात् आनेवाले कोई भी दूसरे स्वर को सूचित
करता है। 'आई” के लिए एक विशेष संझैत पहले ही
से निरधारित किया जा चुका दे, इंघलिए “आई” के
स्थान पर पहले वाला द्वी चिन्ह ह्ाम में क्षाना चाहियें।
पे--मं० ५ वित्र ऊपर
६०- ताई पाई साई नाई--पर -- वाह नाऊ प्रादि
२, दूसरे स्थान पर ओ? भोर उसके पश्चात् आनेवाल्ा कोई
दूसरा स्व॒र। जैसे--नं० ७ चित्र ऊपर
७-- कोआ खोझा रोझा सोझआा
( १३१६ )
यदि आप चाहते हैं कि 'रोआ सोआ?! न पढ़ा जाकर 'रोई
ओर सोई” पढ़ी ज्ञाय तो आप उसी शब्द को लाइन क्रॉट कर
लिखिये | जैसे--नं० ८ चित्र पृष्ठ १३५ ,
८ रोई सोई
[ आगे चलकर यद्द बात पूर्ण रूप से खमकाई जायगी। ]
३. तीसरे स्थान पर 'उ-ऊ! ओर उसके पश्चात् आनेवाला
कोई दूसरा स्वर जैसे--नं० & चित्र प्रष्ठ ११५
६-- पूआ बूआ सुई. रूई
त्रिध्वनिक मात्राएँ
कभी २ किसी शब्द के बाद तीन मात्राएँ भी आती हैं।
इनको त्रिध्वनिक मात्राएँ कद्दते हैं। इनके लिखने का नियम भी
द्विष्वनिक मात्नाओं की तरह है पर फर्क केवल इतना द्वोता है
कि द्विध्वनिक संक्रेत में एक डेश और लगा दिया जाता दे।
बाकी नियम वही रद्दते हैं। जेसे--नं० १० चित्र प्रष्ठ १३५
१०-- लाइए बोआई. पिझाऊ खाइये
ठ, त और क का प्रयोग
( १३१८ )
धर
्द
जड़ ० पल
6. £
« “55७ बन्व--
है
ठः
( १३६ )
ट, त ओर क
यदि किसी व्यज्ञन रेखाओं को उसकी साधारण लम्बाई
का आधघा किया जाय वो ट, त या क ओर मिल गया
समझा जाता है। पर प्रारम्भ में (ह” आधा नहीं किया
जाता लेकिन अगर हा आधे के बाद २” ये ५्ला
आँकड़ा लगा हुआ कवगे आवबे तो “€” को आधा कर
भी सकते हैं | जेसे--नं० १ चित्र पृष्ठ १३४८
१-- पट-पत या पक, टट-टव या टक, चट-चत या चक
मट- मत या मक, तट - नव या नक
इसी तरह यदि “य,र (नी), ल, व, स और “६” मोटा
कर दिया ज्ञाय तो 'ड” लग जाता है। जैसे--नं० २,
पहली लाइन | चित्र पृष्ठ १३५
२-- यड, रड, लंढ, वड, सूंड, हड
इसी तरद्द मोटे व्यक्षनों को अद्धा करने से या 'य, र (नी),
ले, व, स, सम, न ओर हू! को मोटा कर अद्धा करने से
दः ज्ञग जाता दे |जैसे--तं० २ दूधरो लाइन भौर
नो० ३ चित्र प्रष्ठ ११८
२-- यद, रद, लद, वबद, सद, हृद, सद, नंद
३०» बदू-- बदमाश, बदला
जो सात्रा इस भर््ध व्यव्नन फे पहले आतो दे वह सब्रक्े
पहले और जो मात्रा इस ज्यज्धन के चाद में आदी है
चह् व्यंजन के बाद पढ़ी जादी है। अंत में ट, क या
च पढ़ा जाता है। जैसे--नं> ४ चित्र प्रष्ठ १३८
पए-- पेट मेट आऔधट महक थोक फीट पाट
अपट उपट याद लाद दीोद हल श्लेड
( १४० )
, यदि व्य॑ज्न के पहले वृत या आँकडे हैं तो नियमानुसार
पहले चृत या मात्राएँ- पढ़ी जाती हैं, फिर मूल व्यंजन
की रेखा, उसके आँरड़े और उसकी मात्रा पढ़ी जाती है
ओर अन्त में अड्भे किए हुए रेखा के चिन्ह 5, त याक
पढ़े जाते हैं। जैसे --नं० ५ चित्र पृष्ठ १३८
५-- संकट, सिमिट, प्लेट प्रेट, खीलड
पर यदि व्यंजन के अन्त में वृत या औऑँकड़े हों तो पहले
व्यंजन, उसके बाद की मात्रा और तब अड़ा पढा जाता
है, फिर अन्त में यद्द व्ृव और आड़े पढ़े जाते हैं।
जैसे-- नं० ६ चित्रप्ृष्ठ ११८
६--पीनक, पातक, बतक, छाटना, पी रता, पीटना, लेटना,
लोटना लादना वेदना
. यह व्यंजन बीच में भी ट, त, द या क के लिए आधे
किये जाते हैं पर ऐसी दशा में व्यंजन के तीनों स्थानों
की मात्रा व्यंजन दी के पश्चात् और ट, तया क की
मात्राएँ अगले व्यंजन के पहले यथा-स्थान लगाई और
पढी जाती हैं | जैसे --नं० ७ चि० पृष्ठ १४८
७-- लाटरी, चटोरा, मकड़ी, पुटकी, मोदहूमल,
फुटकल, पत्तीली, आरडिनेन्स, सोडावाटर, मोल्ड
» यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी व्यंजन
को 'त या द? के लिए अद्धा तभी करते हैं जब कि इनसे
सुचारुता के विचार से अच्छे शब्द संकेत बनने की
आशा होती है। जैसे-नं० ८ चित्र पृष्ठ १४८
८-- पतरी या बदमाश ( अच्छे संकेत नहीं )
., त और द अद्ध के प्रयोग से दोनों संकेत अच्छे बनते हैं ।
जैसे-नं०६ चिन्न पृष्ठ १३८ पतरी या बदमाश (अच्छे संकेत)
( (९४१ )
६. शब्द के अन्त में यदि त, 5, दू, ड या क आये और
उनके पश्चात् सात्राएँ आदे तो अद्धे संकेत कास सें
न आदेंगे पर पूरी रेखाएँ लिखी जञायँगी। जैसे--नं०
१० चित्र पृष्ठ ११८
१०--पाट. पट्टी न नदी मोद. मोदी
पात पता लाड. लादा. सूड
सादा
अगयास--४२
। 0
मा अल आदि मम आल 3 2 8४
खूब-शखबार खुद
अदुभुव फ़िर
उम्देंनि धिन्होंते किन्द्रोंगि हम्होंने उसीने सुर्धीने इमेंने इंपोने
( १४२ )
॥। ब
८
।
5 5 कल
॥ ह 2 ४
> चन(
|
जय ३४ हे
| $ आह मा
प्
० ः है ५ »
धो, ;
4 हर
५ ५ | है
ञ । ०५ ०5 न्ा है
( हे
थे ( १४३ )
ह अभ्यास--४ ३
नीस
बिप् तरह जाड़े में घप अच्छी लगतो है उछी तरह गरमी में छाया
भल्री मालूस होती है। गर्मी में इधर दोपह्टरो श्राई उधर लोग घरों में
ऑछिपने लगे ।
छु क्ञोग पेड़ों के नीचे चारपाई बरिछाकर झाराम करते हैं। मगर
जो सज़ा नौस की छाया में भाता है चद कहीं नहींझाता | नीम की “
पत्तियाँ बहुत घनी होती हैं। धूप को नीचे नहीं झाने देतीं।
नीम की इचा भी रंडी होती है । नीम की पत्तियोँ आरी की तरह
ऋटावदार होती दैं । इनका रंग हरा होता है। इसको देखकर आँखों को
डंडक आतो है ।
नोम की पत्तियों का पानी सुरमा में मिलाकरो अंजन बनता है।
इसे शाँखों में लगाते हैं. इसके लगाने से आँखों को वीमारियोँ जाती
रहती हैं | नीम की टहनी से दातून बनता है। दातून करने से दाँत साफ
और मजबूत होते हैं।
लड़कों, क्या तुमने नीम को रोते हुए देखा है। कमी २ नौम के तनों
सें से पानी निकब्नता| है । उसे नीम का रोना कद्दते हैं। यह पानी भो
जुवा के काम्र में आता है। )
८
( १४४७ ) ही
तर, दर, टर या डर
१. जिस तरह व्यंजन को अद्धभा करने से (2 और का
खादि लगता दे उसी तरद्द उसे दुगना करने से “तर
या द्र! लग जाता है। जेसे-नं० १ चित्र नीचे
१-- क-तर पन्तर लन्तर म-तर
कदर प-दर॒ लचदर मनदर
२. अडे की तरह जो मात्रा व्यंजन के पहले आती हे वद्द
सबके पदले और जो मात्रा व्यंजन के बाद आती है.
बह व्यज्ञन के बाद पढ़ी जाती है। अन्त में तर, दूर
आदि पढा जाता दै जैसे--नं० २ चिंत्र ऊपर
२-- मादर लेदर अबतर गीदुढ उत्तर पितर
_ाी
ब्र«
| रे
( १४५ )
अद्धे की तरह यदि व्यंजन के पदले बृत या आँकड़े हों तो
पहले ये वृत और उनकी माज्नाएँ पढ़ी जाती हैं और फिर
तर या दर? पढ़ा जाता'है | जेसे--नं० ३ चित्र पृष्ठ १४७
३-- सुन्दर समतर निरादर
पर यदि व्यंजन के अंत में चुत या भॉकड़े हों तो पहले
व्यंजन और वृत्त या आँकड़े पढ़े जाते हैं ओर फिर “तर या
दूए पढ़ा जाता है। जैसे--नं० ४ चित्र पृष्ठ १४४७
४--- संतर बन्दर समनद्र चोकन्द्र
यदि अंत सें (तर या दर! के बाद साज्रा दो तो संकेत पूर/
लिखा जाता है। जेस्ले--नं० ५ चित्र पृष्ठ १४४
४-- मंत्री संत्री क्तृ
कप्ती २ सुविधानुसार अंत में 'तर या दर! के अलावा
व्यंजन को ट्विंगुण करने से 'आतुर,टर या डर! लग जाता
'है।जैसे-नं० ६ एछ. १ए४छ.. ६ '
६-- शोकातुर मास्टर: |; डाक्टर
“सब या स्प! को दूला कर देने से अंत-स , केवल 'र' और
“ लग.जाता है ।-जैसे-नं० ७ चित्र एए १४४
७-- _आडबम्बर चेम्बर .-
इसी तरद्द “न को मोटा और दृन्ना करने. से 'र” और लग
- ज्ञाताहै। जैसे 'निरथेकः | «,,
शै०
( १४६ )
अभ्यास--४ ४ पा
हि) हम
अँतर अंदर
अधिकतर
बकरी
: द्वामिद-आज हमारी बकरौ कहाँ गई
अस्मा--बेटा ! कंहों बाहर खेत में चर रही होगी ।
हामिद- अम्मा चह क्या खाती है !
अस्मा--घास खातौ दे भोर कुछ नहीं खाती ।
डामिद--क्या ] घास और कुछ नंदीं ।
अम्मा --हाँ, चद सानी भी खाती है ओर भगर रोटो दी जाथ तो
रोदोली खा छेत्ती दे ।
डामिद-और पत्ते भी खा बेती है।
अम्मा--हाँ पत्ते भी खा जेती हैं। पीपल के पंते बड़े शोक से
खाती है । .
डामिद--भस्मा उसके यनो में दूध कहाँ से भावा है ?,
अम्मा--जो कुछ पह खातो है उसका दूध बनकर यनों में जमा हो
जाता है। पीपल के पेंचों से बहुत दूध बनता है।....
शव
क्र ब्रध
ह
नल
हि
बक
5.7४
।
जल०१३ ८7 _ नणम £
४ 4 मी 6 07 जम हि
कटे ;
५४ ४ (3 आम कक
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पी ( है “डी ०
तु म 5 2
0 को ० व गा न कर
-.वे ८|>ज॥ी.... -. थे... २-के.......
आन आम 2 हा
५. मम ६ “आल 2>। (का जज"
-+०+० मम
चर
५ १४९ )
व ओर य का प्रयोग
श्ण्रे थ्बः ह नं० १ से सचित किया जाता है और ५यः
द्ृ
'चिन्द नं० २ से | प्रारंभ में “व” व्यंजनों में इस प्रकार
मिलाया जाता है | जैसे--सं० चि० प० १४८
२०वक वट वच वष वत (दा० बा०) वस वन
वय वर वतल वव वस (दा० बा०) वहद
8, प्रारंभ में 'यः पूरा लिखा जाता है और यदि सुविधाजनक
रु
दो तो “ब” का मी पूरा संकेत लिख सकते हैं। ह (नी) में व
का चिन्ह नहीं लगता ' अत में “व” इस प्रकार मित्ञाया
जाता है | जेसे--नं० ३ चि० पु० १४८
३-- कब टवं चव प्र तव (दा० बा०) सब
नव यव र (ऊ) व, रे (नो) व, लव, वव, सच, (दा० बा०)
ह (ऊ) व, द (नी) व
अंत सें 'य” इस प्रकार मिज्ञाया जाता है ।'जैसे---नं० ४
चि० प्ृ० १४८
४-- कय टय चय पय तय (दा० बा०) सय
यय, नय, र (उ) य, र (नी) य, लय, चय, सय (दा० बा०),
(ऊ) य, ६ (नी) य
आखीर में स वृत को गोला कर थोड़ा आगे बढ़ाने से 'व”?
ओर “व में एक डेश लगाने से 'य” इस प्रकार मिलाया
जाता है। जेसे---न॑० ५ चित्र पू० १४८
४-- कस कसय पसव पसय रसब रसय
- व! का आँकड़ा से “वी? भी पदा जाता है। जैसे-नं० ६
चि० प्ृ०७ १४८
. ६-- यशस्ती - तेजस्वी .
७,
( १४० )
ध” का आऑँकड़ा धआरमस्भ में तभी तक ,लगवा है जब तक ,
केवल वर्णमाला के शुद्ध संक्रेत आते हैं, परन्तु ज्योंददी वे
वर्णेमाला के'संकेत स्वयं किसी बृत या 'आँकढ़े के साथ
आने तो व का ऑकड़ा न लिखकर पूरा “व” का संकेत
लिखते हैं। जैसे--नं० ७ चि०'प्ु० १४८
७-- विपत वियोग विपिन्न वित्तय प्रनय नाविक-पर-
विप्र या बिप्र, विकल या बिकल
८. “इन <व और यः के व्यंजनों का प्रयोग अच्छे संकेतों के
लिए द्वी किया जाता है । यदि इसके स्थान -पर 'ब और
ज? से अच्छे संकेत बनें तो व और य',लिखने की
आवश्यकता नहीं क्योंकि 'ब और व” तथा “य और ज' में
भेद नहीं माना जाता है । जैसे--नं० ८ चि० प्ृ० १४८
८-+ नं०१ बर्ग सील नं०“२ वर्ग मील
प्नं० १ लजोगशासत्र नं० २ योग'शास्र
ब और ज से लिखे हुए पहले संकेत अच्छे 'हैं।
8, बीच में यह नीचे दिए हुए “ब-न्य! के चिन्ह किसी भी
व्यंजन के प्रथम, द्वितीय और हृतीय .रुथान पर रखे जा
सकते हैं. और उस स्थान की मात्रा इस 'व-य” चिन्द्र के
बाद सममी जाती है। जेसे--नं० ६ नि० ० १४८
१०. उदाहरण--जैसे नं० .१० चि०.प० १७८-पवन“भवन
१९, पर बीच में यदि कोई मात्रा इन “व-य्र' - चिन्द्रों -के “ पहले
“आतीदे तो “व -य! चिन्ह न लिखा जाकर संकेत पूरे लिखे
जाते हैं| जैसे--न० ११ चि० प्रृू० १४८ , |
११. निवेदन. निवाज नेबता "आदि
(् १४१ )
१२. कभी कभी 'य? का चिन्द् बीच में सिल्ञाकर दोनों तरह शेख
. जाता है और उसकी मात्राएँ नियसाहुस़ार अगले व्यनैन-क्ते »
' उल्ाहले लगा दी जाती हैं| जैसे--ज़ं० १९ चि० पु० १४८
१२-- पारिवारिक बलवती
बस फनपनरमयों धाधकामम्फोदओ ++७००ल यम,
षण, छण, शन आदि का प्रयोग
बहुत से शब्दों के अन्त में 'घण, छण, शत! आदि .शब्दांश
आएंगे हैं । ये “7 के ऋप्डे के उस एक बढ़ा आंकड़ा शब्दों के
अंत-सें जगाने से समझा और पढ़ा जाता है । इसके अन्त में भो
स्व॒र आने से ये पूरा लिखा जाता.है।
इसके लगाने के यद्द नियम है
१. वक्र व्यंजनों के अन्द्र अन्त में 'व' ,ऑँकढ़े को बढ़ा कर
लगाया जाता:है | जैसे --नं० १ चि० नीचे
हे न ऐे हे
१. »&> ......... ८ ०) न
00 30 928 गा दर कक
जम दे 5 मर सा 7 |
0 लक है ->न आओ ---+-- अरे +++-- *- हि हक
थ ्श्
! ३-“मिशन - सेशन द्शन
२. से (ऊ) फे साथ जब कबगे आता हेतो यह ऊपर: लिखा
जाता है । लेसे--नं० २ चित्र ऊपर
२-- लक्षण
( १४२ )
३. जब यह सरल व्यंजनों में लगता है तो जिस तरफ़ सरल
व्यज्ञन के आरस्भ में वृत या आंकड़ा रहता है उसके दूसरे
तरफ यह ऑकड़ा लगाया जात! है क्योंकि इसमें सुविधा
होती है। जैसे-नं० ३ चित्र प्ू० १५१ |
३०- स्टेशन घषंण सुभाषण
४. शब्द के दूसरे सरल -व्यंजनों में सबसे “आखीर की
सात्रा के विपरीत दिशा में क्गाया.जाता है। जैसे--नं०
चि० पृ० १४१ ; ४
४-- भाषण ., किशन कुशन -, . भूषण
इससे मात्रा लगाने सें सुविधा होती .है।
५, कभी कभी यह 'शन, छन! आदि का ओऑकड़ा बीच में भी
आता है उस्त समय उससें स्वर नियमानुसार अगले व्यंजन
के पहले लगाये जाते हैं । जैसे--नं० ५ चि० पू० १४१
४-- खुश नसीब किशनपाल
अभ्यास---४ ६
मा हा ० अर
पक ४ / हक आल
-्क ब् >#क कर ४2 न कक कक कममक कक 5“7 रा न थ। ७ ७ ७ कीं,
व्यापार “ विपत : वापस
वाजिन बेजा चजहदद
“ (६ (१#४ ) न
अभ्यास---४७
8 कप
विद्या - विद्वान विधि विद्यार्थी
विषय प्रारंभ सजबूत
खअटकल मोटा उल्दा
कबूतर
विद्यार्थियों तुमने कबूतर तो जरूर देखा ड्ोगा । इसको सूरत में
ओक्ापन बरसता दे। ये छोटे मोटे सब किश्म के होते हैं। विद्वानों
ने इनके विषय की विद्या की बढ़ी अनुसन्धान ही है। इनकी
माददाश्त बड़ी तेज होतो है। यह एक वार अपना घर देख लेते हैं
तो किप्ती विधि भी नहीं भूलते।
कयूतर यदा मसिलनछार और भेमी जानवर है। प्रारम्म में
तो वह आदमी को देखरूर बढ़ी दूर सागता है पर जब ,द्विल जाता
है तो उनके साथ प्रेम से रहता है। यह सब चोजे नहीं खाता पर
दने और रोटी-पूरी बड़े चाव से खाता है ।
घर से इसको कितनी ही दूर ले जाकर, छोड़ो तुरन्त झपने घर
डल्यरा चला आता है । इसको उ्मादा वक्त नहीं लगता, भटकत् से
खोजने में वक्त नहीं खोता | हु
यह बढ़ी दी समझदार चिढ़िया दे ।
( रण्७ )
'.. स्वर
( ल्लोप करने के नियस )
इसका वर्णन विशेष रूप से किया जा चुका दै पर यदि गे
सब स्वेर व्यज्ञनों में लगाये जायेँ तो बहुत समय लगेगा ओर
संकेत-लिपि का संतलब ही जाता रहेगा। इसलिए रबरों
एक-एक करके छोड़ने की आदत डालना चाहिए। इसके लिए
चीचे के नियमों को घ्यानपूर्वेक पढ़ना चथा सममना चाहिए।
सारे पिछले नियम भी इसी सिद्धान्त पर बनाये गये हें ।
१, देखो--(१) जब शक्द के आदि या अन्त में स्वर आता हे तो
व्यक्वन पूरा लिखा जात है। जैसे--नं० १ चि० छ० १५६
१-- पान पानी मान सानी खटक. खठका
२, 'र और ल' के ऊपर और नीचे लिखे जाने से भी पता
लगता है. कि स्वर पहले या आंखीर में हैं। जैसे--नं०
२ चि० प० १५६
२-- पार , _ पैरा प्रा अके कूडा
कौडी.. आलम. लीख
३. शब्द्-चिन्द लाइन के ऊपर, लाइन पर और लाइन को
कांट कर बगैर सात्रा के लिखे और पढ़े ज्ञाते हैं जैसे--
नं० रे चिं० एू० ९१३
३-- दान - दाम देना - दे दिन - दिया
४. इन नियसों से स्वर न रखे जाने पर भी कस से कम इतना
वो पता चल दी जातादे कि आदि और अन्त में कोई
स्वर हैं। अब कोौत खा स्वर है इसके लिए निम्न नियमों
पर ध्यान दौजिए ।.
जिस तरद सघरों के तीन स्थान--प्रथम, दिंतीय ओर
छतीय दोते हैं. ओर -स्थानाुसार उनके उच्चारण भी
कक थक 2 ढ
बा अेजन सन
# क०क न क सरामननकन>पन न भकन++ नम मा... “अम«+ वन नह बम भभ..बब कक कक कि या
व से का रत कान जग कक. जी. आक वॉक 4० कक सा इक
का 2 के कक न
न जट
>.. **०-->«+_>
बन क
पटक हिल व न न तन
+2
है
६.7
५८ ब्न्ं
कब के का मूह पक की भ कक कम का के के के की काम > जूक के का न ओ # नडजान
( १७७ )
भिन्न-भिन्न होते हैं, उसी प्रकार शब्द भी ध्वनि के अलु«
सार तीन स्थान पर लिखे जाते हैं और वह शब्द के
प्रथम, ट्वितीय और तृतीय स्थान कहे जाते हैं।प्रथसः
स्थान लाइन के ऊपर, द्वितीय स्थान लाइन पर और
तृतीय स्थान ज्ञाइन को काट कर समझा जाता है। जैसे+--
नं० ४ चि० पू० १४६
, दर एक शब्द में उसकी मात्रा ही इस बात को निश्चय
करती है कि वह शब्द कहाँ लिखा जाय। यदि शब्द में
प्रथम स्थान की सात्रा सुख्य दे तो शब्द प्रथम स्थान पर
यदि द्वितीय स्थान की मात्रा प्रुख्य है तो शब्द छ्वितीय
स्थान पर ओर यदि तृतीय स्थान की मात्रा मुख्य है तो
शब्द तृतीय स्थान पर लिखा जाता है। यदि शब्द में
कई मात्राएँ हों तो इस शब्द की खास दीघ उच्चरित
मात्रा ही के लिहाज से स्थान निर्धारित किया जाता है।
जैसे--नं० ५ चि० पू० १५६
४-- पार पोर पीड़
टात्न टोल द्ट्ल
माल सोल् मील
». यदि एक से ज्यादा दीघे उच्चरित मात्रा हों तो पहले
सात्रा के लिद्दाज़ से स्थान निधोरित किया, जाता है।
जैसे--नं० ६ चि० छू० १५६
६-- पाल पोलो पीला
राठा रीठा सूठा
कीला, काला बाला - बोलो
चेल्ा चीत्
», आड़ी रेखाएँ लाइन को काट कर नहीं लिखी जातीं |
ध्ट्ध
« ( १४८ )
इसलिए उनके द्वितीय भौरे छतीय दोनों स्थान लाइन द्वी पर
होते हैं जैसे--नं० ७ चि० ए० १५६
७-- मासा मेस काकी काका
कूछ काम कौम *_सानन सोना
ज्ो' शब्द शब्द-चिन्ह से बनते हैं उसमें पहला शब्द-
नह अपने ही स्थान पर लिखा जाता है। जैसे--नं० ८
चि० प्ृ० १५६
८++ बातचीत बहुत दिन
जो अद्भे-संकेतों से शब्द लिखे जाते हैं उनमें भी वीन
स्थान नहीं दोते। पहला स्थान लाइन के ऊपर और
दूसरा-तीसरा स्थान लाइन परे होता है। जैसे--नं० ६
चि० एू० १५६
६०» पटरा पटरी चटका प्वटकी
मटका मसटकी पटका पटकी
लटका लटकी रटना आदि
ऊपर लिखे जाने वाले दुगने व्यझ्ञनों के तीनों स्थान
नियमानुसार दोते हैं। जैसे--तं० १ चि० ० १५६
१-- यंतर द्र लतर
पर यदि यद्द दुगने व्य्लन नीचे लिखे ज्ञानेवाले हैं. तो
इनका केवल एक स्थान लाइन को काट कर होता है ।
झैसे--नं० २ चि० एू० १५५९ है
२-- प्रिंव्र बंदर पातर ।
बिना मात्रा वाले शब्द तीपरे स्थान पर लिखना चाहिए ।
जैसे--नं० हे चि० ए० १५६
३-- पक्ष पक आदि
है.
२५
' ( १४६ )
बहुत से ऐसे शंब्द हैं जिनमें मात्रा न लगाने से अर्थ के
सममलने में बड़ी कठिनाई पड़ती है| उनमें जो मात्रा स्थान
"विशेष सेल समझी जा संके उसे क्षगाना चाहिए।
जैसे--नं० ४ थित्र नीचे
४-- आरी ऊूबां एवं ओदा भ, ओला »« आदि
जब 'ल या र!? के ऊपर और नीचे लिखने से स्वर का ठीक
ठीक पता न लगे तो मात्रा को लगानी चाहिए। जैसे--न॑०
७५ चि० नीचें
४-- आरता आरती आराम आओरजू आदि
बे हर» ७ कह ० कमान सात के का कक 4 0 2 को आम ५ बा इक वन
हक लत
ऐपे स्थानों घर भी मात्रा लगा सकते हैं--
(१) जहाँ एक दी शब्द संकेत से कई शब्द बनते हैं ।*
जैसे--नं० ६ चि० ऊपर
<६-- साला मेंला माली. मोल मेल
मेत्ना मी
(२) जहाँ शब्द नया और कंई बांर का लिखों ने दहो।
(३) जहाँ जल्दी मे शब्द धंकेत ठीक स्थान पर या
अशुद्ध लिखा गया दो “०५
(४) जददों कोई बिल्कुल नया विषय लिखा ज्ां रहा
द्दो।
, (५) जहों संदर्भ आदि का ठीक ठीक पता न चल सके |
कटे हुये व्य5 जनों का प्रयोग
इसी तरह प, फ; क, ख ; च, छ आदि में सी आप देखते
हैं कि एक द्वी संकेत दोनों व्यव्जनों में आते हैं; भिन्नता केवल
इतना द्वी है कि दूसरा व्यव्ज्ब कटा हुआ द्ोता है। इस खंकेत-
९५ ००४४ ०४ ०४० ४: .] हद /.....५ ( *...”.. ४:५५ ..
कल को व 5
६, न पा “] 225६ | हि हट ») &5 ९.०...
-म आओ हि | 25 सी अ
हर नि कि 30 / मिल
धर 5 १440 ० मम
हि ' पर
लिपि के तेज़ लिखनेवाले इस फ, ख, छ आदि को तभी काटते हैं -
जब उनका काटना अनिवाय दो जाता हे-अन्येथा एक ही संकेत
से काम निकाल छेते हैं जेसे---
पुल को 'फुछ! न पढ़ेंगे 'कूल' पदू सकते हे पर आाक्य में
( १६१ )
थदि यह कहा जाय कि वह पुल्ष पर जा रहा था! या “गाड़ी पुल *
पर जा रही थी?, वो सुहावरे से पढ़ कर यह न कहद्दा ज्ञायगा कि
व फूल पर जा रह्दा था! पर यदि ख, छ? आदि कठे हुए
व्यंजन शब्द के आरंभ या अन्त में आवें तो एक छोड़ा सा
हल्का सीधा डैश-चिन्द वर्ण-संक्रेत के साथ मिल्लाकर इस्र प्रकार
. लिखें । जैसे--नं० १ चि० पु० १६०
१-- आदि में -- ख ठ छ फू थ म॒ न
अंत सें>« ख ठ छ फू थू स॒ न
फटा , इम्तद्ान 5
यदि आरम्भ में 'र या क्र! और अंत में व यान! का
आँकड़ा लिखा हो और कद्दीं भी उपरोक्त आँकड़ा लगाने की
जगह न मिले तो यह चिन्ह इस प्रकार लिखना चाहिए।
जैसे--नं० २ चि० प्रु० १६०
२--१ रेंखा-खर ठर छर फर थर नर मर
२ ,, >खन ठन छुवन फत थन नलन सन
३ ४ “खत ठत छत फत ,
ज्ञिन वक्र अक्षरों के अंत में (न! का आँकड़ा लगता है उनके
आँझड़े में भी यद्द सूचित करने के लिए कि वे कदे अक्षर हैं--
एक हल्का छोटा सा डैश लगा सकते हैं। इससे ५त” के आंकड़े
का अ्म न होना चाहिये क्योंकि (व? आँकड़े के डैश में ओर इस
कटे हुए अक्षरों के डैश में बढ़ा अंतर होता है। बक्र रेखा के
धत' वाले आँकड़े का डैश सीधा लगता है और बक्र रेखा में कटे
हुए अक्षरों का डैश तिरछा आऑँकड़े से मिला हुआ लगता है।
बक्र रेखाओं में (व? आँकड़े का डैशा जगाने के बाद फिर यह डैश
नहीं लगता । जैसे--नं० ३ चि० घु० १६०
३-- मत नव - पर » नन मन
।ह]॒
( ६६४३ )
इनके अलावा बीच में कटे हुए अक्षर आते और अथ' में
विशेष अंतर पड़ने का डर हो तो उस अक्षर को कार्ट देनों चाहिए।
आगे के अभ्यासों में भव इन्हीं नियमों को काम में लायथां
ज्ञाथगा और सिवा अत्यावश्यक मात्नाओं के दूसरी मात्रा न
ज्षगायी जायेगी । * है
ह ( १६३ )
क्व, क्षर, रर
“कक ओर ख्ब' के लिए 'क और ख' के, व और घ्व” के
लिए ग और घ' के आरम्भ में ऊपर को 'ल” आँकड़े के
स्थान पर वैसा ही एक बड़ा आँकड़ा लगा दिया जावा है जेसे--
नं० १ चि० नीचे ः
१-- १. कय २, ख्व ३. ग्व ७. ध्व
४०३ 3 0 5 कप ट 2 52383 2 0:+नेक 6 पक
0 मल
३, .. जे ७. ४..*- का
8५ ४ कक ध्फु 7 “पए-- ८7 -++
यह ऑंकड़ा आरम्भ और बीच में ,णगाया जाता है। स्वर
इसके पद्वले या बाद में आ सकता है। जेपे->नं० २ चि० ऊपर
२-- ग्वाला ख्वाहिश अग्वानी
र (नी) और ल (नो) को मोटा करके एक डैश लगाने से
एक (?? ओर लग जाता है जेसे नं० ३०-२-२! “त्-र! | यह
केवल शब्द के अन्त में आता है पजैते--सं० ७ चि० ऊपर
४-० चरर॒ काज्र गृूज़र वील्नरे
हू
नमन पी
( १६४ )
'- कुद प्रत्यय शुद्ध ओर उनके संकेत
,._'अत्ययं थे शब्द हैं जो शब्दों के अन्त में जुड़ कर उनके अथ
में विशेषता पैदा करते अथवा भाव बदल देते हैं ।
ये प्रत्यय संकेत शब्दों के अन्त में लिखे और पढ़े जाते हैं ।
यदि मिलने में असुविधा हो तो शब्दों के पास ही लिख देना
चाहिए । [ चित्नों को बाँण तरफ देखिये ]
१, आगार 5 धनागार कारागार शयनागार स्नानागार
२४२, कर ८5 छितकर सुखकर रुचिकर शांतिकर
३, कारक «» दानिकारक गुणकारक फलकारक छितकारक
४. कारी #** हानिकारी गुणकारी फलकारी हितकारी
४. अर्थी--( 'र! ऑकड़ा और थी ) « ल्वाभार्थी परीक्षार्थी
एरसार्थी
8, आलय शिवालय हिमालय ओषधालय संग्रहालय
७. शील -« धर्मशील गुणशील न्यायशील कर्मशील
८. शाल्ी 5 बन्शाली प्रभावशात्री
६. हर,द्वारी ) सन्तापहर सन्तापद्दरी पापहारी
१०, हार पा मनोहर अनुद्दार
“११. अहार प्रतिदार बिद्दर
१२. संगहार
१३, वाला *“ दूधवाला घीवाला तेलवाला आमवाला
१७, हीन 5 बुद्धिद्दीन बलहीन ज्ञानहीन . घर्महीन
१४, बान. « गाड़ीवान कोचवान * इक््केवान
१६. जनक +- सन्तोषजनक अआशाजनक
श्७ क् -- (भरद्धा से)ल्गायक पाठक मसारक
श८. चंद ज० मिलावट बनावट सजावट
गगमननन रे तह कर्क ० हि
छ् क थे
है. 0 अत १0 विज
रे
६.८ 2८
यू ४0 ४5:5०% अडेनन-व5
या
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> अं
"
8४ | ५
प ी पल
६ अऑॉ पफ-त
६ १६८ )
फ्च्ट हट 5३ हल न् ॥॒ हर
७.
न्यू #
४६.
९०.
शुद्ध
हि
सामा
साजन्ी
वादी
( रेद/£ )
सनन््तोषप्रद थ्राशाप्रद
(काट कर)-- हलफनासा बंयनासा
इकारनामा
जालसाजी
राष्ट्र वादी साम्राज्यवादी
उपसग
उपखर्ग वे शब्द हैं जो शब्दों के पूर्व जुड़ कर उनके अर्थ को
चटाते बढ़ाते अथवा उल्लट देते हैं। जैसे--सुजन, सुपथ ।
१.
२,
३.
प
<«५
१०.
$१.
ञ्रं
परा
अप
ड्प ,
अज्ु '
| |
नि $ एणगें न्|
मिस
निर
त्त्ा
अति
|
प्रयत्न अचार प्रवत्त अख्यात
(अलग)--पराजय पराभव' पराक्रम
(लाइन के झपर)--
अपकीर्ति अपमान अपशब्द अपकार
(लाइन काट कर) -“उपकार उपकृत
(ज्ञाइन के ऊपर)--
अलुदिन अतनुकरन अनुचर
(लाइन पर)-निधन निवास निषिद्ध
इनसाफ
निष्पाप निष्कर्म निश्चय
(लाइन पर, मिला यथा अलग)--निरजीव
निरमल
(साधारणत: लाइन के ऊपर)--
आमरण आजीवन आकर्षण
आयोजन आक्कान्त ह
(ज्ञाइन फे ऊपर)--अतिक्काल्ल अतिव्याप्त
अतिशय
(काट कर)--नालायक नाइत्तिफाक नापसन्द्
१२. ?
१३ ०
७४6..
३ छत! -
१६ 0
७७
१८ 92९
8
२०-/
५ 200 लक
» रे
२४ १०८
2 आओ
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पति »> ००० फरप हे हर कि न |
भ-छ क पुदाजढ
०० डे &/:5,' पड ०
# थमा ४
पथ की टाटा, 22 डर न
( १७१ )
. १२., सम, समा, सन“ संकेत के पहले अलग या मिलाकर---
« « जब समागस संतोष संग्रह संरक्षण
१३. सा, सु-(नियमालुसार 'स' बृत से)---
न सफल सजल . सजीद खयत्न
१७, सहद्द --(नियम/ नुसार स-+-ह से)--
न्न सहचर सदहरमन . सद्दोदर सहवास
१५, सत्् --+ (ध्वनि के अनुसार)--सज्जन सदूगुरु संमित्र.
१६. रब? > नियमानुसार स्व? वृत से-स्वकुल् स्वदेश स्वरचित
१७, दुख+(लाइन पर, अलग या मित्रा ) --
दुष्कम दुष्प्राप्य दुश्चरित्र
१८. दुर न ( पर कद )--दुरजन दुरगस
१६, कु ८ (अलग या मित्रा)--कुचाल छुछुत छुमारय
२2०. चिर०० चिरायु. चिरकाल
२१. भर ८ भरपेट भरपूर भरसक
२२. बद् ८++ (ब अद्भधा)--बदबू बदमाश बद्शकल
बद्कार बदनास
२३. कस, कान--( व्यल्ञन के आरम्भ सें एक विन्दु)--
* * कमज़ोर कमजोरी कम्बख्त कांफ्रेंस
२७. हर ८ ( मिला या अलग )--दररोज़ दरसाल हरदिन
२७५, हम 5-5 ( काट कर )--हमसाया हमजुल्फ
२६. अघ-- ( मितल्लाकर या अलग ) --
ब* अधपक्का अधसेरी अधघजल
२७, वी ८-5 (नियमानुसार ) विदेश. विज्ञान वियोग
विकल विशेष
२८ दि हे सन सह वाद है ः हा . ह । ६: नर
३0 ८ .. « २5६ को पु बाद के
8. ०« #_ 2 ८०-
३२ था |
2० पद न 22, 20 ० पल पट नल मद पर मम
श८. वे /+ (लाइन पर ) --वेइमान बेकार बेहाल
२९. बा + ( लाइन के ऊपर)--बासबब बाज्ञाव्ता बाकायदा
३०, कुल ८८ कुलबधू.. कुलघर्म कुलदेवता
कुज्ंगार. छुल्लश्रेष्ठ
३१. जीवन -5( लाइन को काट कर) जीवनलीला जीवनघन
जीवन चरित्र
3२. यथार- ( काठ कर ) --ज्ञाइन के ऊपर--यथायोग
यथाकाल यथाशक्ति
३३५
डे,
रा
( १८७३ 2
अभ्यास-- ४८
में आम खाता हूँ। तुम क्या खा रदे हो! राम तो पहले हो
खा चुका है। घोहन ने भी तो खाया है| जब में आम सा रहा
था तो वद पहले दी से भा डटा । पर राम उच्चके भो पद्दल्ले आ
चुका था। सोहन ने भी खूब आम खाये। गोविन्द भी एक
किनारे बैठा आम खाता था और जो कुछ आम खा चुकता था
'उस्को गुल्नडी सोहन पर फेंक देता था ।
रात श्राठ बजे या तो में दूध पी रदह्या हुँगा या पी चुहा हुँगा।
दूध वो मैं और पद्ले पी चुका होता मगर कैसे पीर घर में तो
कोई था द्वी नहीं । भाई कहीं घूमने जा रहे दोगे ओर रमेश कहीं
खेल्ता होगा । आखिर कया वे ज्ञोग न पियेंगे में ही पीता ।
स्टेशन पर कितनी द्वो चोजें बाहर से ज्ञाई जाती हैं। अगर यह
चीजें बाहर से न लाई जातीं ता काम न चत्षता | जब में चहाँ
पहुँचा सो भाम ज्ञाया जा रद्दा था। लोबचियोँ पहले ही से लाई
गई थीं ओर भो बहुत से फ़ल्न लाये जाते होंगे यद्ट देख कर
सुझप्ते न रद्दा गया। मैंने सोचा सुस्ठे भो कुछ खाना चाद्विएु।
यह सोच कर आम पर में दृ८ पद्ा भोर जितना खा खकद्ा था
साया ।
झगर तुमने भाम खा ढाज्ा तो कौन सी बढ़ी बात हुईं । चद्द तो
घर पर इसीलिए रखे थे। तुम पहले से वहाँ उपस्थित नहीं थे
नहीं तो तुमको पहले मित्र जाता। श्याम को तो में पहले
ही दे चुका था। वद्द तो आज घर पर द्वी था । रास्ते में गिर
पढ़ने के कारण कल वह कहीं नहीं गया था, न भ्राज जावेगा ।
प-- ०. पे ८ ल्््> 5 ह्ह्श्ठ डे ५ अनअ ८५
-० लत. ऋककिजक फारम
् नन >»०+ ०४०००००००%०«० लय
प्लस ०े..& ०६. ल्््चट ध्छ का
ट्् ल्चप
"-+ पल “५ पल “चर सकल हरि कर 5
७... #७००«
श पर] कक कक के कक के का कोन का कस 4 पक थक २ क कसा बम कान के काने ऋ कम के.
क्र ८ € #छ ७ + ०
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८. #० - -“ल' का खकडा "7 त का अकिड़ोा
बन. »०नन -«» - डेँ; बट ( -- ४. करत तप पू द्द्ं ज्ड ढे. .--न-
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मर 5 अ 2 6 न ्।
2०2
५२०५ ० ० जग के >मनन ३३ग०नमन*न
पु
( ६७५ )
क्रिया
काम के करने या होने को किया कद्दते हैं। सवनाम के
समान यह भी ध्यान देने योग्य विषय है। रूप के विचार से
*नियमालुसार इनके कुछ साधारण चिन्ह निरधारित किये गये हैं
जो लिपि को संक्षिप्त करने के साथ ही साथ सुचारुता और पढ़ने
में सद्दायता देते हैं ।
केतों के लिंग और बचन के अनुसार क्रिया को मुद्दावरे
से पढ़ना होता है जैसे यदि “जाता? शब्द लिखा है तो
व्वे! के खाथ 'जाते! ओर वद ( ख्लीलिंग ) के साथ “जाती”? पढ़ा
जायगा ।
(अ)
(६ चित्रे बाँद तरफ )
पहले क्रियाओं के मूलरूप पंर ध्यान दीजिये-न॑ १ से ६
मूलरूप सांघारण प्रेरणाथथंक; मूलरूप साधारण ं प्रेरशार्थक
(सकसे क) सकमेक सकसे क; (अकसेक) सकसेक सकम्क
१--खाना खिलाना खिलवाना; गिरना गिराना गिरवाना
२--खांता खिलातां खिलवाता; गिरता गिंराता गिरवाता
३--खाऊ खिलाऊं खिलवाउं;। गिरू' गिराझँ गिरवाऊँ
४--खाभो- खिलाओं खिलवाओ; गिरो गिराओ गिरवाधी
४+-लाइए खिलाइए खिलवाइए; गिरिए गिराइए गिंरवाइए
<--खावें खिलावें खिलवाबे'; गिरे'- ग्रावे गिरवाबे'
( २७६ )
ऊपर क्रिया के दो रूर दिए गये हैं। एक सकमेक क्रिया
ओर दूसरी अक्मक क्रिया से बनी हुईं सकमेक क्रिया है | इनके .
रूप प्ेरणार्थक क्रिया में गरदनाकार दिखलाया गया है।, -
१.
ब््
अक्रमेक क्रिया में कम को आवश्यकता नहीं होती ,
ओऔर बगैर कर्म के दी साथक वाक्य बन जाते हैं: जैसे--*
गिर पड़ा । हट
सकसेक क्रिया में कर्म की आवश्यकता ट्ोती है ओर.
बगैर कर्म के सार्थक वाक्य नहीं बन सकते हैं। जैसे--मेंने
आम खाया और बगैर “आम? शहद के वाक्य पूरा नहीं
द्ोवा।
प्रेरशार्थ क क्रिया ले जाना जाता है कि कर्ता किसी दूसरे से
काम लेता है। जैसे--वह् दिवाल मजदूरों से गिरवाता है।
क्रिया के मूल रूप को उच्चारण के विचार से बनाकर
(१) में “न”! आँकड़ा, (२) में (वा आऑँकड़ा, (३) में 'ऊ! का
चन्ह (४) में 'ओ” का चिन्ह (५) में '१एए का चिन्ह और
(६) में 'वे” का चिन्ह लगाया गया है। इसके लिए निम्न
चिन्ह निरधारित किए ग्रए है। ये सदा लाइन 'पर लिखे
जाते हैं | जैसे--नं० ८'चि० पू० १७४ हि
८ (१9 ना का आंकड़ा , (२) 'ति! का आंकड़ा
(३) 'ऊ (४) ओ! (४) 'इए (६) वे!
सकमेक के दूसरे रूप का ध्वनि के अज्लुसार संकेत
बनाकर सदा प्रथम स्थान में लिखना चादिए क्योंकि साधा-
रणत: इसमें प्रथम 'स्थान की मात्रा अवश्य रद्दती है।
जैसे--नं० ९ चि० पु० १७८
हज *६ हैं ह (् १७७ )
: गिराना, चढ़ाना, दबाना, काटना, भागना, तोड़ता, खिलाता,
खिलाना, आदि । यह भुद्दावरे से बड़ी सरलता से पढ़ लिये ज्ञाते
क्योंकि सकमक - क्रिया में साधारणत्त: कर्म अवश्य मित्रता
है और कर्म मिलते ही क्रिया का सकमक रूप पढ़ना बहुत
सरल हो जाता है। परन्तु यदि फिर भी पढ़ने में दिक्कत
पढ़ने की सम्भावता हो तो इन समूर्मक क्रियाओं के पास
आरंभ में -एक “आ/? को मात्रा रख सकते हैं। इसे मतलब
' बिलकुल श्राफ हो जायगा कि क्रिया सकर्मक के दूसरे रूप में
है जैसे--चित्र नीचे
8, “थे व्णए
2 कक घर काम करने के लिए।
अल & - फाम कराने के लिए।
शैलपकाक 7 इक हु काम करवाने के लिए |
३. प्रेरणाथक क्रिया को भी प्रथम स्थान सें लाइन के ऊपर-
लिखना चाहिए पर'क्रिया के अत में 'वः का चिन्ह अलग
या मिल्लाकर अवश्य लिखर्ना चाहिये। रूपों क्ो' ध्यान से
देखिए और सममिये कि यह “व चिन्ह कह्दों पर किस प्रकार-
से मिलाया गया है जैसे--प्न५ ३ चिं० ऊंपर
५०, ४ न»...
१२
(६ उप
( ब )
वतेमान--१
कठ बाच्य क्रिया के रूपों पर ध्यान दीजिये--
! ४७ ६.0 ६.०७ ४» “57
नि रँ
+
१--मैं खाता हूँ, वह खाता है, तुम खाते द्वो, हम खाते हैं।
'त? का लोप कर क्रिया के अंतिस व्यज्न को अद्भा कर देते
हैं, फिर 'है? आदि को लगाकर मुद्दापरे से पढ़ लेते हैं। यह रूप
ज्ञाइन के ऊपर, लाइन पर, य। लाइन काट कर क्रिया के ध्वनि के
अनुघतार लिखा जाता है जैसे--न० १ (१) चि० ऊपर
२--मैं खा रहा हूँ, वह खा रैहा दे, तुम खा रहे हो ।
'रहा हैँ, रहय है, रहे दो? आदि के लिए क्रिया के अंतिम
व्यज्ञन को दुगना कर दिया जाता है और फिर 'है? आदि लगा*
कर मुद्दावरे से पढ़ लिया जाता है। जे से--नं० १ (२) चि० ऊपर
३--मैं खा चुका हैँ, वह खा चुका है, तुम खा चुके हो ।
चुका! के लिए 'कः से जहाँ तक द्वो क्रिया को काट दो भौर
यदि सम्भव न दो तो उसके पा लिखो। इसमें “व” का लोप
हो जाता है। जैसे--नं० १ (३) चि० ऊपर
४--मैंने खाया दै--फक्रिया को पूरा लिखकर 'है? को मिल्षा
देना चाहिए। जैसे--नं० १ (७) चि० ऊपर
नपफ्ा
५ /८॥
52
ध्ण
.।
रथ
भर
ये
|
।
|
श्
शव
व
|
ण्टे
३+
[|
व
4
की
टिट।ए
शो 3 जे
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8 +% ७
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हट
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जन
*72
व्थ,
न
सियककी
मैंने खाया होगा-- प्श्
के प् हऔरणः का
भें २ ७)
भेतकाल की बहुत
का लगाकर? बनाई जाल है यह यार, ऐे गया?
कैश 82:
है | जैसे" चिन्ह न लिखकर प्बः के हे रू. मे के जे
>> छोटे रूप से सूचित करते !
4 जैसे-नीचे .
० |
१--मिल 3 कक 4
लगया। |
विलंब बी, याहै। रै--मिल गया था ।
ले गया होगा।
कक अर उफनकनन्कक०्पतन
कं २५४
( १८० )
से दोता! और 'दोगा? पढ़ा जायगा । अन्य स्थानों में पूरा
वृत और “त या ग! लगाया जायगा |
भविष्यत काल-- रे
॥६- ६3३७० ५ है...
में खाऊँगा--ब्ृतवाली अनुस्वार की मात्रा लगाकर क्रिया
को थोडा डेश के रूप में अक्षर के प्रवाह
की तरफ बढ़ा दीजिये । नं० 9 (१)
२, में खाऊँ--४3? का चिन्द्र जैसे पहले बताया गया दै
लगाइए ।
में खाता हँगा--'त? का लोप कर पूरा 'हूँगा” लिखिए ।
मैं खाता रहा हँगा--ऐसी क्रियाओं में जहाँ 6” के पश्चात्
'रहा' आये तो क्रिया के अंत में त'-क्षगाकर
दुगना कर दिया जाता है और फिर हिँगा!
आदि जोढ़ते हैं| ऐसा करने से “खाता रहा
हूँगा! और 'खा रहा हूँगा?,का अंतर स्पष्ट
द्वो जाता है। नं० ४ (४) और ४ (५)
मैं खा रद्द हँगा--'रह।' के लिए क्रिया के आखिरी
'अक्तर को दुगना करके हिँगा? जोड़ा ,गया | ४ (५)
६. में खा चुका हँँगा--क' से चुका के ल्षिए काट दिया
ओर फिर 'हूँगा? जोड़ दिया | न॑० ४ (६)
' ७, मैं खा चुका होता--/क+दोत चुका दोता | नं०४ (७)
न्श्च
]
ण
५४
.._ २६ हपाओं
हि हो को निम्न
| £ (३)-. मर गया हो
"हिला के बीच हर वा होगा।
द्
( ई६ंए२ )
यदि (२) शब्द;का अंतिम अन्षर वक्त रेखा है तो अलग
से 'ह” लगाना, चाहिए | जैस--चि० पू० १८१
हो।
नं० ३(२)-वह देता है। यदि वह देंता
चह खेलता है। यदि वह खेल्ता द्वो। .
क्मपाच्य' क्रियाएँ
१, पे (््् ३ हा «२.५ कि: ५ (३ #% 75% पा नबी
थ 5 ः नह 3 हक । 5 «के ५ "रू ८ हि नि हर
४
३ '€६ ,६6, ६८ ,$ ४)"
' १०१) सें ज्ञाया जाता हैँ । ज-+ह--जांता हूँ ।
(२) में लाया जा रहा हैँ। _ 'रद्ाः-के लिए 'ज? को हुगुना
किया फिर है” लगा दिया।
(३) कपढ़ा लाया जाता होगा। ज+हो+-गा--जाता होगा ।
(७) यदि वह ल्ञाया जाता हो । ज+द्ो--जाता.हो |
(५) तुम लाये गये हो।.. गये+हो--गये हो।
३०१) तुम लाये गये थे । गये+थे--गये थे ।
(२) छाता ज्ञाया गया होगा। गया+दो-+ग--गया होगा ।
(३) में लाया जाता था। ज+थ--जाता था |
(छ) वह लाया जा रहा था) “रहा? के लिए 'ज! को दुगुना
किया फिर “था? लगा दिया।
(५) वे लाये जाते | ज्ञा! और त' आँकड़े से जाते ॥
( (८३ )
३-१) मैं लायागया होता |” ग्रबा+हो+ता--गया होता
(२) वह लाया जाता होता। ज-+-हो +-ता--जाता होता।
(३), बह ल्ञागां ज्ञायगा भविष्य काल ।
(५) छात्ता ल्ञाया जाय तो में देखें । 'ज्ञाय' में 'या? का लोप |
(५) कपड़ा लाया जा चुका है । ज+-क+-है--जा चुका है।
[ ज्ञोट--क्रियाएँ जो मिल्न सके उन्हें, मला देनी चाहिए।]
कुछ ओर साधारण वाक्य
ही पल 0 पद
आओ
कि
३ ५. 0. मर]
१. मुमझे खाना चादिए। अद्धेब्वुत के आँकड़े को क्रिया में
लगाने से “चाहिए? लगता है। 'ल
लोप हो जाता है । नं० ९ चि० ऊ०
२. मेंखा सकता हूँ।. सकता हूँ? क्रिया से मित्रा कर
लिख सकते हू । मं० २ चित्र ऊपर
३, में खेलने के लिए... क्रिया में 'ल” लगाने से (लिए!
बाजार गया | पढ़ा जाता है। नं० ६ चित्न ऊपर,
४. क्रियाया दूखरे शब्दों को कुछ वर्णाक्षरों से काटने पर
विशेष अथ सूचित होता है। जैसे --
१. क्रिया को 'ड' से काटने पर डाला! पढ्ा जायगा।
२, 99 79 ध्र् 8 ड्ग धखाः 9) 99
[नोट--र अल्लग लिखा जाने पर 'रहए पढ़ा जाता है ]
( १८१ )
३. क्रिया को 'क' से काटने पर “चुका? पढ़ा जायंगा ।:.
छ, भ » ४्य) 9. ६३9 / विढ़ां आओ ऊ
् है 4) पन्ना मी कर हु '्गाए', ', ह कक ३.
[ नोट--लाया के वास्ते 'लः अलग से लिखा जाता दें ॥-
६, ”.. » पसः (ख.- बृत ) ” उपस्थित? »
जैसे-- चित्र नोचे कट दर
६
न
१. हा मैंने आम खा डाला।
४. | «४ »« -:» ओआम घर पर खखे हैं।
(् विश
३. > ४? » वह पानी पी चुका है।
€ श्र नर
४9. . ', .» -«- »*» वह रास्ते में गिर पड़ा ।
(् छठ ॥ # न]
४. १ , ः , £ वह कहने लगा में मारूगा।
कक अब लि तुम वद्दों उपस्थित नहीं थे ।
[ इन नियमों से क्रियायें बड़ी सरलतापूवंक लिखी और
पढ़ी जाती हैं। विद्यार्थियों को चाहिए शि वे इन्हीं नियमों के
आधार पर क्रियाओं को खूब अच्छी तरह से अभ्यास कर लें
क््योंकि हिंदी में क्रियाओं का स्थान सबसे मुख्य स्थान दै।
इसके अलावा क्रिया के बहुत से और भी दूसरे रूप मिलेंगे।
उनमें से अधिकांश का वन आगे के वाक्यांश के परिच्छेद में
मिलेगा | विद्यार्थियों को चाद्दिए कि ऐसे चिन्द्र वे स्वयं बनाने
का प्रयत्न करें ] *
अमर परमपरकका 'अननलनन
( ९5७६ )
सकते हों। संधि के कुछ डदाहुरण--
फ्
(5 ५....२./
४ थ ला **- ह- कप का] श्र हक *
ः ] ए,
परमेश्वर , . श्रद्धांजलि सिदहासनारू
सिंहावलोकन सहोत्सव _
#०___> :) हणमन्मकक
कुछ संख्यावाचक संकेत
१, १, २ की संख्याएँ यथावत लिखी और पी ज्ञाती हैं
पर ३. ३25३: कै? 862.
शी
ढब २८ है; ६८ 4 9८ रँ ए्८ आंदि
जिलों , जुल र ४- + 7 आदि
ने ४3... ४: थ
जे , -४ आदि
. (९ _ (२३७ 6 (७ / (५७)......
(पृ) (६) ८ .-(५४७) ०...
(७) #* (६ ८ आदि
-कत धथ 6 #वथ ०
( रैंए७ )
पहला के लिये शब्द चिह्ु नं० १ बना है। दूसरा,
.पीसरा, चौथा इस तरह लिखा जाता है। जैसे नं० २
'चिं० पु० १८६
'पाँचवाँ, छूठवाँ. सातवाँ आदि इस तरह लिखा जाता*
, है । जैसे->नं० ३े चि० पू० १८६
[ नोट--संख्याओं के वाद जो आठ का सा चिन्ह बना है
| वह “ज! का चिन्ह है ।
दोनों, तीनों, चारों आदि को “ओ! की मात्रा लगाकर
' बनाते हैं । जैसे--न० ७ चि० पृ० १८६ '
_ हुगुना और तिगुना इस प्रकार लिखा जाता है जैसे--नं० ५
नीचे न! चिन्ह रखते हैं | चि० ए० १८६
सैझड़े के लिए 'ख!ः>-नं० ६-१ $ चि० पु० १८६
हजार के लिए “६ः--नं० ६-२ ;
लाख के लिए 'ल?'--नं० ६-३ ;
करोड़ के लिए 'क”--नं० ६-४ ;
अरब के लिये 'रः (नी)--नं० ६-४ ;
खरब के लिए 'ख'--नं० ६-४ ओर
संख्य के लिए 'सक'--नं० ६-७... लगता है।
दस हजार, दस लाख़ आदि के लिये सांकेतिक चिन्ह के
अंत में 'स' बृत क्गा दिया जाता है। जैंसे--नं० ६-०८ दे
६--६ ; दस लाख, दस हज़ार.आदि-। 'चि० पृ० १८६
विराम अधिकतर हिन्दी संकेत के लेखऋगण स्वयं दी.लगाते
हैं।। इनका प्रद्शेन कर समय व्यथ नहीं खोया. जाता पर यंदि,
-समय मिले तो आवश्यकतानुसार--- '
(१) अ्रद्धंविराम याकामा को “3? की मात्रा से सूचित
करते हैं। ;
(२) दोहराने के,लिए इस चिन्ह '$? का भ्रयोग द्वोताहै। .
(३) बात-चीत में डैश के स्थान पर इस तरह-*का
चिन्द्द लगाया जाता है । ेु
(8) विराम चिन्ह के लिए एक छोटा सा क्रास *>८? लाइन
पर लगाते हैं ।
दूसरे चिन्द्र नहीं लिखे जाते ओर मतत्नब से सममे तथा
लगाये जाते हैं ।
अम्यास--४६
डेश से मिन्ने हुए शब्दों को एक साथ लछिखो--
4. - युवावस्था मानव जीवन का दसंत् है। उसे पाकर मजुष्य मतवात्ा
हो-जाता है । हुस अवस्था में न उसे कारागार का बर रइता-है,
न चह. दितकर कार्यों से भागतः है। बह द्वानिकारक कारों से
बचता:ओर. गुणकारो कामों में क्गता है। व अपने को भर्मशीक्ष,
तथा बलशाली बनाना-चाहतानहै और संतापह्ारों काव्य से दूर
रहकर मनोहर कार्यपों' को करना-चाइता-है।
हा. बिदजलकर जम वफृटमाम कृत. हक 3» इन
हे ( (१८६ )
न
, यह तेलवाले, आमवाल्ने, कोचवान, इक्करेवान, चरवाहे आदि
स्
अधिकतर बुद्धद्वोन दोते हैं। हन लोगों का व्यवहार संत्तोषजनक-
नहीं होता । तेल्चालों के तेल में श्रक्तर इतनी मिल्नावद रहतो-
है कि चिकनाहुड तक नहीं रह-जातो । दूधवाले तो कभी कभी
हुगना या तिगुवा तक पानो मसिल्ञाते ६, यहाँ तक-कि दूध का
मीठापन तक निकल-ज्ञाता-है। इससे उनका अपमान होता-है
और यही उनके दाध॒रव की निशानी है। ऐसे कामों के द्विए्
सी भ्रवद्धमन्द नहीं कहा-जा सकता | अगर वे ऐसा न करते तो
शायद अपने जीवन को सुखपूवक-बिता सकते तथा धनपूर्ण और
कट्ठता -रदित बना-सकते +
अशुदिन मनुष्य को इस बात का अयत्न करना चाहिए कि पराजय
तथा अपकीति न हो चरित्र विर्सक्ष तथा निष्पाप बना रहें,
दुरजणन से घचा रहे तथा सब्जन का खाथ दो। इससे मलुष्य
आजीवन सुखी रद्द सकता-है | उसको दूसरों के साथ उपकार
तथा इनलाफ करना-चाहिए |
तुम्हारा हर चक्तबाहर रहना देमें नापसन्द है। यह तुम्दारी
प्रतिद्ित की _ आदत सौ हो-गई-है। बदमाश तथा वाल्ायकों
का खम्रागमन हो गया है। यह चिरकाल तुम्धारे जीचन-यात्रा की
सफन् होने से रोकेधा । इसके कारण तुस्र शमी से दुष्कर्स में
फंघ गये और तुम्हारी आदत कुचाल की-पढ़-गई है। झथ न तुम
पेट सर खाते हो; न तुमकी सटध्ोद्रों का ख्यात् है। हर रोज
_बस दमजोलियों के साथ फिरा-करते दो । थदि' तुम. वथाशक्ति
अपने को इन कमरबंख्तों से दूर रखने का भयत्व म-फरोये, तो
तुस्हारा द्वाल बेहाल हो जायगा, छुम कमज़ोर दो जाश्रोगे और
चिकन रहोगे वा दाक्षायदा कुल्नाँगार की तरह फिरा-करोगै।
दूसरा भाग
आगे बढ़े हुए छात्रों के लिए
कपमन०;भक्रपाजाजमाावाप/पहचापकाम
हद ह]
[ अब तक जो कुछ आपने पढ़ा है उसका अच्छा अभ्यास
करने पर आपकी गति कम से कम ११५-१२५ शब्द प्रति-
समित्ट की अवश्य दो जायगी। चाहे किसी स्थान पर कैसा ही
शठ्द क्यों न वोला जाय आप उसको सरलता से लिख लेंगे।
हमारा उद्देश्य यह्ष है कि हिन्दो के सारे शब्द केवल ,दो बण
ओर आँकड़े आदि के प्रयोग से द्वी लिखे जा सकें। इसलिए
दी और उदू के करीब १०,००० (दस हजार) शब्दों के
सथने के पश्चात् जिनकी रेखा दो वर्णों से बढ़ती थी उनके
संक्षिप्त-संकेत बना दिये गये हैँं। दूसरे भाषा के प्रचक्षित
चाक्यों की भी एक साथ लिखने के नियम तथा एक बूद्दत
सूची आगे दी गई है। इनका श्रच्छा अभ्यास कर लेने पर'
ज्आपकी गति फौरन ही १५० शब्द प्रतिमिनट पहुँचेगी । ]
ग 'हं- डे
+ फिट न हा हर
"5५ ६ १६१ )
ञ्च हिल ५, नर
त ही
| लक 3 गा
0. के विशेष नियम न
व ज व आरंभ, बीच या अंत में दो 'श? एक साथ आदचें
2 दीन एक केचांद दूसरे च्त बना कर लिखे जा सकते
कह हैं पहला चूत अपने स्थान पर लिखा जाय दूसरा
2१६5 बुत, सुविधानुसार किसी तरफ भी लिखा जा सकता है।
87७ जैसे मं ८६१ चित्र नीचे
ध्झ्क हर न,
जब्त नमी
का आ. $++ का ने, था सा» ॥ कर कस तन,
6. |
कक के कि ४०७७ क बी जऋ 20 ७७० ३७ कम ००३१७ इक सह अत के कक कक का. सकि क करत कण चा५क एन एन
१--सुस्ताना, सुशोभित, शशक, , कोशिश, ' जासूस
५? बृत के बाद 'सः चृत ओर भ्खा चुत
चाद €” दूत
भी इसी प्रकार लिंखे जो सकते हैं। यहाँ भी पंहला बुत
यथास्थान ' द्वोंगा। दूसरा और, तींसरा, जंतं किसी
कलर
च ईं.
! ई
हर हे ड
है 5 रे
438
ह्र्क ३
५,
( १६२ )
तरफ भी लिखा जा सकता है | धोच की मात्रा का विचार
नहीं [कया जाता । जेसे--नै० २ चिठे पृ १६१
२-- महसूस मसेहरी . बहस इतिदासे इंध्ामसीद
वग के अक्षर अंत सें 'म' -के पश्चात् कैसी कंभी ऊपर
भी लिखे जाते हैं | जैसे--नं० ३ चि०'प्ू० १९१
-- नामजद
सास 'स्त वृत से छोटा वृत जिसमें वृत के बीच की जंगह
करीब २ निकल्न सी जावे आरंभ में लगा दी जाय तो 'सनः
ओर बोच में लगा दी जाय तो “अनुस्वार! की सात्रा पढ़ी
जाती है। जसे--नं० 9 चि० पृू० १६१
४-- सं॑दे संतोष घन्धा
“प! वृत के बाद 'र” आँकडढ़े के व्यंनन अगर न मिलें तो
'सः बृत को बढ़ा कर मिला सकते हैं। जैसे--नं> ५
चि० पू० १६१
७५-- संतोषप्र लाद
थआ! की सात्रा व्यंजन, बृत या आंकड़े के पहले एक मोटे
लम्पाकार डैश के रूप में जोड़ी भी ज्ञा सकती है।
जैसे--नं० ६ चि० पु० १६१
६-» आज्ञा साधारण अधाधारण प्रसन्न अप्रसन्न
(इ? की मात्रा अन्त में इस प्रकार भी जोड़ी जा सकती
है । जेसे--न० ७ चि० पू० १६१
उन के पी नीली
जब “व में ह” को लगाना द्वो तो 'स” बृत की तरद्द
लगाते समय पहले एक डेश स्रा लगा दो। जैसे--नं० ८
चि०,पू० १६१
८ देवालात - दइदचलदार '. हृवादार - हवत
यदि 'स्त! का आंकड़ा सरल रेखाओं के आदि या
अन्त से क्रमशः 'र” या “न! के स्थान पर आबे वो ये
कुरेरी
हे)
से अंत में ५ कै
पेकेक्शाँ के
अंत फ्े डुगते
अलावा चिर्ा भी
३० (६५
श््ख
*)
; ०
6८
४
ध््
-अपे परिषद ह्त्यि परिषद्
"आर जे प्रधान अधानाध्या भधानमंत्री
- से गवनमेन्-_ शवीय गज मे
* किक हे किभाय.._ पृह्नि विभाग
सेफ ्ि पजदूर १०३
दः्स्े ० भजदूर दक्
रह? से रहित प्रभाव रहित
सम” से समिति चाहित्य प्रिक्ति, फ्सीत्षा ४
समिति
ड्श्स्े डिपार्टले से डिपाटे
( २ )
री तरह विशेषज्ञ या भावजञचक ते। बताने के भी इस
नियम क| पालन कि गाता है । है... पॉढ तर
त्ः्जे त्म्रिक __ पत्तात्मक, परायात्मकू
पके द्कि 'भवोत्पादक
है. के से ड देनिक, भार
गन! से गण पालक
बात्यांश : -
वाक्यांश से दमारा बाय के उन से प्रयोजन ड्डै
झो किसी पुरे वाक्य के बोलमे में प्रयोग, किए जे
है । जैसे इछ शब्दों के लिए वाक्य में बार बार दिखा
केत निरधघारि गये हैं. और उन्हें शब्द-
चिन्द्द कहते हैं, उसी भकार बयांशों के रघारित चिन
को वाषयाश विन्ह कहते हल बनाने की
अभ्यास कर छेने से लेखकों की गति में पयोौप्त इंद्धि भार मे द्दो
जाती दे) कस से कम ९० शब्द प्रति सिनट बढ ज्ञायगी । नियम
आर उदाहरण आगे दिये जाते हैं। यह लियमाठुसार दो एक
अक्षरों को कोप कर बनाये जाते है.।
छुछ जुट शब्द
)
हिन्दी में 5 ऐसे जुट-शब्द है जो प्रयोग में तो एक साथ
ञआते है. पर अर्थ में बिलकुल भिन्नता रे जैसे
छत, किये विक्रय) आदि विपरीतार्थंक शब्द
कहते
( (६८ )
[ नं० १ चि० पु० १६७ ]
१, आकाश-पातात्न २, जीवन-मरण
३. शत्र-मित्र ७. स्ली-पुरुष
४, द्न-रात ६. लाभ-हाति
७. शुभ-अशुभ ८. घर्म-अधमे
९. न्याय-अन्याय १०, चर-अचर
११, उचित-अनुचित ८०, सोच-विचार
१३. खेल कूद १७, मंट-पट
१४५, नेठ-खठ १६. जय-पराजय
१७. खंटपट १८, क्रेय-विक्रय
१९. मेंल-मिलाप २०, ऑधी-पानी
२१. ख्व्गे-तक २२. सुख-ढुख
छुछ जुट शब्द ऐसे दोते हैं. कि पहले शब्द में जोर देने
के लिए प्रयोग होते हैं. और उनके अर्थ में मिन्नता नहीं होती
जैले--धी रे-धी रे, जल्दी-जल्दी भादि । इनको 'अवधारित
[ अवधारण--कीए090988 जोर देना ] शब्द कद्दते हँ।
यहाँ भी पदले शब्द को लिखकर उसके बाद यह ४! चिन्ह
लगा देने से पहला शब्द दो बार पढ़ें जायगा | जैसे--नं० दे
चि० ए० १९७ ;
२-- . धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा
जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े.
कभी-कभी बीच में कोई विभक्ति या ही, आती है. ओर
विभक्ति के बाद हो पहला शब्द फिर आता दे । ऐसे स्थान
पर यह सूचित करने के लिए कि विभक्ति के बाद शब्द
दोददराया गया है अगले शब्द के पहले व्यंजन में एक छोटा
( १६६ )
सा डेश लगाकर शब्द काटा जाता है। जैसे--नं० ३
, चि० पु० १६७
३-- सारा का सारा दिन पर दिन
पर यह सूचित करने के लिए कि अगला शब्द ही? के
बाद आया है, पहले शब्द के अंत में 'स”ः वृत लगाकर
अगले शब्द का अंतिम व्यज्लन उसमें मिल्ना देते हैं। जैसे--
नं० 9 चि० पू० १९७
४-- दरियाली ही हरियाली पानी ही पानी
यहाँ पानी लिखकर उसमें उसके अंत में 'स” वृत लिखा
गया है और फिए अगले शब्द का अंतिस अक्षर 'न' मित्ला
दिया गया है ।
यह वृत्त ही? के अलावा 'दां, सा, सी? ओर कभी कभी “और”
को भी सूचित करता दे | जैसे--नं० ५ चि० पू० १६७
४-- ज्यादा से ज्यादा कम से कंस
डर
' श,
8,
१०,
१९,
१२
१३,
९७,
१६,
१8६.
१७,
श्ष,
पाफ-साफ
€ -२०१ )
वकयांश-..
होती है १६,
'त्रगती है २०,
हो जाती है २१.
होती रहती है २२,
आती ही रहती है २३.
पद नही है २,
यह आवश्यक है २४,
यह देखा जाता है २६,
पह सुना जाता है २७.
यह तो निश्चय ही २८,
आशा छ) जाती २६,
आशा नहीं की जा सकती ३०,
अधिक से अधिक रे १,
अधिकाधिक श्र,
चाहनेकाते रे३े,
जुपके से १४,
डील-लैल १५,
शे६,
तितर-बितर-
आतःकातर
शमधाम हे
अन्य प्रकार
आज शआत:कात्
अल-फूल
वाफ-रा
वाल-कच्चे
हात्र- पात्र
जत्तरोत्तर
जॉच- पढ़तात्न
उख-शांति
साथ ही साथ
हाथों हाथ
शा #०ए. ७
हु ५ |
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श्र
है ॥ ् ॒ ढ श्ज्
६-५
७ ९. ..२. ..
€ - है
६ 65% ४३६.
९०- ऐप - - ३9
हा - २८
धर ५ २६
है३ ५. -त? - - 36
१४ ७9? 9५३ _
श्र २
९. र् डे
हु पु
९७ ४ .. ३४.
3५.
( २०३ )
ु पाक्यांश्-.. २
१. बहुच से न्ोग १८. सब साधारण
डर, पहुत अच्छा १६. सब प्रथम
है बहुत ज्यादा २०. जदाँ-तहाँ
४. सबसे, पहले २१. क्षब तक
५. सबसे वड़ा २२, तब तक
है, सबसे बुरा ९३. अब तक
७. सबसे अच्छा ९9. अच तक तो
5. एकाएक २४, इसके बग्ेर-
5. समय समय पर १९. जिसके बगैर
१०. बात बात मे २७, डउबके बगेर
११. भापशणा देते हुए रेट. अभी तक
१२, उत्तर देते हुए ९६. ज्यों का त्यों
१३. देते हुए कह १०. कम से कम
(४. भापण देते हुए हा ३३ >यादा से ज्यादा |
१४. उत्तर हेते हुए कहा ९२. रात्ो-रात
१६. पहले पहल ३३. दिनो-दिन
१७. पहले ही से २४. दिन व ढ्नि
३४६, केभी कभी
23 कथा ७०५
( २०४ )
अभ्यास--रै?
|
आशा-फी-जाती-दै क्कि लाडे-भौर-दोेडी को अधिकाधिक ्ाइनेषांके
साज्-प्रात/-फाल-अपने चाल-शच्चे, साई-बहिन और बाप-दादों
साथ-ही-साथ लिये बड़ी घुम-घाम-से चायलरा। अवन में आये होगे ।
पर एक-ले-अधिक पहरेदार एुक दूसरे को चबके देनेवाले क्वोगों। 'को
हे से तिनर-बितद करे देते थे । परन्तु जो डौल-डोल से साफ़-
साफ़ मले आदमी सालुम-देते दें उन्हें रोकने की आशा-नहीं-की-जा-
छकती ।
इस-समय बहुत से-लोगें ने बा और छोडी बिंलिथगो का फल फूल
तथा शन्य-प्रकार की चीजों से स्वागत किया । एूनका उच्तर देते हुए जाड
सहोदय ने कद कि आजकत पद झावश्यक है. कि प्रतः/काज्ष दोते-
एस देश-विदेश के द्वाल चावा पढ़े १ ऐप्ती घटनायें आये दिन होती- हैं
चा होवी-दी-र६ठी हैं और उनकी खबर भी हार्थों-दाथ आती ही-रदती
है विशेष जँच-पदताल करने पर पदा-बगता है कि संसार की सुख-
शान्ति उत्तरोत्तर नाग घी ओर बंढुती-जाती-दै । ऐेप्ली दशा में यद् तो-
सिश्वय-दी दे कि साषी चैदेशिक हलचल में सारतवर्ष बिलकुल खुप्वाप
नहीं बेढ सकता ।
३
( २०४ )
अभ्यास--४ १
(भर) वैसे तो बहुत-से-छोग राष्ट्रपति की दैपियत से भारत के बड़े-यढ़े
शहरों में समय-समय पर अ्रम्मण करते-रहे हैं परन्तु पणित ज्ञी
ने ही सव-प्रथम रातों-रात और दिनो-दिव याँव में घूमकर सब-से
बढ़ा ओर सब-से-अ्रच्छा तूफानी दौरा झ्िया-है। सर्वप्ताधारण
, शतता में पहले पद्दिल कांग्रेस का ब्िगुक्ष फंकने का श्रेय इन्हें
दिया जाय तो अचुवित न-होथा। गरीब किपानों से पहिले-से
घ्िफे जवादरलाल जी का वाम सुना-धा । परन्तु जब-तक वे उदके
बीच में नहीं-गये-थे तव तक वे वेघारे न उन्हें समझते थे शौर न
कांग्रेस को । पणिहत जी को यात-बात-में जादू का असर है।
अतः एनकी बातें सनकझ्वर पहिले तो वे लोग एक्राएक बहुत
ज्यादा अच॑मे में-पढ़ गये थे वाद उन्हें पह्चिले पद्दिल मालूम-
हुभा-कि अब तक एम अंधेरे में थे। सचपछ्ुच भारत इमारा
और दस भारत के-हैं। कम से-कम्र वे समस्नने तो लगे कि
स्वतंत्रता एसारा नत्म-श्षिद-धधिकार-है और इसके-चगेर हस
पशुष्रों से मी खराब-हैं। .. --० “5 .... मु
(व) रंडन जी ने सापण देते-हुए-कह्दा-कि जहाँ तद्दों_ से दिन-घ-दिलें
आनेषाली खबरों से मालूम होता-ऐ-क्ि आगासी युद्ध ध्यादान्से-
ब्यादा एक-दो चपे दूर है। इसल्षिए भारत को सब से पहले
दिन्दू-सुस्विस एकता की बड़ी ग्राधश्यक्षना-है। सब से छुत त्तो
यह है कि हिन्दू-सुपलमान यह जानते हुए भी चमी तक ज्यों का
सयों ६६ का नाता ययाये हैं। दूधी यात-हँ खादी आर देशी
माक्ष को व्यवद्ार में दाने की । जिप्तके बगैर हमारे देशों धंधे नहीं
प्नप पके, उसके बगैर हम आजादी भी वहीं द्ासिल कर सकते ।
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इस सम्बन्ध में
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३८६
मन-«»«म«-»नमममममनमन-मममनन- नान++-नननन-नन-नमननम-म
इस प्रकार
इसी प्रकार
उसी भ्रकार
उस प्रकार
किस प्रकार
किसी भ्रकार
इल सब के
इसी के यहाँ से
उसी के यहाँ से
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करने से
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( २०६ )
: वाक्यांश--४
चला करता है १६.
चला जाता है २०.
आम तौर पर २१.
एक बार २२.
कौन सा २३.
चिंता से रहित २४,
जाने पाता था २४.
क्या करता है २६.
इतना द्वी नहीं २७.
इतना ही नहीं बल्कि ओर श८.
हर तरह से २६.
सब वरह से ३०.
बहुत तरद्द से ३१.
जन समूह ३२.
जन साधारण ३३.
जन संख्या ३४,
जन समाज ३५,
जन्म-सूमि ३६,
ऐसा ही होता है
ऐसा ही होना चाहिए
इसी वरदद होना चाहिए
रद्दना चाहता है
जान लेना चाहिए कि
हम लोगों को चाहिए कि
बना देना चाहती है
छोठे-मोदे
भरण-पोषण
घात-चीत
एक से ही
घटा-बढ़ा
कद्दना-सुनना
जवाब तत्नव
हिन्दु-मुसलमान
हिन्दी-उद्
हिन्दी-उद् -हिन्दुस्तानी
हिन्दी-साहित्य-सम्मेज्लन
( ६११० )
अभ्यास--४२
कुछ माह पहिले जैधी रे की दुघंटना बिहृदा में हुईं माय: वैध्ा-
ही या उससे भो अधिक भोषण कायड झाज सुबद बमरौली में हुआ ।
कहा-जाता-है कि निस समय लगभग ५॥ बजे सुबह बमरौद्ली स्टेशन
पर- एक साद्वगाड़ी लूप लाइन पर क्ो-गई उस-समय' वृफ़ान-मेल् के
दिये पिग्नज्ञ न गिराया गया-था | हृध-समय धना कुदरा डोने के
कारण मेल के ड्राइवर को कुछ दिखाई न-पढ़ा । जैसे-दो माकगाड़ी
सुकनेवाली थी वैप्ते-दी तुफान-मेत्ष छा आमना-घामना द्वोने से दोनों
गाड़ियाँ बुरी-तरद-से बढ़ गई ) फल्नहः उस्ी-समय कहें भादमी सदा
के छिये सो गये भौर बहुतेरे हम प्रकार से घायत्न द्वो गये हि उनका
बिल्कुल अच्छा होना इमेशा-ई-जिये अ्रश्नम्तव सा दो-गया-है। इस-
समय बमरौबी से सर्वप्रथम डिविजनल-सुप रिन्टेन्डेन्द को सूचना कर
दीनाई है और वे सब से पहिले घव्वास्पन्-रर पहुँथे। हसके-बाद
जगमग ७ बजे एक रिव्यीफ ट्रेन वद्ों पहुँच-गई । तत्पश्चात् सोटरबाद्नों
से खबर-मिलने-पर शहर सें यद्द समाचार उस्तो प्रकार से फैज्ञा जिध-
झकार से जगन्ष में शाग फेल्ती-है। फिर क््या-था। इघर उधर से
श्वयसेषकों से दुत्त जिम किप्तोतप्रकार वन सका उस्री-प्रकार पीढ़ितों
को सद्दायठा के किए पहुँचे । इन सपने सबसे पहले मुर्दों भोर घायत्नों
को निकादाकर श्ावश्यक प्रबन्ध किया । जो सख्त घायल थे उनके
द्विए् द्यारियों बुलाकर रन्हें भ्रस्यवाज् भेजा | इश्ली-प्रछार जो बच-गये-
थे उनके लिये भी यथोचित प्रधन्ध कर-द्यानगया । इधी-सम्य हजारों
आदमी इस दुदंनाक हरय को देखने भौर यह-जानने-के लिये पहुँचे कि
दुर्घटना किस-प्रकार और किस कारण से हुईं। इृध-सम्बन्ध-में सरकारी"
ठोर-से मी जाँच शुरू हो-गई-है। जिनकी जान क्षिप्री-प्रकार से-भी
चच-सकी थी उनके चेहरों को भोर गौर-करके देखने से मालुम-दोता-
था कि वे धव अबन्य सक्ति से ईश्वर की घन्य-धन्य मनानरेन्ये ।
कै 34002 नि,
अमभ्यास--४ ३
काक्ष-चक्र सदा बेरोक-टाक अपनी गति से चल्मा-करता-है। संसार
कौ कोई भी शक्ति इसके सम्छुस्त जरा भो नहीं टिकू-खकती । कौन प्राता-
है ! कौन जाता है! कौन सा धादमी क्या काम करता है | दहन
सबसे मानों सतकब दोते-हुए सो कुछ मतलब नहीं है। सालूम-होता-
है कि इस चिंताकुच्न ससघार में चह बिलकुल चिन्ता-रहित-है |“ उसे
किलो की परवाह्ट नहीं परन्तु सबको उसको परवाह-दहै। इतना-हो/नैीएः
सारी सृष्टि, सम्पूण जब समाज जन संख्या का जरा भी ख्यात्ञ न रखकर
इर तरह-से श्रधवा सब-तरह-से मुझ बकरी की तरह उसके हशारे-पर _
' नाचता-है | क्या पत्ता कि वह किल्त-समय क्या करता-है ? कौन जावता-
था हि झाजत्र एमारे पूज्य राष्ट्र पति की मातेश्वरी काएक हससे खदा-के-
दिये बिल्लग-हो-जायेंपो ः श्ोमतो;ईवरेप-रानी जन्मभूमि की सच्ची
पुत्री, आदर्श भारतरमंणो, जन साधारण की मात्रा उन कतिपय
मद्दिल्लाशरों में से थीं जिनने देश के द्विए भ्रपना तन मन धन सब कुछ
हंपते-हँसते नयौ्धावर कर-दिया-है। इत्ना-हो-नहीं बढिछ उनमे अपने
इकलोते पुत्र को भी भारत माता को भेंट-छर-दिया है | केपा अबू
स्याग है १ हमारो साताश्रों-ओर बद्विनों को इनके जीवन से शिक्षा प्रहण -
फरना -चाहिपे। उन्हें अच्छो-तरह जान-लेना-चाद्दिये-कि छिफे अपने
कुटुरद का सरण-पोषण और देख-भाज ही उनके जीवन फा लचय बहीं-
है। वढिफ देश-तेवा उतपका द्वी सर्वोक्कृष् -कर्तव्य है। यह स्ेधा
उचित दी-था हि छुटे-मोटों को तो बात दही क्या-है बढ़े-बढ़े हिन्दू-
सुप्तल्माव लोपों ने अरने सेर-साद सुन्चाकर विलकुत्ष एक मन
से शोक और अद्व/प्रगः कौ:। सचमुच ऐवे सौके पर तो ऐप्रा-होता-
दी-है श्रयत्ा ऐवाहोना-ही-चाहिये। अब वह समय झआान्यया-है जब! »*
दम-लोगों को चाहिये कि आम-तोर-पर दिन्दू-मुस्लिस झापस्-में एक
ड्वो जावें। व्यर्थ में लडवे-फपडइने, कहने -घुतवे और घमम के मामलों पर
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गरमागरम बात-चीत करने तथा एक-दूसरे से जवाब-तल्ब करवाने में
शक्तिनाश करना स्वथा द्वानिकारक-है । हिन्दू महासभा, मुस्लिस-लौग,
हिन्दी साहित्य सम्मेलन ऐसी भारत-व्यापी संस्थाओं को चाहिये कि ये
हिन्दू-सुसक्षमान, हिन्दी-उर्दू और हिन्दी-उर्द-हिन्दुरतानी के सम्रेल्षों में
ज पढ़ स्वतंत्रता के मेदान में एक होकर उत्तर आदें।
वाक्याश-- १
. १. मामूली तौर पर १८. जो कुछ किया है
२, जितने खप्तय के लिए १६. कहा जा रहा था
३, किये जाने योग्य २०, जहाँ तक हो सके
७. होने या न होने से २१. मुमको यह कहना है
५. जब चाद्दो तब २२. पद्दले ही कद्दा जा चुका है
६. संदेद्द नहीं है २३. जैसा पहले कद्दा जा चुका है
७. हो गये होते २४. अब हमें मालूम हुआ दे
८. कह सकती है २४. तुमने समझ लिया है
६. ऊपर कही गई २६. तुमने देख लिए हैं
१०. सारांश यह है २७. च्या तुम बता सकते हो
११. रहने वाले हैं २८. क्या तुम्त कद्ट सकते हो
१२५, कहद्दा जाता है २६. कुछ नहीं हो सकता
१३. कहीं ऐसा न हो ३० हो दी कैसे सकता है
१७. थोड़े दिनों के बाद ३१. बतल्ा देना चाहता हूँ
१५. कोई नहीं दे ३२९. कह देना चाहता हूँ
१६. कोई आवश्यकता नहीं है ३३. दम नहीं कद सकते
१७, एक तो यह्द दे ही डे
सबसे बड़ी बात यह है कि
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१२.
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२१.
२२.
२३.
श्छः
२७.
२६.
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हि वार्कयांश--३
जैसा पहले कह गया था।
में तो पहले ही कद्दता था |
समर्थन करते हुए कहा ।
उपत्थित करते हुए कहा |
करते हुए कद्दा कि |
जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं।
आवश्यकता नहीं मालूम होती ।
ज़रूरत नहीं मालूम होती ।
यद्द हो द्वी कैसे सकता है ।
अब कुछ समय वक |
गौरव की बात है।
बम लिए बढ़े पर की बात है ।
हमारा यह प्रयोजन था ।
दमारा यद्द प्रयोजन है ।
हसारा यह प्रयोजन नहीं है ।
हमारा यह प्रयोजन नहीं था ।
जैसा पद्ले क॒द्दा जा चुका है ।
सब सम्मति से पाप्त हुआ |
सर्वे सम्मति से स्वीकृत हुआ |
मैं इस प्रस्ताव का अनुमोदन करता हूँ ।
मैं इस प्रस्ताव का समर्थन करता हूँ ।
में आपका हृदय से स्वागत करता हैँ |
मुझे यद्द निश्चय हो गया है ।
क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो ।
हमारी समर में नहीं आता ।
कुछ समय के ही लिए सद्दी ।
( २१६ ) ,
२७. इस बात का ध्यान रखना चाहिए ।
२८. यदि यह मान भी लिया जाय ।
२६, परंतु साथ ही यह भी कहा जा सकता है |
३०. मुझे यह सुनकर प्रसन्नता हुई ।
३१. मुझमें यह जानकर प्रसन्नता हुई ।
३२, पुमे यह जानकर दुख हुआ |
३३, मुझे यह सुनकर दुख हुआ |
३७- सभापति मद्दोदय तथा आहठगण ।
[ नोट--वाक्यांश के पूरे शब्दों के लिये देखिये 'हिन्दी-संकेत-ल्िपि
वाक्यांश कोष” |
अभ्यास---४ ४
शिक्षा की प्रगति और देश फी बेकारी को सासूली-ततोर-पर देखकर
कहा-जाता-दे कि पढ़े-लिखे युवकों की दशा अच्छी हो-ही-कैले-सकूतो-है।
एक तो शिक्षित थुवर्कों की भरमार ओर दूसरे व्यापार, उद्योग-घन्धों
भौर नौकरी की गिरी-हाल्नत वेढारी की भारी जठित्त समस्या बनाये
हैं। एक तो-यह है ही दूसरी खेती की वरबादी याने ६० अतिशतव
किसान--जो गाँवों में रहते-हैं उबकी दशा देखकर हम ढह-पघकते-हैं
कि यदि खेती तथा देशो व्यापार भ्रादि में किये जाने योग्य सुधार शीघ्र
न-किये गए तो प्ेप्ता-न-हो-कि कुछ-दिनों-के-बाद देश में आतंकवाद की
क्र उठ-पढ़े । इसमें-संदेह-नहीं-है-कि कॉाँग्रेप्ती म॑त्रि-मण्डलों ने
जो-कुछ-किया-है वह जधाँ-तक-दो-सका-है किसानों की भज्राईं के किए
किया है शोर इसमें संदेह करने की कोई-घआावश्यकता नहीं है-कि जितने-
ससय-के-लिए ये नियुक्त किये गये-हैं यदि उतने समय तक रद्द गये
तो देश के घढ़े-बडे सवाल दृत्न-करने-का भर-सक प्रयत्न होगा ।
आजकक्ष पिर्फ शिक्षा के ट्वोने-या-न इोने-ले खास मतत्व नहीं
४
हे
व््किजल
( २९७ )
डिनतु सब-से-धंढ़ी बात यह-है-कि प दे-लिखे ज्ञोग बेकार न बैठने पार्वे ।
क्या इस-नहीं कइ-सकते कि बेकारी का सम्बन्ध देशी ध्यापारादि
से है जिसकी ब्रिस्मेदारी सरकार पर बहुत-अधिक है ? क्या हम नहीं-
कह-घकते कि- विदेशी सरकार से इस विषय में कुछ नहीं-हो-सकता ।
यथार्थ में में कह-देना-चाहता-हुँ कि 8मारे औद्योधिक और व्यापारिक
पतन का कारण हमारी दासता है। अतः सब-से-बढ़ी-बात-यह-कि
देश स्वतंत्र हो । यदि तुमने जापान की उन्नति को देष़-लिया-है, जमनी
के उत्पान को समझ-लिया-है तो क्या त्तुम-कइट-सकते-हो कि दासता की ५
बेड़ियों से मुक्त भारत-भी-देश फी बेकारी, अशिक्षा आदि छोटडे-बोटे
सवालों को दत्त न-कर-लकेगा ।
अतः जैसा पहिले कद्दा-जा-चुका-है, हमारी सब-से-बड़ी ओर जटित
समस्या स्वतंत्रता है। सारांश-यह-है कि देश स्वतंत्र होने-पर इसारे सारे
शष्ट्र प्रश्न आप-से आप इल-द्वो-जायेंगे ।
३ अभ्यास---४ ४
प्रोफेषर मोइनल्लाज्न जी ने कालेज-यूनियन की सभा में ख्री स्वतंत्नताका
प्र स््ताव-उपस्थित-करते हुए-कह्ा --समापति-महोदय तथा- आरातृयण-और-
यहिनों--जैसा पदिले-कद्दा जा-सुका-है “स्री स्वतंत्रता” बढ़ा ही महत्वपूर्ण
विषय-है । खी झोर-पुरुष समाज की इकाई के दो आवश्यक अंग-हैं।
कोई भी घसाज या देश तभी सहृढ़ और स॒श्च गठित हो-सकता-है जब
ये दोनों अंग एक सम्तान उन्नत-हों। फिर हमारी समसमें-नहीं-आाता
कि हस अपने एक हिस्से को कमजोर रखकर अपनी सम्पूर्ण उन्नति कैसे
दर-सकते-हैं। इतने वर्ष के अनुभव बोर श्रध्ययन के याद तो सुमे-यह
निषचय-हो-चुका-है कि लघ-तक हमारी साताएँ-भोर-यदिने पुरुषों की तरद्द .,
सुशिक्षिता और स्वस्थ न ट्वोंगी ठब-तक ससाज तथा देश की यथार्थ-
न्न
( शेप *)
उन्नति न-हो-संकेगी । नंकर-दुक्ष:होता:ह पक छुछु पुरानयवचार
के लोगों को बेवल छड़कों की' शिक्षा की आशावरंयकर्ता
किन्तु लड़कियों की शिक्षों की कर्तई मरूरंत भहीं-मार्लृमःहोतोंः परन्तु
जैसा-कि-हम:ऊपरे- कह सुके-हैं. सत्री-परुप समाज के नो आवश्यक अंग
हैं, एक दी गाढ़ों में दा पद्िये हैं । श्रत: हमें डघं बाते का ध्यॉन रखना
चाहिये कि समाजरूपी गाड़ी को सुचारखूप से चैक्षांने 'केलियेःदोनों
पह्दियों का पक सा ठीक ' रखना परमावश्यकःहै। यह-हो-हीकैसे-सकता'
है-कि एक चाके टूटा हो फिर-भी गाड़ी ठोक चलें! यदि-पह सानम्मी
ल्िया-जाये कि स्त्रियाँ पुरुषों को भ्रपेक्षा कममर रहती ' हैं. परन्तु-साथ-:
दो-पाथ-यह-भो कट्दा-जा-सकवा-है कि यदि उन्हें यथोचित शिक्षाःमिंले,
तो थे पुरुषों की कठिनाइयों में सच्ची सद्दायिता कर-सहझती-हैं एवं बढ़ी
आर्पिक गुत्पियों इत्त-कर-सिकती-हैं। यद प्रृरुष का स्वार्थपरती-है कि
वह उन्हें उच्नत-नद्वीं-करने-देता क्योंकि ' भ्रगेर ऐसो' हुआ तो' 'चद उन्हें
झपनी कठपृतक्ञी बनाकर न-रख-सकेगा । झव सुझे यह जानकर-प्सन्ता-
हुई-है-कि शिक्षित चगे इध बात को समझ गया-दहै । इम्रारे-लियेन्यद
गौरव-की-दात-दहै कि इमारे शदर में ऐसो कई कन्या-पाठशाज्वाएँ खुछ-
रही-दै जो कुछ समंय-तक-दो'नहीं धरने बहुत समय के-लिये समाज की
सेवा-करेंगी । मैं-तो-पदले-दों कईता-थां कि स्त्रीरशक्षा देश' केलिये बढ़े
महतवेपूण और गौरचे-की बात हैं क्योंकि इससे ही ' शत्री-एव्ंत्रता के'
आनन्द क्षन को प्रगति मिलेगी
इसकेबांद ए+ ' मदाराय ने खड़े होकर ' कहीं कि में' भापके“विर्चारों
यानी आरपका-हर्देय-सेश्वागत-करंता-हुँ और साथ" ही' आपं॑डेःप्रश्वांचः
' क्रान्समंथनं-करंता:हूँ । दूसरे सज्जने ने कहा में आपके-प्रस्ताव-का
अनु दिन करता-हूँ। फिर वोटिक होने के बाद समोपति-महाशय'ने' कहें।'
हि यह प्ररता +-संव-सग्मंति' से स्वीकृत-हुआं-प्रयेवा सर्वेसम्तंविसे पास:
हुआ । +
साधारण-संचित्त-संकेत
( २२० )
ँ
डे
।
2 (हक
हा
रस 2!
१० अत्याचार
२, सम्भव
३. असवाब
७. उदयोग-घन्धा
भू, कयोंकर
काफी
गम्भीर
८. गिरफ्तार
६. तकलीफ
१०, प्रतिद्वदिता
११, पविन्नताई
१२५, भयानक
१४३. मधु-सक्खी
१४, रंग-विरंग
१४. लाभदायक
१६, वादविवाद
१७, शिष्टाचार
( शेर )
साधारण-संक्तिप-संकेत
( १)
अनुभव असभ्य असम्भव
असंख्य अध्याय अनुपरिधत
आरम्भ बत्तौर-नमूना उपस्थित
कपड़ा कदाचित . कदापवि:
कहावत क्रमशः कम्पत्ती
कामयाब खज्नानची खज्ञाना
ग्रन्थ ग्रन्थकार गायब
गिरफ्तारी चपटा चमच
चाल-चलन प्रतिशत प्रत्यक्ष
पवित्रात्मा प्रियवर पात्नहार
पतित्रतवा बेवकूफ. बैकुण्ठ
भयज्शर भलमनसी . भारतवर्ष
मनसाना संयोग मण्डप
रास रास राज-सिहासन लगभग
लिफ्राफा बंशावल्ी व्यायास
वादानुवाद विद्याभ्यास शायद्
सचमुच सनन््मुख समीप
(६, रेशरे )
२
<सिस्यास-२१३
रा जज 4७ [ #] ्ूाः
संसार की करीब-करीब सभी लाभदायक वस्तुएं अब
भारतवर्ष / में मिलती-हैं । उद्योग-घन्धे में भी अब यह आगे बढ़/
रहा है। यहाँ के कुशल म्ंथकार हर-एक विषय-पर / भ्रन्थों को
लिखकर प्रकाशित करा-रहे-हैं । ख्रियों का आदशे/भी बहुत ऊँचा
है। वे बड़ी मल्ीमानख और पतित्रता-/ होती हैं ।
कुछ ऐसे बेबकूफ भी-हैं जो भयानक-से / भयानक कास-
करने-में भो शायद् न दिचके । वे किसी / के खजाना की गायब
कर देना, खज्ानची को तकलीफ देना, / किश्ली पविन्नात्मा की
अनुपस्थिति या उपस्थिति ही में उसका सारा / साल असबाब,
कपड़ा-लद्ा आदि को छड़ा देना, सनमाना काम-/ करना,
मधु-मक्खियों के पीछे पड़ना, अत्याचार करना ही अपना/
धर्म सममते हैं |
ऐसे आदमी आरम्भ में चाहे सम्भव असम्भव / कार्ये करके
काप्तयाव दो लें पर अन्त में गिरफ्तारी से /कदापि नहीं
बच-सकते गिरफ्तार दोते-द्ी-हैं । सुख-दुख / का तो यद्द अनुभव
करते-दी-हैं पर ऐसे ऋअसभ्य / दोते हैं. कि किसी भी समाज में
इनका-रखना ठीक-/ नहीं |
यहाँ विद्याभ्यास के लिए विद्यालय हैं तथा व्यायाम के-/
लिए व्यायाम-शा्षाएँ हैं. जिसमें शिष्टाचार तथा सदाचार
की शिक्षा / दी जाती है।
पालनद्वार ने हमारे देश को सचमुच किसी / वैकुण्ठ छे
कम नहीं वनाया । इसके संधुख बड़े २ रानसिंहासन / भी
कदाचित दी ठहर सके ।
ु (- ३२३ )
अरत्तिदन्दिता के समीप कभी-न-/ जाना-चाहिए ।
. परोक्ष-रूप से पाहे- जो फन् हो / पर >प्यक्ष रूप से तो मझे
“5 अतिशव लोगों से / भी मिलने का संयोग नहीं-इुआ जिम्होंते
रसेकी तारीफ की /द्दो।
प्रियवर एक: रग-बिरग
एप बनाओ जिसमें
में काफी मोटे अक्षरों | ता /राम
० पवेर एक-एक
' पगषय / कर दैर-एक कोते
लिखदा दे ।
लिखो-..चपटा, परभक, चाल्न- ४ अध्याय, असर्य,
कफेहावत, / केमश:, 7म्भीर, फाफा, वशावल्नी |
९२३७
( ०२४ )
गरम 5
|
८८५5
(०2 / ००0९ कम
खो 5 जी )१ ९ ४ जल हा
जे 4 हा ९ । ० पे 5, है प्3 है हे 8
के. कक उठे पक ७:73: 33 ०. ब्ट ४ न 52 दा ५८ हट ३
१९,
न्न्वक
“हु
( रे२५ )
चुपचाप ' चुपके पर हज अनथे
जीव-जन्तु जन्म-सथाव जायदाद जीवका
झंडा फुंड डगसगादा तबियत
तत्पर इ ततवकाल तद्ननन््तर तहकोकात
तिरक्कार थरथर दंडवत दफ्तर
दुदेंशा. दुष्टवा दुष्टात्मा नमस्कार
समूना. नाचरंग
निरसंदेह नोन॒वान
प्रणाम सहज
ससाचारपत्र सम्मिलित
संक्तेप.. सायंकाल
होनहार शक्तिशाली
छापाखाना बंदरगाह
वास्तविक स्वाभाविक
हृष्टान्त स्वभावत:
प्रचलित निरवाचक
मनोरंजऊ नेस्वनाबृद
सवरचित आमंत्रण
१५
नियमावली. निमंत्रण
पँचायत प्रथम
स्वयंसेवक. सर्वेब्यापी
स्वयंचर संस्कार
हरगिज हिम्मतवर
पूर्वेबत ट्रॉसफर
इृष्टिकोश. पत्रव्योहार
अस्वाभाविक चंदेमातरम्
आश्चयजनक इसामसीद
निरवाचन संवाददाता
विचाराधीन इश्विदार
वायुमंडल जन्म सृत्यु
( शर६ )
अभ्यास-- ५७
एक होनद्वार नवजवान के लिये अपने देश की सेवा करना /
प्रथम कत्तेठय है । सच-तो यह-है कि यदि उसने अपने / जन्म-
स्थान का मंडा ऊँचा-न“किया तो उसका /जन्म ही व्यथ है।
ऐसा कार्य-करने-में चाहे सारी / जायदाद या जीविका जाती-रहे,
पर दृढ़ता को न छोड़ना / चाहिये 4 ऐसा काय्य वे-हवी कर सकते
हैं जो कि / शक्तिशाली और दिस्मतवर हैं ।
किसी दुष्टात्मा को केवल प्रणास या / दःडवत करने था
उसके सामने थर-थर कॉपने से काम / नहीं चलता । ऐसा करने
से तो अपनी दुदेशा होगो, वढ / तो अपनी दुष्टता से हरगिज्ञ
न बाज आयेगा । उनके साथ / दृढ़वा और कठोरता का व्यवद्दार
होना चाहिये।
छापेखाने में समाचार- / पत्र तथा इश्तिहार आदि सभी
चीज़ें छपतो हैं | सपाचार-पत्रों / में खबर भे जनेवाले को सम्बाद्-
दाता कहते-हैं। ये अपने / दफ्तर को देश का सारा हाल संक्षेप
में भेजते हैं ॥/
किसी भी दृष्टिकोण से देखिये भारत के-लिए एक / ऐसे
स्वयंसेचऋ-दल की बड़ी आवश्यक्षता-दे जो कि चुपचाप / परन्तु
हृढ़वा के साथ प्रातःकाल से लेकर सायंकाल तक उसकी / सेवा
में तत्पर रहे, चुपडे न बैठे । यद् याँत्रों में / पद्चायत कायम-करा
सकते हैं; उनके फपज्ञों को क्ुन्ड-के/ ऊुन्ड घूम ते हुए जीव-भन्तु
से रक्षा कर्सकते-हैं / तथा इनछो नाच-रंग बुरी आदतों से
बचा सकते हैं। / ये लोग बड़ो-कड़ी तबियत के होते हैं; आफत
( २२७ )
ऋा / सासना करने में जरा भी नहीं डगमगाते, बड़ी तत्परता से/
तत्काल द्वी उसका सामना करते-हैं। ये किसी का तिरस्कार/ नहीं-
करते, बल्कि नम्रता-पूवेंक नसस्कार-करके-दी बातें करते-/दें ।
यही-नदीं यद्द किसी समा-सोसाइटी आदि की नियमावली /
बनाने, किसी बात की तदक्क़ीकात करने, निवाचन के लिए निवा-
चकों / को सूची तैयार करते में भी सहायता-देते
बम्दे-स|तरम् / यान हमारा जातीय गान है। इसे सबब्यापी
चनाना दसारा कत्तेठ्य है। इसको प्रचलित करने सें चाहे जो
कठिनाइयाँ उठानी पड़े / सबको खुशी खुशी मेन्ननान्वाहिये |
थे-किसी-के लिये भी / बिल्कुल ही अस्वाभाविक दोगा कि वह
इसके गाने में सम्मिलित / न हो । इसको स्वरक्षित रखने में दी
हमारी भक्षाई-दै। / ३३०
( शर८ )2
दि प्र हुन व ऊ (वि ७४
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( र२२६ )
. संच्षिस-संकेत
( के)
संगठन: काय्येंचाही महापुरुष दिलचस्पी
तजवीजञ' मात्भाषा लेखक जयजयकार
स्त्री ह्ढू टढ़-विश्वास प्रतिष्ठित
बवैमनस्थ वर्तमान शुभागमन परिच्छेद
पारसपरिक दिरिदशन अत्येष्टिक्रिया निष्पक्ष
साहिट्य. भोजनालय . द्रिद्र समथक
समरथन एस, एल, ए.. स्तम्भ त्याग
सर्वताश प्रगतिशील गौरवसय सावेजनिक
सर्वोत्तम व्यवहार अवकाश. उत्खाह-पूर्वक
राजनीतिपदुता सहयोग असहयोग. आउडम्बर
खुशामद संम्मानाथे मद्मामशेपाध्याय स्वदंत्रताएवक
सेक्रेरी. नियमानुसार विचाराथे त्यागपत्र
फाइनेनशल विज्ञप्ति भूसध्यसागर कम्यूनिस्स
समाजवादी साम्राज्यवाद लोकतन्त्रवाद पश्चाताप
नामंजूर. मंजूर मुखतलिफ . कोपाध्यक्ष
ज्ञान-पहिचान सद्दातुभूति सदृकमा सिलसिलेवार
सतसंग्रह. नियमालुकूल सात्ुभूमि पत्रसंपादक
उतजीमेकारा+ सा ;मएफे+ सफर.
( रईे० )
अभ्यांस--४८ .,
आजकल प्रगतिशोल राष्ट्रीयतावादो सारे राष्ट्र का एकीकरण
और दृद्संगठन/के विचाराशर्थ हिन्दी-उदू' के वर्तेमान पारस्परिक
बैमनस्य की अन्त्येष्टिक्रिया/क रने में बड़ो दिलचरपों से उत्साद-
पूर्वक बिना अवकाश के/ लिये लगातार काम-कर-रहे-हैं | दृषे-को-
बात-यह/-दै कि बड़े-बड़े महा।महोपाष्याय, मात्भाषा ओर मातृ-
भूमि/$ सेवक, प्रतिष्ठित लेख क, पत्र-सम्पादु, बहुतेरे-राज-तीति-
पटु-एस-एल.-ए. / और महूत्मा-गान्धी भो इनकी नीति का
हृदय-से-समथेन/-करते- हैं । हमारे मुप्ततमान नेत|-गण तो इसके
पक्के समथक/ हैं तथा अन्य प्रगतिशोत्र मुतलमान भो इस स्कोम
से पूर्ण / सद्दालुभूतिरखते-हैं.। इतना-हो-नदीं, मिन्त सिल््न
राजनेतिक विचार-शोज्न / लोग-भी राष्ट्रभापा की आवश्यकता
महसूस करते-हैं। आज देश / में कम्यूनिस्प, फैसिसिज्म,
समाज वाद, लोकतंत्रवाद, ओर साम्राज्यवाद आदि भिन्न-भिन्न
दृष्टिकोण-/ रखने-वाले-भी इस बात को नामंजूर नहीं-कर-सकते// कि
हिन्दुस्तानी की तजवीज्ञ का'विरोध करने से भविष्य में/ देश को
पश्चाताप के कड॒वे फल्न अवश्य ही चखने-पड़ेंगे/। देश को
एकता के सूत्र में बॉधने का यह भो सर्वोत्तम / उपाय है कि हस
हिन्दी-उद् के झगड़े को समूज्न / नष्ट ऋर साध।रण दिष्दुस्तानी को
सार्वजनिक भाषा बनावें ओर व्यवह।र में / लावें। कुशल
राजनीतिज्न तो असहयोग के ज़माने के पूर्च ही/ से राष्ट्र भाषा की
आवश्यकता सममते-थे । वे जानते-थे कि /राष्ट्रोयकरण करने-के-
€( २३१ )
लिये भारत ऐसे बहुभाषी देश में/ राष्ट्रभाषा के निमोण का प्रश्न
- - छठेगा | वे लोग ठीक-दी-/ कद्दते-थे-क्ति यदि ऐसा-न-हुआ तो देश
का / सर्वेनाश हुए-बिचा न रहेगा। यदि निष्पक्ष साव से दस /
हिन्दुस्तानी की तजबीज तथा कार्येवादी का दिग्दर्शन कर
स्व॒तंत्रता-पूवक विचार /करें तो निश्चय हो हम अपने तथा राष्ट्र
के सम्मानार्थ / न घस्रिफे उसे मंजूर करेंगे वरन् उप्तक्के साथ पूर्ण
सहयोग/भी करले-लगेंगे |
हमें हृढ़-विश्वास है कि यदि इस /महत्वशाल्री एवं गोरबभय
प्रश्न को नियसानुकूल दतनन््करने-का प्रयत्त / किया जाय तो
सफलता असम्भव न-होगी। अपनी राष्ट्रभाषा के / शुभागमन
पर हसें उसको जयज्ञयकार सनाना-चादिये, उसकी-खुशासद
करना-चादहिये, / उसके लिए अपनी जान भी लड़ा देना चाहिये ।
क्योंकि / राष्ट्रभाषा दी राष्ट्र और देश की प्राण है । अब समय/
आ गया है जब देश के बच्चे-बच्चे को राष्ट्रभाषा /से पक्की जान-
पद्टिचान कर-लेना-चाहिये । देश के सामने / यह समस्या छोटी-
मोटी नहीं है । इस विषय पर केचल / मतसंग्रह करने का समय
चला गया | अब हमें शीघ्रात्तिशोत्र इस/ थोर सिल्लसिलेवार काम-
करने-के-लिये एक कमेटी तथा सेक्रेटरी /यात्री संत्री आदि नियुक्त
कर नियमसाठुसार काम्न आरम्भ कर-देवा-/चाहिये। इसके
अतिरिक्त एक फाइनेनशल-कसेटी तथा कोपाध्यक्ष का निवोाचन/
भी आवश्यक द्वोगा | दूसरा काम्त इस काये विशेष-क्रे-लिए/चन्दा
इकट्ठा करना तथा आयन्व्यय का द्विखाव आदि रखना / होगा ।
२१
( शइ३ )
उ्दू' के कुछ प्रचलित शब्द
शुब्द-चिन्ह
१. अलाहिदा-अल्ाव! अलबता.. अंव्वल-अल्ग
२. जरा-जारी ज़ोर ज़रिये
2. मरतवा-मिस्ठर ' मिनिस्टर सिसेस
छ, मामला मामूली बशंतें
४. चूँ कि फिर अकसर फर्क
६, ऐ खिलाफ... ताकि न-तो
७, महज लायक दंरमियान बाज
८. लिहाज बाजी द्फां बाकी
९, तेज़ तेजी आदहिस्ता ९ चुनानचे
१०. फौरन द्वालाँकि बज़रिये रफ़्तार वाकई बखूबी
संक्तिप्न-संकेत
१. मजबूत मौजूद मोजूदा मातहत
२, दर्तखत चहावत नतीजा तज्वी
3. इतफाक रोज्ञनासचे.. बिरादरी तादाद
४ बाकायदा.. वेकायदा बदस्तृर मुलाकात
५, मुल्क फरमाबरदारी वेंवजद अंदीमुलफुरसत
&. घदुएद्रतियादी कामपाव दरियाफ्त कवायद
( २१४ )
। 3००५ । »0
की
(३ ३५/ मम /
2 है /
(/ ८३६ «४ हक ड 0०८ | हज
(. श३इ५ )
७, मुमकिन सशक्त इम्तहान मुताबिक
८. कम-अछल्तो लापरबादी . इईसकत ढको सलेबाजी
४,काफी. दाखिल मुकरर तवउन्नद्द
१०. मंझिलेमकसूद तकल्लीफ.. तत्काल बेपरवादी
११. हरदम तकलीफजञदा लियाकत. बदेंए
१२. गुजारा गुजर सोहरंसम दाकिस
१३, हुक्म उस्ताद अहस-मखसला खुदगजे
१७. होशियार अप्म छए बाजदुफा हाजिर
4
१४. गैरदाजिर ऐतदोआराम आदाब-अज सद॒दगार
१६, तारीफ इनाम-इकराम मंजलस नजदीक
१७, रोजमरों बाआलानी. एद्रतियात शुक्त:,
१८, बहादुर मुस्तकिल ईरदगिरद बुजुगें
१६, तद॒वीर सिपहसालार मोकाबिला ताकतवर
२०, अच्छी-वरह कृदस-कद्म-पर पुराने-जमाने-में
ख़ुशबुदार
२१, इनकिलाब-जिन्दाबाद अमल-दरामद मिखाल-के तौर-पर
हमेशा की तरह
२२. मुस्तकिल-तौर-पर ड्यादातर पबलिक हरगिज
२३, कुरबानो मिलनधार ज्ञिसनकदर इसी -कद॒र-
किमी.
९, स्पीकर... भेसीडेन्ट प्रधान-मंत्री.. न््याय-संत्री
२, अर्थ-मंत्री शिक्षा-मंत्री रेविन्यू:मंत्री रेविन्यू-मिनिस्टर
३, मंत्रिमंडल न्याय-सद्स्य अर्थ-सदस्य. शिक्षा-सदस्य
४. पार्लियामेंद्री-सेक्रेटरी सम्मानित-सद्स्य सेल्ेक्ट-कमेटी
रवायत्त-शासन-की-मंन्नाणी *
५. विरोधी-दल. अपरः-ह्याउस संयुक्त-प्रांतीय-लेज़िस्लेटिव-
-. कौंसिल, गव्नेमेंट-आफ-इस्टडिया-ऐक्ट
अन्तर-राष्ट्रीय ( २ )
१, अंतरोष्ट्रीय.. इग्लिस्तान इंगलेड
' ह यूनाइटेड-स्टेद्स-आफ-अमेरिका
२. संयुक्त-राज्यन्यमेरिका प्रराष्ट्रसचिव॒ उदार-दूल,
ह अनुदार-दल की
३, सजदूर-दत्त लिबरल-पार्टी कनसरवेटिव-पार्टी
लेबर-पार्टी
४. उपनिवेश ओपनिवेशिक-स्वराज्य बृटिश-सरकार
| राष्ट्र-संघ
७५, लीग-आफ-नेशन्छ फैसीसिज्म बोलशिविज्य द्विठलरिज्स ह
६. नाजीरीम मुसोलनी द्विटलर
( २३४७ )
साधारणं-व्यावह्ारिक-शुब्द
व्यवस्थापिका सभा ( १)
मिनिस्टर फ-फारेन-एफेयसे |
कांग्रेस: ( .३:) 27244 80 कक पा
९, राष्ट्रपति स्वागताध्यक्ष/ ५2 25. र
आल्-इंडिया-कांग्रेंस-वर्कि गें:कसेटी.
२. पूर्शो-स्वराज्य सास्यवाद समाजवाद-“, साम्राब्यवाद:
र्णिं रा लीक
३. नेतृत्व जन्म-सिद्ध-अधिकार' ' स्वाग्रतःकार्रिणी सभा:
"काय्य-कारिणी-कंमेंटी
४. पदाधिकारी बृटिश-मत-दाता . भारेव-मतत्दाता,
देशी-रियासंत:
४. आस्यन-क्षेत्र भारत-सरकार नौकरशाही
सिविल-डिसोबिडियन्स-मूवमेंद
अभ्यास---४६
[ उदू के संक्षिप्त संकेतों पर अभ्यास ]
१, ए% बहादुर सिपहसाल्ार किसी ताकतवर के मुकाबले
में भी कामयाबी / को हासित्-दी-करता-है। वह अपने म॑जिले
मकक््सूद पर / पहुँचने के-लिए बड़ी एदवियाती के साथ मुस्तकिल्ल
कदमों को / उठाता हुआ बढ़ता है। यह बढ़े मशक्कत का काम
है।/ इसमें अगर उसने जरा सी भी लापरवाही, कम्रअ्क्को,
खुदगर्जी दिखलाई / या ढकोसले-बाज़ी को पास आने दिया कि
बस फिर / वह इम्तिद्दान में नाशहामयाब-हुआ |
हर-एक पुर असर / द्वाकिम का यंह फ़ंग है कि वह
तकलीकज़दों की तकलीफ़ों को/दूर करने-की तरफ काफी तवब्ज्द्द
दे। बाझायदे फस्मांवरदारी / केलिए अपने मद्देगारों को इसामः
#कराम बाँटे, ओर वेबन६;/ होशियार मातद्दतों को-तक्क नःकरेज़
शेप्ने करंने/से।उनके / मातहत भी रोजमरों के कामों को हरदम
( शरई६ )
चाओआंसानी लियाकत के / साथ पूरा-करेंगे ओर अपने अफ़घर
, के हुक्म के मुताबिक / ही रोजनामचे को भर कर दृर्तखत
करेंगे |, तजरबा यद्द बतलाता-/ है कि सादद्वतों के काम के-लिए
जहाँ-तक-हो- / सके बिरादरी के लोगों को इत्तफाक से भी
मुकरर न- करे, न उन्हें नज़दीक द्वी आने दें, क्योंकि ये अपनी |
बेकायदा दरकतों से मुल्क के इन्वज़ाम में रोड़े ही अठटकावेंगे, /
जिसका नतीजा ये होता है कि मुल्क में बद्इंतज़ामी फेल्ती-/ है
शोर कोई काम ठीक तरद्द से नहीं होने पाता / ।
३. मोहरेंम के मौके पर बाज्-दफा तो इस-कद्र भीड़ /
होती-है कि पब्लिक का इरद-गिरद आज़ादी के साथ / हरकत
करना भी नामुसकिन सा हो-जाता-है और हुक्कामों / के-लिए
इसका अच्छी-तरह इन्तज़ास करना एक अलग ससला / हो
जाता है । नाज 5 २७४३
अभ्यास---६ ०
व्यवस्थापिका--सभा |
इस समय हमारे पश्रांतीय-असेम्बली के स्पीकर माननीय
श्रीयुत् पुरुषोत्तमदास / जी टण्डन हैं और प्रधान-मन्त्री-हैं शओमान
गोविन्द बललभ जी / पन्त | इसी-तरह अल्लग-अलग-विभाग के
अलग-अलग मन््सत्री / हैं जैसे न््यायसन्त्री, अर्थेसन्त्री, शिक्षासन्त्री
ओर रेविन्यूमन्त्री । परन्तु सब-/ से-बढ़ी विशेष बात यह है कि
लोकल्-सेल्फ-गवनमेन्ट-/ डिपाट्टमेन्ट किसी सनन््त्री के आधन न
होकर एक मन्त्राणी के / आधीन है। वह स्वायत्त-शाशन-की-
न्चाणी हैं हमारी / पूर्व परिचिता श्रीमती विजय लझ्षमी पंडित ।
इन सन्त्रियों के आधीन आवश्यकतानुसार / एक-एक पार्लिया-
मेंटरी- सेक्रेटरी हैं । ५
( २४० ),
इन असेम्बलियों सें सम्मानित-सद्स्य-/ गण भ्रस्तावॉ-को-
उपस्थित-करते-हैं । गवनमेन्ट को. तरफ़ से :/मन्त्रिमण्डल के
सदस्य जैसे न््याय-सदस्य, अर्थ-सदस्य, शिक्षा-/ सदस्य आदि या
तो उन प्रस्तावो-को-स्वीकार-कर-लेते- / हैं या विरोध-करते-हैं |
अकसर यह प्रस्ताव संशोधन के / लिए सेल्लेक््ठ कप्रेटो के सुपुद
किया-जावा-है ओर उनकी / सिफारिश के खाथ असेम्बली, के
सासने मजूरी के जिए फिर / आता है ।
हर एक कोंसिल या असेम्ब ज्ञो में एक गवर्नमेंट- / दल ओर
दूसरा विरोधी-दल द्वोता है। यद्द विरोधी-दल के / नेता गवनेमेंट
के इस्तीफा देने पर मंत्रि-मडल बनाते ओ राज्य-शासन का
काम-करते-हैं ।
हु बाज सता १८७
अ+यास--६ १
अंतरराष्ट्रीय
इस समय योरप में शस्लीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय
परिस्थिति बड़ी / भयंकर हो-रदी-है । फेसिसिज्स और द्विटलरिज्म
के सामने ब्ृटिश-सिंह / की गरज मंद-पड़-गई-है | इक्नलैण्ड इस-
समय / अपनी कमज़ोर राजन्नीति के कारण अकेला सा-पड़-
गया-है /। युनाइटेड-स्टेट्स-आफ-अमेरिका, फ्रांस तथा अन्य
राज्य दिल खोल / कर उसका साथ नहीं-दे-रहे-हैं | ल्ीग-आफ- .
नेशन/ अथोत् राष्ट्र-संघ का अंत सा द्ो-चुका-दै । ऐसी-हालत-में
मसोलिनी या दिटलर ऐसे मद्दावल्ञशात्री डिक्टेटरों को महतोड़ /
जवाब कौन दे-सकता-है। इन-लोगों ने इस / समय बोलशेविज्ञम
की भी दाब-दिया-है । इंग्लिस्तान की इस / नीति से न दो उदार- .
दल वाले खुश हैं. न मज़दूर-दुल वाले ।
उपनिवेशों का तो कहना द्वी क्या दे / वे तो पहले दी से
अग्रसन्न हैं।
( २४१ )
अब केवल संयुक्त-राज्य-/अमेरिका के साथ देने से-ही इनका
भत्ना-हो-सकता-/हे । १७१
अभ्यास--६ २ +
कांग्रेस
हमारे देश की सबसे-घबड़ी जीती-ज्ञागती राजनैतिक-संस्था
कांग्रेस / की-है। इस-समय इसके राष्ट्रपति हैं हमारे जगत-प्र सिद्ध/
नायक श्रीसान् पं० जवाहरलाल लेहरू । इनके नेतृत्व में एक
अच्छे / राष्ट्रीय-दल का सद्भठन हुआ-है जो कि पूर्ण स्वराज्य /
को प्राप्त करना अपना जन्म-सिद्ध-अधिकार सममता-है और /
इसके-तलिए उसका इग्लेंड तथा सारत-सरकार से और कभी / २
देशी रियासतों से बराबर संघ दोता-रहता-है |
इसने / अपने कास को सुचारु-रूप से चल्नाने के लिए एक/
कार्यकारिणी-कमेटी बना-रक्खी-हे जिसे आल-इन्डिया कांगरेस-
बर्तिज्ञ-/कर्सेटी कहते-हैं । इसी के द्वारा समय-समय पर यह/
अपनी नीति को भिरधारित-करती-है और फिर उसी नीति / के
अनुसार काम द्वोता है | इस संस्था के अन्तरगत / समाजवा दी,
साम्यवादी तथा साम्राब्यवादी अनेक-दत्न हैं जो अपनी नीति/
के अलग २ होते-हुए-मी वर्किक्कमेटो के निेय / को मांनते
ओर उस पर काम-करते-हैं । काम के / विचार से इसके अनेक
पदाधिकारी-हैं. जो देश के कोने / २, मे फैल्े-हुए-हैं और इसको,
निधौरित नीति से /काय्य-कर-रहे है ।
भाम्यज्षेत्र में कास-करना इस-समय / इसका मुख्य उद्देश्य
हो-रहा-है। नौकरशाददी ने भी इसके / लोहे को मान लिया-है
अपर इस संस्था के सुख्य/ २ सब्भ्वालक गण जो कत्त बागी तथा
देशद्रोही ठहराये गये / थे वद्दी आज इस गवर्नमेंट-के-सन्त्री-पद्
पर सुशोभित / हैं। इस साल इसके राष्ट्रपति माननीय श्रीसुबास-
चन्द्र बोस /चने गये हैं । यह भारत-सत-दाता की विजय है [२४०
१६
(६ २१४२ )
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अ्रगसी - भारतवासी
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'खांहित्य-सम्मेलन
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( २४३ )
स्वायत्त-शासन-- ४
१ लोकल्-सेंल्फ-गवर्नमेंट. स्वायत्त-शासन चेयरमैन
। वाइस-चेयरमैन
४ सभापति उपसभापति अध्यक्ष अध्यचता
३, ससर्थेन अनुमोदन संशोधन एक्जिक्र्यूटिव
आफिसर
४9 सेनेट्री-इडिनियर वाटवक््स इश्चिनियर मेयर सेक्रेटरी
४ हाउस-टेक्स वाटर-टेक्स द्वाउस-एड-वाटर-टैक्स चंगी
६, उस्मेशधयार नागरिक चुनाव. संयुक्त-निबोचन
प्रवासी-भारत-वासी--५
१ प्रवासी-सारतन्वासी स्टेठ्सेटिलमेंट
फेडीरेटेड-मालयास्ठेट्थ. भारतीय सज्नदूरः
२ साक्षया-रिजवेशन-एक्ट मालयावबासी
ओपनिवेशिक सचिव कल्नोनियल-सेक्रेटरी
३ एजेन्ट-जेनरत यूनाइटेड-प्ल्लान्टस-एसोसियेशन
सेंट्रल-इन्डियन-असेम्बली
हिन्दो-साहित्य-सम्धेलन---६
१, हिन्दो-साहित्य-छम्मेज्ञन स्थायी-पमिति परीक्षा-समिति
- साहित्य-ससित्ति
२, प्रचार-समिति संग्न हालयनसमिति उपसमिति
हिन्दी-प्रचार-समिति
३, दिन्दी-साहित्यकार' हिन्दी-पत्र-सम्पादक
हिन्दी-साहित्य-लेवी.. हिन्दी-विद्यापीठ
( शक )
. प्रथमा-परीक्षा - वैद्यविशारद-परीक्षा
शीघ्रत्िपि-विशारद्-परी ज्ञा सम्पादन-कला-परीक्षा
७५ आरायज नवीसी-परीक्षा आुनीमी-परीक्षा
राष्ट्रभाषा-हिन्दी हिन्दी-संकेत-लिपि ह
अभ्यास-- ६ हे
स्वायतत-शासन
हमारे प्रान्त की म्युनिसिपैलिटियों में इलाहाबाद स्थुनि-
सिपल-बोडे का / भी एक अच्छा स्थान-है। इसके सभापति को
चेयरमेन भी / कहते-हैं. । चेयरमैन की सहद्दायता के-लिए एक
वाइस-चेयरमेन / या उप-ससापति और एक जूनियर-वाइस-
चेयरमेन रहता-है /। इनके अलावा एक्जीक्यूटिव-आफिसर,
सेनेटरी-इल्औजीनियर, सेनेटरी-इन्सपेक्टर, चाट र-वक््स-/इन्जीनियर
आदि अफपर द्ोते-हैं जो अपने डिपार्टमेंट का काम / छुचारु-
-से-करते-है
इसके सदस्यों का चनाव नगर के / जनता द्वारा होता-है
पर चनाव विशेषाधिकार और सांप्रदायिक प्रणाली / से द्ोता-
है। संयुक्त-निवोचन-प्रणाली से नहीं । इन सदस्यों /की एक
सभा द्वोती है जो इसके काय का देख-/भाल-रखती-है। इस सभा
में हर एक तरफ के / प्र्ताव-पेश-किये-जाते-हैँ जो समथन,
अनुमोदन या संशोधन / के बाद पास-किये-जाते-हैं ।
सके आमदनी का मुख्य / जरिया है च॒ह्छी, दाउस-टेक्स
या वाटर-टेक्स |
यह म्युनिसिपैलिटियाँ / गवनमेंट के लोकल-सेल्फ-गवन मेंट-
डिपाटमेंट के आधीन हैं | १४६
५ २४५ )
अभ्यास---६ ४
प्रवातती-भारतवासी
ट्विनिदाद, फीजी, जंजीवार, बृटिश-गायना, फेडोरेटेड-
मालया-स्टेदस जिस-किसी-/भी उपनिवेश में जाओ, हारे
अचासी-भारतवासियों की दशा को / बहुत-ही करुणाजनक ओर
दयनीय पाओगे । इन भारतीय-मजदूरों ने | उन देशों को
अपने गाढ़े पसीने से दिन-रात मेहनत | कर बड़ा ही समृद्धि-
शाल्ली बना-दिया-है पर अब / वहाँ के गोरे निवासी इनको
इनके अधिकारों से बंचित करने -/+े-लिए-एड़ी चोटी का पसीना
एक-ऋर-रहे-हैं । / इनके खिलाफ रोज ही नये-नये कानून जैसे
रिजवेशन-एक्ट,/ जंजीवार-क्लोब एक्ट, हाई-प्राउन्ड-रिजवेंशन-
एक्ट आदि पास-किये- जाते-हैं और जगह ब जगह से इनके
नागरिक रव॒तों / वथा मताधिकारों को भी छीनने का प्रयत्न
किया-जा-रहा-/ है। इनके खिलाफ उन स्टेट्स-सेटिलमेंट आदि
आदि में प्लेंटरों / ने एक पसोसियेशन यूनाइटेड-प्लैंटसे-
एसोघियेशन के नास से कायम-/ किया-है और इनके विरोध'
से रक्षा करने-के-लिए / हमारे प्रवासी-भारतवासियों ने अपनी
एक संस्था सेंट्रल-इन्डियन-एसेम्बल्ली / के नाम से कायम-की-है ।
इन विदेशों के स्थानिक / राजनैतिक प्रधान को एजेग्ट-जेनरल
तथा वृदेन के मंत्री फो / जो इनके ऊपर-हैं औपनिवेशिक-सचित्र
था कलोनियल-सेक्रेटरी कद्दते-/ हैं । श्पर
५( रेछ३ )
अभ्यास--६ ४
हमारे देश में हिन्दी-सादित्य-सस्मेलन ने हिन्दी-प्रचार
के / लिए जो अविरल्न प्रयत्त- किया-है उसी के फल-स्वरूप / अब _
इम बहुत द्वी जल्द इसको राष्ट्र-भाषा के रूप / में देखने की
आशा-कर-रहे-हैं ॥/ -
इसके लिए हम / उन इिन्दी-छाहित्य-सेवियों को धन्यवाद ,
दिये बगेर नही-रह-/ सकते जिन्होंने। इस ध्येय के पूरा-करने-मे
अपना तम /मन-घत सर-कुछ इस हो सहायता के क्षिए निलावर
फर-|दिया-है ।
काम के बहुतायत के कारण सम्मेलन ने अलग /२ काम
के लिए अलग २ सम्रितियों बता-रक्ष्खो-हें / जैसे हन्दी-प्र चार«
विभाग के लिए प्रवार-समिति, संग्रहालय का / कार्य सम्पादन
करने-के-लिए संभग्रहक्य-सम्रिति आदि | इस्तो तरह / साहित्य-
समिति, स्थाई-समिति ओर परीक्षा-समिति आदि-भी-हैं। | इस-
सम्रय परीक्षा-लमिति के मंत्री-हैं श्रेमान द्याशंक्र जी। दुबे,
एम, ए; एल, एल, वो । इन्होने भारत भर से परीक्षा के दृ॒जारों/
केन्द्र-स्थापित किये-है जहाँ देय-विशारद-परीक्षा, शीघ्र-लिपि+
विशारद-परीक्षा, सम्पादत-कला।-परीक्षा, आरायज-नवीसी
परीक्षा वथा सुनीमी-/ की-परीक्षा ली-जाती-है और इसके लिए
उन्हें प्राण / तथा उपाधि-पत्र द्ये-जाते-हैं ।
सम्मेज्नन ने अभी द्वात्न-/ दी-में एक बड़े भव्य भवन का
निरमाण किया-है / जिसे 'हिन्दी संग्रह्मलय” के नाम से पुकारते-
हैं। इसी में / सम्मेलन की ओर से हिन्दी-शीघ्र-लिपि कालेज की
स्थापना / की-गई-है । २०३
: बिशेष थोग्यदा चाहने-बाले छात्रों के लिए
जो कुछ अब तक आए पढ़ चुके है उससे श्राप साधारण
बौर पर कोई भी व्याख्यान आदि को पूरी रिपोर्ट ले सकेंगे
परन्तु एक कुशल सक्केत-लिपिल्ञाता होने के लिए यह बहुत्त
आवश्यक हे कि आप जहाँ कीं भी व्याख्यान आदि लिखने
के लिए जाये पहले उस विषय के विशेष शब्दों तथा वाक्यांश
को अभलो भाँति अभ्यास कर लें। ऐसा करने से वह विपय ठीक
रूप से समक में आ सकेगा और आप भी उसको सरलता-
पूर्वक लिख सके गे । आगे अल्ञग अल्लग विभागों के विशेष-शब्दों
की एक बृहत् सूची दी गई है और यह बताया गया है कि उनको
छोटे से छोठे रूप में किस प्रकार लिखा जाय कि पढ़ने में जरा
भी असुविधा न हो । इसका अच्छा अभ्याख करने के पश्चात्
आपको गति १७७ शहद प्रति मिनट से लेकर १६०-२०० तक
था उसके ऊपर अवश्य पहुँच जायगी। इसी तरद्द नये-नये
प्रचलित शब्दों के गदने का अब आप स्वयं प्रयत्न करें |
१०,
११,
१३.
१७.
( २४६ )
राज्यशासन- के पदाधिकारी
सम्राट » शहनशाह ४-प्रिंस-आफ-वे ल्ख
' भारतमंत्री गवर्नेर-ज्ननरलल गवर्नर-ज्नरल-इन-फोंसिल
वायसराय गबनेंर ..-. गननंर-इन-कोंसिल
कमिश्नर कल्तेक्टर डिप्टी-झल्षेक्टर
डिप्दी कसिश्तनर मजिस्ट्रेट असिस््टेन्ट-मजिस्ट्रेट
आनरेरी-मजिस्ट्रेट ज्वाएन्ट-मजिस्ट्रेट डिप्टी-मजिस्ट्रेट
डिस्ट्रिक्ट-मजिस्ट्रेट तहसीलदार नायब-तदसीलदार
सद्र-तहसीलदार गिरदावर इंस्पेक्टर-जनर ल-अआफ-
मु पुलिस
डिप्टी-इंपेक्टर जेनरल-आफ-पुलिस सुपरिटेंडेंट-आफ :
पुलिस डिप्टी-सुपरिटेंडेंट-आफ-पुलिस
इंस्पेक्टर-आफ-पुल्लिस सब-इंस्पेक्टर-आफ-पुलिस
शहर-कोतवाल
थानेदार रैलवे-पुलिस खोफिया-पुल्निस
कमाण्डर-इन-चीफू.. जक्ली-लाट प्रधान-सेनापति
डाइरेक्टर-जेनरल पडजूटेन्ट-जेनरल फोल्ड-साशेल
सेजर-भनरत्त लेफटिनेन्ट-जेनरल केप्टेन
ञ पें-हर. -
गॉंड डे बादशाह भारत सम्राट तथा रशहनशाह्
जाते-/ है इनके सबसे ज्येष्ठे पुत्र को जो राज्याधिकारी भी
होते. हैं प्रिंस-आफ-बेल्ज 'हैं। भारत के शासन के सबसे-
बड़े / >चचाधिकारी भारत: मंत्री-हैं जिन्हें भारत- चिक के नाम
भी पुआरते *र पचितें वर्ष स्रार को अंजूरी से / भी
आरत-राज्य का आछ ८ के-लिए गबनेर-जेनरल/ को स्ेजते-औे
जिन्हे अयसराय भी कहते. इनकी सहायता के-लिए केन्द्रीय:
लो और कॉसिल- का निर्माण / हआहै जो
भारत भर के लिए तये-नये क एन / बता-क्षर रंनकी पहायता
ते-हैं । फौजी मामलों ६ ने-से न/-पकि वेयश्षसय को #
सज्नाह-देते-है बन्हे / असांडर-इन-चोक / जँंगरो-न्ञाट कहते-ह
इनके आधोत और बहु गैज्नी र-हैं जो कास के
अलुसार / जइरेक्टर-जेनरत् ” जनरल, फ्रोल्ड माशत्र, सेजर-
जेनरल, लेफ्टिनेन्ट ओर केप्टेस आदि कहत्ाते-है । गश्ननेरः
जेनरत्न अलग्र-अत्नग आन का / एज्य सचानन का अधिकार:
गवननेरों को सोप- देया-है / बनाने आदि # इ्नक्ी
'पदायता के-लिए जिस्त्रेटिब-एसे म्ली और / कॉसिल का
भाण किया गया-है । पर« न्तीय-जं।िलन अपने / अन्त भर
नि अमून-बना सके तीःहै
शान्ति / कायम-र
। ही पद |
के
( २४१ )
मजिस्ट्रेट, डिप्टी-मजिस्ट्रेट और तहसीलदार होते-हैं। कलेक्टर/
को डिस्ट्रिक्ट-मजिस्ट्रेट, मजिस्ट्रेट ओर अवध के प्रान्तों में। डिप्टी-
कमिश्नर भी कहते-हैं। तहसीलदार फौजदारी तथा माल के
मुझदमों । का फैसला-तो-करता-ही-है, इसके अत्लावा बह साल-
गुजारी / के बसलयाबी का भी पूरा प्रबन्ध-रखतान्हे । इन बातों/
में उसको सध्दायता-देने-के-लिए चायब-तहसीलदार, गिरदाबर/
: आदि की भी नियुक्ति होती है। दहसील्दाए को सद्र-तहसीत्व-
दार भी-कहते «हँ ।
आन्त को शान्ति की रक्षा करने-। के लिए और ऐसे मामल्नों
से रबनेर को सक्लाह देने-के-/ लिए ज्ञो अफपधर-है उसे इंस्पेइटर-
जेनरल-आफ-पुल्चिछ् / कहते-६ । इनके आधीन डिप्टी-इंस्पेक्टर-
जेनरल-आफ-्पुलिस, पुलस-। सुपरिन्टेन्डेन्ट, चथा डिप्टी-पुलिस-
सुपरिन््टेन्डेन्ट आदि है | छुपरिम्टेन्डेन्ट-आफ-पुल्षिख,/डिस्ट्रिक्ट-
मजिस्ट्रेट के आधोन द्ातेनह ओर नगर को झुख-/ शान्ति कायस-
रखने में उसड्ठी सहायता करते-हैं। इनके आधीद / इन्पपेक्टर-
पुलिस, सब-इंस्पेक्टर पुलिस, शहर-कोतबाल तथा थानेदार
होते / हैं। खोफिया-पुद्चिस तथा रेलबे-पुलिस, पुल्षिस के सिन्न«
सिन्न । शाखाएँ हैं। साधारण पुलिस को कांस्टेबिल सी-कहते-है ॥
४००
दे
व ४
४
€.
4०.
१६५
१२,
१३.
न
डे
भर
( ०३ )
सरकारी ओर ग्रे र-सरकारी संस्थाएं
सरकारी संस्थाएँ ( १ )
बृटिश पार्लियामेन्ट.. हाउस आफ फसान्स
हाउस आफ लाडंस.. अँग्रेज़ी प्रतिनिधि सभा
अंगरेज सरदार सभा इण्डिया काँसिल
प्रिवी कॉसिल राज्यपरिपद्
कौंखिल आफ ौ्टेद्स केन्द्रीय सभा
सेन्ट्रल एसेम्बत्ती प्रान्वीय व्यवश्थापिका-सभा
लेजिस्लेटिन एसेम्त्रजी कफॉसिल
सरदार-सभा स्थुनिसिपत्न बोलें
डिस्ट्रिक्ट बोर्ड नोटोफाइड एरिया
इम्प्रवर्मेंट ट्रस्ट कारपोरेशन
पोर्ट ट्रस्ट यूनियन कमेटियाँ
नरेन्द्र मण्डल चेम्चर आफ प्रिसेस
लोकल सेल्फ रावसमेन्द गवनेंमेन्ट आफ इण्डिया
ग़र-सरकारी संस्थाएँ ( २)
अखिल भारतवर्धीय कांग्रेस कमेटी
अल इंडिया प्मंमेंस कमेटी
कांम्ंस पालियामेंट्री बोडे... श्रॉनीय कांग्रेस कमेटी
प्राविंशल कांम्रेस कमेटी. सोशल रद पार्टी
डि्ट्रिफ्ट कग्रेस कमेटी नगर कांग्रेस कमेटी
९९१ /+- _. . 32
०८४ -
१४ टी हे
हिंदो-साहित्य-सम्मेज्न नागरीअचारिणी-सभा
अखिल भारतवर्षीय हिन्दू मद्दासभा
अखिल भारतवर्षीय मुस्लिम लीग
अखिल भारतवर्षीय खादी संघ
कोआपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी
प्रान्तीय आदि हिन्दू महासभा. दरिजन-सेवा-संध
प्रांतीय मज़दूर सभा लेवर. यूंचियन
सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अहरार पार्टी
चेम्बर आफ कामसे ट्रेड यूनियन
यू, पी. सेकेंडरी एजूकेशन एसोसियेशन
सरवेन्ट- आफ इस्डिया सोसाइटी
दल्ममन््या॥ अरवापमफालमांद 7.
( २४६४ )
अभ्यास-- ६७
इछुलेंड तथा उसके उपनिवेशों का शासन बृटिश-पालिया-
' “मेन्ट द्वारा, | होता है। इस पार्लियामेन्ट की दो शाखाएँ हैं,
हाउस- आफ-कामन्स और हाइस-जआ्लाफ-लाड्स के नाम से
पुकारी-/ आतीःहें । हाव्स-आफ कामन्प्त को अंग्रेज़ी प्रतिनिधि-
सभा और / हाउस-आफ-लाडेस को अंग्रेज़ी-सरदार-सभा कषृठटते-
हैं। प्रिवी-कोंसिल / इंग्लैंड तथा उपनिवेशों के-लिए सब्न-से-बड़ा
न््यायात्रय है । / भारत का शासन वह इण्डिया कॉसिल द्वारा
करती-है ।
इसी-/ तरह सारे भारत के वास्वे कानून चनाने-वे-लिए
कोंसिल-/ आफ-प्टेट्स और सेन््द्रल लेजिस्लेटिव-असेम्बत्ी-हैं |
इन्हे राज्य-परिपद / तथा फरन््द्रीय-असेम्बन्ली भी कहते-हैं। प्रांतों
सें भी इसी- | तरह लेजिस्लेटिव-असेम्बही और कोसिलें है ।
कोसिल् को अपर-हाउस / और लेजिस्लेटिव-असेम्बली को
लोअर-हाउस सी कहते-हें | इन्हीं / व्यवस्थापिका-सभाओं हारा
प्रांवों के-लिए सारे कानून बनाये-। जाते-हैँ ।
इसी-तरह नगरो के देहाती ओर शहराती हिस्घों को /
सुब्यवस्थित हाज्तः में रखने के लिए स्युनिसिपत्-वोडे
डिट्ट्रिस्ट-चोड तथा / नोटी-फाइड-एरिया कायम की गई-हैं।
कल्षकत्ते, बसंबई / आदि में स्युनितिपश्न-बोडे की जगह कार-
पोरेशन और पोटू-द्वस्ठ / हैं। कारपोरेशन के अध्यक्ष को मेयर -
कहते हैं ।
राजा-महाराजाओं | की सभाओं को नरेन्द्र-मण्डज्ल या
चेम्बध-आफ-प्रिन्सेज कद्दते-| हैं । १६१
-_-. ( रे४६ )
अभ्यास--६ै८
( २ ) ु
हिन्दुस्तान के राजनैतिक क्षेत्र में सब-सेनचड़ी संस्था *
अखिल-/ सारतवर्षीय-ने शनल्-कांग्रेस-दे । इस आतल्ष-इस्डिया-
नेशलन-कांग्ेस-ने/ अपने-काम-करने-फे-लिए हर-एक प्रान्त; नगर
या। गाबों में अपनी अलग-अल्लग कम्ेटियाँ मोकरेर-कर-रकखी-
हैँ / जिसे . आल-इण्डिया-कांग्रेस-कमेटी, प्रांतीय-कांग्रेस-कमेटी,
नगर कांग्रे घ-कमेटी/ या ग्रास्य-कांग्रेस-कमेटी कहते-हैं | डिस्ट्रिक्ट
काग्रे कमेटी या /-विल्लेज्न-कांग्रेस-कमेटी, प्राविशियल-कांगे ध-
कमेटी के आधीन हैं।।
भारत और प्रान्तों की कोंखिलों के चुनाव के लिए कांग्रेस ने।
एक पालियामेंट्री-नोडे और खद्दर प्रचार के लिये आत्-इंडिया-
स्पिनसे-/ एसोपियेशन बना-रखा-है जिसे अखिल-सारतवर्षी य-
खादी-संघ भी / कद्दते-हैं ।
नेशनल-लिबरल-फेडरेशन, अखिल-सारतवर्षी य-हिन्दू-मद्दा-
खसा, अखिल/-भारतवर्षीय-मुसलिस लीग आदि भी राजनेतिक
संस्थाएँ है पर इनका / काम किसी विशेष जाति या वर्ग ही के
लिए द्वोता । है, सारे देशवासियों के लिए नहीं ।
देश में हिन्दी-प्रचार / केगलिए. सबसे ऊँचा स्थान हिन्दी-
साहित्य-सम्मेज्ञन दही का-/है। इस सम्बन्ध में नागरी-प्रचारिणी-
सभा का नाम भी आदर/ के साथ लिया-जाता:है
इनके अलावा अलग-अलग जाति / और सम्प्रदायों ने
अपने-अपने स्वार्थों की रचा के लिए/ अलग-अलग संस्थाएँ बना
रखी-है, जेसे आदि-हिन्दू-सभा, / अग्रवाल-सहासभा, आल-
इंडिया कायर्थ सभा आदि | १६
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अम्यास-- ६६
रेलवे के वाद यदि छिसी-डिपाटमेंट का महत्व है तो / वह
पोस्टल-डिपार्टमेट ही है। यहाँ तीन या चार पैसे / में पोस्टका्डे
तथा लिफाफा को भेज-कर दृज्षारों मील की / खबर घर बैठे
मेंगवा सकते दो | तार से तो खबर / कुछ दी घंटों या मिनटों में
पहुँचती-है ।
पोस्ट-आफिस / के सब-से-चढ़े प्रांतीय अफसर को पोर्ट-
भास्टर-जेनरल / और -नगर के सब से बढ़े अफ़सर को पोरद-
मास्टर / कहते हैं | इनके आधीन सब-पोस्ट-मास्टर तथा ज्रांच-
पोस्ट-/ मास्टर द्वोते हैं। इसी तरह टेलीमाफ-डिपाट्टेमेंट के अफ-
सर को / देल्लीआफ सुपरिंटेंडेंट या टेलीमाफ-मास्टर कद्दते हैं और
सार / भेजने वाले बाबू को तार-बाबू कहते हैं ।
चिट्ठी या खत / जिन कली रजिस्ट्री की आवश्यकता नहीं-होती
बहद्द लेटर-बक्स में / डाल-दिये-जाते हैं । डाकिया उन्हें लेटर-बक्स
से निकाल / कर हेड-आफि स, सब-पोस्ट-आफिस या आ्ांच-पोस्ट-
आफिस / में ले-जाता है | वहाँ से फिर वे जिन नगरों के / रदहने-
चालों के पत्र द्वोते हैं उन नगरों के डाकखानों में / भेज दिये-
जाते-हैं। वहॉ उन पत्रों के बंडलों / को पैकर लोग खोलते-हैं. और
फिर ये चिट्टियाँ पीयुन / द्वारा बँटवा-दी -जाती-हैं ।
पोस्ट-आफिस द्वारा दूसरे / नगरों या झुदूर देशों में रुपया
भी भेज्न-सकते-हैं। / अरने दी देशों में रुपया मनी-आडेर हारा
ओर खुदुर / देशों में फारेन-मनी आडेर द्वारा रुपया भेज
सकते हैं । ११६
ही ही ही.
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७ ८9
४ शा « प मिक
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कक ७» भ- .. #>+%
६4 + मा कर है 2००६६ डॉ मर कक # पक ५ ५
६ रर६ )
रलवे-विभाग
। ' श
98-3० बन्की
स्टेशन मास्टर गाडे प्लेट फार्म टिकट
बुकिंग कक. माल बाबू टिकट बाबू. गुड्स क्लके
इस्ट इरिड्यन रेकषये ज्षी. आई. पी. रेलवे
एन, डब्लू. आर, रेलवे... टिकट कलेक्टर
टी. टी. भाई, टाइमटेबिल फटे क्ास सेकंड क्वास
इंटर क्लाघ बडे क्वराघप पहला दी दूसरा द
दीसरा दर्जो ड्योद्षा-दर्जों तीथे-यात्री रेलवे टाइमटेविल
ट्रैफ़िऊ मैतेजर ट्रेफ्निक इंस्पेक्टर. इनक्वायरी आफिस
न् साशगाड़ी
( २६० )
८, मुसाफिर गाड़ी पंसेजर गाड़ी परसेंजर ट्रेन मेल ट्रेन
६. तृफान-मेल मालगुदाम इनवाइस , बिल््टो
१०. खिगनेलर मुप्ताफिरखाना वेटिक्ल रूम ड्राइवर
११. फायरमैन रेलवे इन्जीनियर चीफ कमर्शल मैंनेजर
" चीफ आपरेटिह्ञ सुपरिंटेन्डेन्ट
अभ्यास--७०
भारतवर्ष में पदले-पहल-रेलवे का निर्माण बम्बई प्रांत में /
हुआ-था । उस-समय-लोगों झो यद्द पदले-पद्दल काले-/ काले देव
तथा दानव के समान मालूस-हुए परन्तु शीघ्र /द्वी अपनी उप-
योगिता के कारण इन्द्रोंने भारतवर्ष के कोने-/ कोने अपना
अधिकार जमा-लिया । अब तो किसी देश को/ सुख-शांति व्यापार
तथा व्यवसाय आदि का दारोमदार इन्हीं-पर-/ है । बिना इनके
एक मिनट भी काम नहीं चल-सकता /|
. गाँव-गाँव तथा नगर-नगर में इन रेलों के ठददरने / के लिए
स्टेशन-बने हैं जिसका प्रबन्ध करने-वाले को / स्टेशन-मास्टर
कद्दते-ह । रेलवे-ट्रेन के चलानेन्वाले को ड्राइवर / और उसकी
देख-रेख रखने-घाले को 'गाड” कहते हैं। /
रेल-पर-चढ़ने के लिए दर-एक आदमी को दाम / देकेर टिकट
खरीदंना-पड़ता-है। जो-हर-एक स्टेशनों के/ मुसाफिर खानों
में बने हुए टिकट-घरों से मिलता-है। / टिकट-देनेवाक्े
बूकी टिकटन्वा और साथ के माल की | बिल्टी को बनानेवाले को
३३४०७ ०० ७
( २६३ )
अभ्यास--७ १
न््य है श्री मालचीय ज्ञी को जिन्होंने भारतोयों के द्वित-/
क्रेजलिए सेवा-समिति-व्वाय स्काउट-एसोसियेशन को स्थापित
किया है | इस समय इसके चीफ-आगगेनाइनिड्ज-कमिश्नर
रवनाम धन्य श्री / भरीराम-जी-बाजपेयी-है. और देड-क्वाटेर
कमिश्नर-हैं श्री / जानकी शरण जी वो ।
वेडन-पावेल-ब्वाय-रकाउट-एसोसियेशन के / नाम्त से एक
ओऔर भी संस्था है जिसे लाडें बेडन-/ पावले-ने स्थापित किया-है |
उसका संचाज्न अधिकंतर यहाँ के / श्रफ्ततर वर्ग के द्वाथ-में-है ।
ला चेढन-पावेल ने । भो हिन्दुस्तानियों के प्रति अक्सर ऐसे
विचार प्रगट किये-हैं / जो क्रिघो-भी देशामिमानी को रुचिकर
नहीं हो-सकते ।
यह / बालचर-मण्डल अपने बाल-चरों या रकाउटों को
योग्यतानुसार कई / नामों से पुकारती दे जैसे शेर-बच्चे, रोबर
आदि। इस हे | नायकों को दोली-नायक, दल-नायक, कथ-मास्टर
उथा स्काउट मास र आदि कद्दते हैं |
यह बालचर टोली-परेड, फैम्प-फ्रायर, / दाइकिछ आदि के
लिए अक्सर सारचिद्न-भाडंर में गाने गाते।॑ हुए अपने नगरों से
धादर भी ज्ञाते हैं। इनके लीडर / को पेट्रोल-कीडर कहते हैं ।
योग्यतानुघार इन्हें फोमलगद-शिक्षण /या धुव-पद-
शिक्षण के प्रमाण-पत्र धालचर मण्डल से / मिलते हैँ !
खेलों द्वारा वालचरों फो देश भक्त, सचघरित्र, स्वाभिमानी ।
तथा स्वावलम्बी बताकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा-भऋर-देत़ा !
सेवानसमिति फा मुख्य उद्श्य है। फोई भो सच्चा स्काउट | घुरी
बातों से दूर रहेगा और अपने देश-महेश-मरेश / के लिए तन-
मन-घन न्यौद्धावर करने-को पैयार रहेगा । । २३०
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शिक्षा-विभाग
स्कूल कालेज यूनीवसिंटी.. हेडमास्टर
प्रिन्सिपल ट्रेनिक् कालेज डिप्टी-साहव डाइरेक्टर
३, शिक्षा-मन्त्री स््युनिसिपल-स्कूल डिस्ट्रिक्ट-बोडे-स्कूल'
शिक्षा-प्रणाल्ी
प्रारम्भिक-शिक्षा रजिस्ट्रार चान्सलर वाइस-चान्सलर
, शिक्षान्केन्द्र प्रायमरी-स्कूल सेकेन्डरी-स्कूल'
माध्यमिक-शिक्षा
अनिवाय-शिक्षा निशुल्क-शिक्षा मिडिल-स्कूल हाई-स्कूल
प्रेजुएट विश्वविद्यालय सरकिल-इन्सपेक्टर गुरुकुल
विद्यापाठ.. पाठशालाएँ... पाव्यक्रम पाख्यपुस्तकः
एफ, ए.. बी,ए, एम. ए.. विद्यालय
सेंडीकेटे. सीनेट. स्री-शित्षा औद्योगिक-शिक्षए
« दसस््तकारी-शिक्षा शिल्प-शिक्षा डिप्टी-इन्सपेक्टर निरीक्षण
शिक्षक विद्यार्थगयण शिक्षा किंडर-गाटन-प्रणाली
, किंढर-गाटन-सिस्टम मांटसेरी-अणाली मांटसेरी-सिस्टम
परीक्षा
यू पी, सेकेंडरी-एजूफ्रेशन-एसोसियेशन. एंग्लो-वनो-
क्यूलर-स्कूल.. वनोक्यूह्र-स्कूल ., अध्यापक .
« गुरू-शिष्य छात्रालय . कनवोनकेशन कैरिकुलम
( रधप ) .
अभ्यास--७२
[ अद-नक्षत्नादि सम्पन्धी शब्दों पर अभ्यास |
हमारे यद्दाँ जो काम दोते-हैं सब अच्छे भरह, नक्षत्र / और
साइत से किए जाते हैं। तिथी तथा वारों का | भी पूरा विधांर-
रक्खा-जाता-है | कृष्ण पक्ष-की अमावस्या, / चन्द्र-पदण और -
सूर्ये-परहण के दिन तो निषिद्ध कार्य | ही किये-जाते-हैं । शुभ कार्य
शुक्ल पद्दा की पौर्णिमा / के दिन हो-सकते-है। यों तो काय करने-
के-। लिए साज् या बष में ३६४ दिन पढ़े दें पर / नवरात्रि का
सप्ताह और विज्ञया-दशमी का दफ्ता बड़ा पविन्न / माना-जाता है ।
हिन्दू-मुसलपानों-और-अंग्रेज़ों के महोंने के / अलग अलग
नाम है जैसे हिन्दुओं के महीने के नाम / यदि चैत, बैसाख,
ज्येष्ठ आदि है तो ऑँग्रेज़ी महीनों के / नाम जनवरी, फरवरी, माचचे
आदि हैं। मुसल्लमानों के मद्दोनों के | नाम मोहरंस, रमजान,
शबेरात आदि हैं | इसी तरद्द अलग“अलग / दिन भी है। अपने
यहाँ बुद्धधार और शनिश्चर के दिन / कोई -शुभ फाय नहीं करते ।
खुहरपतिधार, रविवार या महुलवार अच्छे / दिन माने-गये-हैं ।
ईसाई लोग रविवार को और मुखत्ञमान / लोग शुक्रवार या जुर्में
को बहुत पवित्र मानते-हैं । १६६
अभ्याप--७३
इस-घमय हमारे प्रांत के शिक्षा की बागडोर हमारे अलु-
अवी / सन्त्री श्रीसान् प्यारेलाल जी शमो के हाथों में है। निःशुल्क/
आओऔर-अनिवार्य-शिक्षा का देना द्वी उनका मुख्य-रद्देश्य दे।।/
इसके लिए वे माँत भर के एंग्लो-व्नोक्यूलर या वर्नोक्यूलर-/
स्कूलों, कालेज्ों ओर यूनिवर्सिटियों की शिक्षा-प्रणात्नी का
अध्ययन कर-| रहे-दैं और इसके सम्बन्ध में समय-समय-पर
डोइरेक्टर-/ ऑफ़े-पर्लक:इंस्ट्रंक्शन, सुयोग हेडसास्टरों तथा
ट्रेनिक्कालेनों के प्रिंसपलों /स भी सलाह लेते-हैं ।
5४“ देखना उन्हें: यद-है/ कि / भायमरी-स्कूल, सेकेन्डरी-स्कूल
मिडिल-सकूलतथा हांई-रकूल कौन / कट्टाँ-पर बढ़ाये या घटाये
जा-संकते-हैं “जिससे “कि / कम-से-कम खर्च में अधिक-से
किधिक शेइकों ' को | पढ़ाया जा-सके। सत्री-शिक्षा; ओयोगिक-
शिक्षा,- दस्तकारी-शिक्षा तथा / शिल्प-शिक्षा की तरफ उनका
विशेष ध्यान-है परारम्भिक-शिक्षा / के साथ-द्वी-साथ साध्यमिक-
शिक्ताःको भी व सरल / बनाना-चाहते-हैं
7५ आप छोटे बच्चों के शिक्षा फे-लिए / किंडर-गार्टनन्प्र॒णात्री
मांटसेरी-प्रणाली वथा अन्य शिक्षा-प्रथालियों का / भी अध्ययन-
कर-रहे है ।
आशा-की-जाती-है कि / इनके मंत्रित्वकाल में एफ. ए.;
बी. ए ; एम. ए. के / बेकार ग्रेजुएटों तथा बेकार विद्यार्थीगयण को
रोशगर मिल-सक्ेगा ओर / शिक्षा-माष्यम सातृसाषा द्वारा
होकर यह देश के कोने २ / फेला-जायगा ।
इसके-लिए इनको प्रांत में गुरुकुल, विद्यापीठ, विद्यात्रयों,
छात्रालयों, पाठशालाभों, मक़॒तबों का पाख्यक्रम तथा पाछ्य-
पुस्तकें निधोरित-करना- पड़ेगा और इनको घन आदि से:भी
संदायता देना-पड़ेगा। |
अभी द्वाल-में ही हमारे प्रयाग -विश्वविद्यालय की स्वर्णे-
“जयन्ती । सनारन्गयी-थी जिनमें कोट द्वारा स्वीकृत उपाधियों से
यूनिवर्सिटी । के चांसलर ने देंश के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक, धुरंधर ,
विद्वान तथा, / देश-सेंबियों को विभूषित किया-था। २६६
५ त्ी
$.
ब्ब्ल
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है: अवधरेंद ऐक्ट :?: 5,३३२ * आगरा-जमीदार-एसोसियेशन
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7५
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: अच्छे" जमींदार या ताल्लुकेदार किसानों को अपनी
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याया:सममते-हैं| और उनझे साथ सद्व्यवद्दार के साथ पेश
एते-है। बहुत | स्थानों-पर साल्नगुजारी वसूल-करने और सर»
हर टे यहाँ / भेजने के लिए, मालगुजार, ठेकेदार या नम्बरदार
तेहें।
आबपाशी / के-लिए कुएँ, तालाब या नद्दर बनाई-जाती-हैं,
_ससे / बोआई-जुताई द्वोने-एर फसल की पैदाबार अच्छी-हो ।
'धत्न | के अच्छे न-होने-पर अथवा सूखा या पाल्ला-पड़ने-। पर
पटवारी या तहसीलदार इस ही रिपोर्ट सरकार से कर देते हैं ।
चहाँ से इन्हें अगली फप्तत्त जोतने बोने के लिए / तकाब़ी
मिलती है |
काश्तकारों को जब कर्ज की आवश्यकता-पढ़ती-/ है तो सह-
कारी-समितियों या महाजनों से लेकर अपना / काम चलाते-हें |
थदि एक ही गाँव में छोटे-छोटे | कई जमींदार हुए था एक-द्दी
जोत में कई छोठे-/ छोटे किसान हुए तो उन्हें हिस्सेदार या
पट्टीदार कद्दते हैँ | ।
जमोंदार अपने लगान की वसूलयाबी कारिंदा के द्वारा
कराता है |। वह इस वसूलयाबी का पूरा हिसाब जिन बही-
_ जातों में रखता / है उसे जमावन्दी-स्याह्य या खतौनी कद्दते हैं |
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( २७२ »)
पद्टा-कबूलियत / में जमींदार और किसानों के बीच की गई उक ,
शर्तो' / की लिखा-पढ़ी रहती दे जिन पर काश्तऋार्रों को ज़मीन
दी-ज्ञाती-है । लगान न अदा-करने-पर जमींदार आगरा / के
प्रांत में आगरा-ठेनेन्सी-एक्ट के घाराओों के अनुघार / और
अवध में अवधरेन्द-एक्ट के अनुसार किसानों पर सुकदमें /
चलाकर उन्हें बेद्खल कर-देते-हं। इसलिए लगान को
बकाया / कभी न-रखना"चाद्िए बल्कि उसे फौरन अदा-कर-
देनान चादिए । -
जमीनों की किस्मों के-अनुसार अलग-अलग लगान हैं /और
' इन्हीं लगानों के अनुखार किसानों को खुदकाश्त, शिक्रमी,
हीनदयाती / या मौरूसी किसान कद्दते हैं। साकितठल-मिल-
कियत किखानी का त्गान / मौरूसी लगान से भी कुछ काम
होठा है ।
सरकार ने (इनकी मदद के लिए एग्रीकलचरिस्ट-रिज्ीफ:
एक्ट, एनकम्बडे-स्टेदध्-एक्ट / अभी पास किये हैं । श्पषट
वारथ्य-विभाग
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854 शी शिखर ४४2८० 5
ध् ९ हा हे है हा 7३3 ह
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९ रक्टर-जेनरल-
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अत्सा-अरण। ॥
कफेम्प/उन्डर- दवाई
2339७०७००५......
( २७४ )
अभ्यास---७४ न
रोग चिकित्सा तथा 'स्वास्थ्य-मुधार के बारे में देद्दातों की/-
जो दयनीय दशा-है उसको बयान-करने-से-दही रोंगटे / खड़े
दो-जाते-हैं । जिस समय कोई भयानफ छुत॒द्दर बीमारी) फैलती-दै
तो उनकी न तो किसी किप्ष्म की चिकित्सा-/ होती-है न कोई
डाक्टर हकीस या वैद्य द्वी उनऊे | पाख फटकते हैं। ये बेचारे
देदाती बगैर किसी दवा-दारू /या सेवा-शुश्रषा के हजारों की
तादाद में भुनगों की | तरद्द मर जाते-हैं. यर्याप इनका इंतजाम
करने के लिए / भेडिकल-बोडे, डायरेक्टर-जनरत्ञ-आफ-सिविल
दास्पिटल, मेडिकल-आफिसर-आफ-हिल्थ, सिवित्न-सरजन आदि
बड़ी-बड़ी तनखाहें पाने-वाले अफसर / सोकरर-हैं। न शफा-
खाने, न अस्पताल ओर न औपघालय कोई / भी उनके वक्त
पर काम नहीं आते हैं।
एलोपैथि४-चिकित्घा-/ प्रणाली इतनी कोमती है 'कि इनके
लिए बेकार-है। दोम्योपैथिक / चिकित्सा-प्रणालो यद्यपि सस्ती-
है परन्तु फिर भो इश्ो प्रणाज्ञी / की दवाइयों को फायदा
करने-के-लिए एक बड़े अच्छे / जानकार की आवश्यकता है।
सबसे अच्छी सस्ती ओर सुगमअणाली दम।री / देशी वैद्यक-
चिकित्साअ्रणाली है जिसे कुछ जंगली पत्तियों | के काढ़ा और
रस द्वारा भय॑कर-से-भयंकर रोग आराम / द्दो-जाते-हैं ।
यदि गवेमेंट इन बड़ी-बड़ी तनख्वाहें पाने / वालों के रुपये
को वचाकर आजकल्ञ के बेकार नवयुत्रकों को / साल-साल भर
की वैद्य को-शिक्षा-देकर यदि कस्बे / और तहसीलों में दी
आओऔषधालय खोलवा-दे-तो मेरी समझ / मे यह मसला बड़ी
आसानी से हल द्वो-सकता-दहै /। नये वैद्याण भी धीरे-धीरे
सजुबी को दापिल कर अच्छे / वैद्य द्ो-सकते-हैं । देहात-वालों
को तिनके का सद्दारा भी / बहुत है, स(ता क्या न करता | २५६
20७,
“रे 8 छ
१७.
श्छ,
४( २७७ )
न््याय-विभाग
'प्रिवीकोसिल फेडरलको्ट द्वाई कोटे जूडिशल कमिश्नर
असिस्टेन्ट जूडिशल कमिश्नर जूडिशल कमिश्नर कोटे
चीफ जस्टिस माननीय जज
न्यायाधीश सेशन जज्ञ डिस्ट्रिक्ट जज जिला जल
सब जज सदर-आला . समुन्सिफ. चीफ कोटे
रेबन्यू कोट. स्माल काजेज कोटे. अदालत खफीफा
सेटिल्मेंट कमिश्नर
मोकदसा फौजदारी के सोकव में. दीवाली के मोकदमसें
- माल्त के मोकदमें
जूरी असेसर ओरिजिनल . अपीलेद
मुदद३ मुद्दालय वादी प्रतिवादी
अटानी . मोहर्रिर अमीन कुके-अमीन
पत्र पत्चायत पौजदारी वकील
प्लीडर मुख्तार एडवोकेट. गवर्नमेंट-एडवोकेट
असिस््टेन्ट-गवर्ने में ट-एडचोकेट . बार कोंसिल
बार-चेम्बर न्यायालय
अभियोग अभियुक्त जाब्ते-दीवानी. 'हलफ-नामा
बयान-तहरीरी विचाराधीन तजवीज्ञ गवाह
इजहार पंचतसामसा जिरह जसानतदार
दस्तावेज़ मस्विदा अर्जी-दावा. * इकरारनामा
इं दुलतलब-रुक्ता . जायदाद बार-एसोसियेशन शहादत
इस्तगासां. ताजीरात-द्विन्द तंनकी बनाम
“( शऊछ )
अभ्यास--9६
[ जेल और सेना-सम्बन्धी अभ्यास ]
देश की शान्ति-रक्षा के-लिए दी दुस्ड-विधान तथा / पुलिस
और जेलों का निमोण किया-गया-है। कभी-कभी / जब अशान्ति
घोर-रूप धारण करते-हैं-तो सेना / या फौज की आवश्यकता- *
पड़ती-है जो देश में शान्वि-| रखने के अलावा बाहर विदेशियों
के आक्रमण से सी रक्षा करती-है। आवश्यकतानुसार सेना
के कई भाग किये-गये-हैं।। जैसे जत्न-सेना, स्थल्न-सेना, वायु-
सेना आदि । ;
वायु-सेना / की बागडोर रायत्ञ-एयर-फोस के अफसरों के.
द्ाथ में-है / इसमें अनेक-प्रकार के वायुयान दै भिन््हें हवाई
जद्दाज़ / या एरोप्लेन कहते-हैं।
सेनिक-अफसरों की उच्च-शिक्षा-के / लिए देहरादुन में
एक कालेज स्थापित क्िया-गया-है जिसे। सेंढुरस्ट-कालेज
कद्दते-हैं ।
पैनिक-शिक्षा के-लिए नए-तए / रंगरूद भरती किये-जाते-
हैं और बहुत सेनिक रिजवे में-/ रखे-जाते-हैं जिन्हें रिजवे-
सैनिक कद्दते-हैं |
दण्ड विधान / के अनुसार गिरफ्तार किये हुए आदमियों
को पहले दृवालात में / रखते-हैं और सज्ञा होने पर जिला या
डिस्ट्रिक्ट-जेल, / सेन्द्रल्न-जेल आदि जगहों में सुविधानुसार भेज
देते-हैं। जेल / के अफसर को जेलर कद्दते-हैं। वह पुराने
समझदार कैदियों / से भी जेल के इंतज्ास में सदद लेते-हैं
बिन्हें / कैदी-अफ़सर या कनविक्ट अफसर कहते-हैं ।
नए कम उम्र | की बालिकाएं बालक यदि कोई जुमे में पकढ़े
जाते हैं । तो रिफार्मेटरी जेल में मेज दिये-जाते हैं पर उप्र / डकैक
( >ऊू६ )
तथा कालेपानी की सज्ञा पाये हुये कैदियों को एंडमन-/ जेल में
भेजा जाता है|
शहर की शान्ति के-लिए / जगद-जगह पुलिस-स्टेशन बने-हैं
जिनमें शहर-होतवाल, कोतवाल / तथा हेड कांस्टेबिल और
कास्टेविल आदि रहते हैं | र्श्८
अश्यास्त-- 9७७
दिवानी और फोजदारी-के-मोकदर्मों का फैसला करने-के-
लिए / सब-से बड़ी अदालत को प्रिवी-कोसिल कहते-हैं। नये।
बिधानों के पेचीदृगी को तय करने-के-ल्िए अभी हाल- में एक
कोट कायम क्रिया-गया-है जिसे फेडरल्न-कोट / ऋहते-हैं । प्रिवो-
कोंसिल के मोकदमें इंगलेंड में होते-हैं /। भारत में| सब-से-बड़ी
अदालत हाइकोट की- है ।
जैसे / कलेक्टर आदि जब फ्ौजदारी-कै-मोकदमे करते-हैं
तो मजिस्ट्रेट / कहलाते-हैं. उसी-तरद् जब डिस्ट्रिक्ट-ज्न फीज़-
दारी-के)-मोकदमे-करते-हैं. तो सेशन-नअन कहलाते-दैं । साल-
के- मोकद्सें की सब-से-बड़ी अदालत बाड-आफरेविन्यू दे /
ओर उसके आधीन डिपिज्ननज्ञ-कमिश्वर, सेटिलमेंट-अआफिसर
तहसीलदार आदि माल" के-मोकदसे करते-हैं | श्ववघ-प्रान्त
की सब-से बड़ी / अदालत को जूडिशल कमिश्नर-कोर्ट छद्दते है ।
इन न्यायाधीशों के / पद के अनुसार कहीं जुडिशियल-कमिश्नर
या असिस्टेंट जुडिशियल-कमिश्नर, / कही कहीं चीकफ़-नर्टिस
या केवल साननीय-भज कहते हैं /।
मुकदमे को जो दायर करता दे उसे मुद्दाई या वादी / कद्दते-
हैं और जिसके ख्ाफ बह मोकदसा दायर करता-ह। उस्ते
मुददालेद या प्रतिवादी कद्दते-ह। थो कावून के जानकार /
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फाउन्डस शेयर. शेयर वारन्ट
डिबेनचर डिबेनचर-होलडर शेयर-होलडर प्रार्थना-पत्र
परपिच्वज्ष एक्सडिवीडेन्ट रज़ामन्दी भेरीटोरियस
हेड आफिस अपकष दिवाला दिवालिया
सरचाजे
बेड ओर कम्पनी
4
+एूणन८ ४.५० - उसे एंजेन्ट बह्दीखाता खाताबद्दी
(४ रोकड-बही लेन-देन हानि-लाभ आँकड़ा
“३३ ऑयवयेय ४४“ मुंनीस नास-लेखा विवरण-पत्र
४: बैलेंस:शीटः ,. हुँडी हुँडी पुरणा दरशेनी हुँडी
+ आग #' ५ ७5
मुह॒ती हुँडी ' भरुक्तान जमा! खर्च डिप्रीसियेशन
26, मेल्यॉकष... सिद्चिज्ञ-एन्ट्री सिस्टम डबल-एन्ट्री-सिस्टम
२५ पट... डबल एन््ट्री-परणात्ी
७: कज़ेदॉर. सामीदार कैशडिस्काउंट. बेयरसे-चेक
रू. आडेर-चेक क्रास-चेक एन्डोसेमेंट. सेविज्ञ-बेड्ू
£. सेविज्ञ-बैड्डू एका उन््ट पासबुक चेकबुक
फिक्सड-डिपाजिट
१०, फरेन्ट एकाउन्ट... बट्टेखाते बोनस आमदनी
११. मासेसरी नोट. प्राइवेट कम्पनी पबलिक कम्पनी
इनश्योरेंस कम्पनी
१२, लिक्वीडेशन. सेसोरेंडम भेमोरेंडम-आफ-एप्ोसियेशन
आटेकिल्स-आफ-एसोसियेशन
१३, लिसिटेड लिमिटेड-कम्पती सारटीफिकेट प्रासपेक्ट्स
१७. प्तोटछं सबस्क्राइबड-केपिटल. अथराइष्ड-केपिटल
पेड-आप-केपिटल
१५, प्रीसियस बीमा पालसी रेट आफ एक्सचेंज
बिल आफ एक्सचेंज
१६ नाट निगोशियेधिल् इनकस ठेक््ेसख. सुपर टैक्स
ा एकसेस प्राफिट टैक्स
१७, रटेस्प-ड्यूटी लाइफ-पालसी .. भेडिकत्त एकज़ामिनेशन
आडिटस
१८, डिपार्टमेंट... होल्डर _" मर्गेज कम्पनी
३
हे त है #५ ८2६६: की
ज्ञस्यासन- 5 5 बरमनता रत
किसी देश की ठ्यापारिक उन्नति व्केलिए अल त
क्र्स
जग हु 5 ड
चेक
'दसरे का भुगतान ये हुन्डी या
नगद के अलावा एक-दूसरे यो कक डी आकार
; ब्' । क्रास है. ८ ही चेक का
पर आदमी की ठीक श्लनाख्त | ड़्यि न्हुफ नहीं देती 0 “ ।
(४ इुंछऋ कक. धुछूच | ब़््ग रे
'हपया तो सिफे //टविंसाब में, जमां-कर-लेती है पर देती नहीं।
उस रपये को-निकालते-के-लिएं आपको अपने नाम से दोबारा/
चेक काटनॉ- पड़ेगा एक आदंधी की काटी हुई चेक एन्डोसमेन्ट/
करके! दूसरे के लाभ: की-जा-सकती-है ।
“बेड में (एकाइन्टः कई-तरह-से-रक्खे-जाते-हैं, कहीं सिंगिल-
“इन्ट्ी-[सिस्टेमं से-रखे-जाते-हैं कहीं डघल-इन्ट्री-सिस्टम से।। डबल-
इन्द्री-मणा ली में.समय तो कुछ अधिक-लगता-है। पर यह सिंगिल-
॥“बेक में लेन-देन के अलावा लोगों का रुपया / भी सुरक्षित
रंदतां-है।-इसके-लिए लोग बेड में अलग-/अज्ञग एकाउन्ट-खोलते-
'हैलैसे सेविंग-बेंस्स-एकाउन्ट, करन्ट-एकाउन्ट,| फिक्सड-डिपा-
/जिट-एकाउन्ट आदि। इस बात-के सबृत के- लिए कि उनका
रुपया बैंक में जमा है, बेंक उनको | एक किताब देती-है जिसे
पास-बुक कहते-हैं | ३६६
अभ्यास--७६
किसी पब्लिक-लिमिटेड-कम्पती को खोलने के-लिए रजिस्ट्रार
के | दफ्तर में मेंमोरेंडम-भाफ़-एशोसियेशन और आर्टिकल्स-
आफ-एसोसियेशन दाखिल / करना-पड़ता-है ओर उसके मंजूर
होने-पर पब्लिक से / उसके शेयर खरीदने। को कहा-जाता-ह |
- कम्पनी खोलने वाज्नों | को प्रोमोट्स और संचाक्कों को डाय-
रेक्टर्स कद्ते-हैं। जितने रुपये४ तक यह अपने शेयरों को बेच-
सकती-है उसे अथराइज्ड-। केपिटल, जितने रुपयों का पब्छिक-'
खरीदती-है उसे सब्घक्राइब्ड-केपिटल | और खरीदे शेयरों का
जितना रुपया वह कम्पनी को दे / चकती है उसे पेड-अप केप़ि-.
टल कहते हैं।
( रंट६ ) |
कम्पनी के प्रास्पेक्ट स, आमद्नो का ज्मा-ख्चे, बैलेंस-शोट '
तथा बोनस आदि | की रकम को देख-फर यह-कहा-जा-सकता-है/ ,
कि लेन-देन के मामलो के कम्पनी को कया द्वालत-। है:। उसको .
फाइनेन्शल कन्डोशन का बंगेर पूरा हाल जाने-हुए रुपया /न -
जमा-करना-चाहिए क्योंकि अक्छर ये कम्पनियोँ टुट जाती-/ हैं,
ओर लिक्षिडेशन में ले-ज्ञी-जाती-हैं | इन कम्पनियों / की आमदनी
पर इनकम-टेक्स, सुपर-टेक्स, और कभी-कभी एक्सेस-/ प्राफिट- ,
टैक्स भी देना-पड़ता-है । '
जान-जीमा सेडिकल-एक्जामिनेशन/ के पश्चोत् किसी इन्श्यो-
रेत कम्पनियों में कत-कर लाइफ-पाल धी / ले सकते हैं उसके लिए
प्रीमियम-देनां पड़ेगा । '. रैपफा
अस्यास--८० '
[ स्टाक-इक्सचें ज सम्बन्धी अभ्यास )
न्यूयाक १६ दिसम्बर । यहाँ के शेयर-मार्केटों में शेयर की। '
बिक्रो की अधि ता के कारण आज ऐसी हल-चल देखने/ में आई
जैसी सन् १९२९ के बाद कभी नहीं दे खी-/गयी-थी । बाजार खुलने
के एक घंटे के अंदर बाइस/ लाख पचात्ष हज़ार शेयर बिक गये
ओर उनकी कीमतें १०/ डालर कम द्ो-गई | इनमें आरडिनरी-
शेयर, प्रिफरेन्स-शेयर, रिडोमेबिज्-/शेयर तवा फोंड्स-शेयर आदि
सभी किस्म के शेयर थे /। डिब्रेंचर-होल्डर तथा शेयर-द्दोल्डर
अपने-अपने डियरेंचरों, शे यर-वारन्ट,/शियर तथा शेयरों के आर ना-
यत्रों को लिए हुए घुप्ते/ पड़ते थे । जो शेय्र-द्ोल्डर नजर आवा
था वद्द बेचता/। द्वी नमर आता था। न वह यह देखता था कि/
शेयर परपीचुअल है या एक्प-डिबत्रीडेन्ट है, उसे तो बध/ बेचने
दी से मतलत्र था | ये लोग शेपर बेचने क्रे-/लिए इतने उत्सुक थे
( रप७ . )
कि उनके चिल्लाहट के कारण बढ़ा | ही हल्ला मचा ओर
काम-करने-पाले क्रो की नाक / में दम-हो-गया । गत अगस्त
तक जो कमरे खाली / पढ़े-रहते-थे उनमें इतनी भीड़ द्दो-गयी-
थी कि / लोगों को पाँव घरने के-लिए जगह मित्नना कठिन द्ो-/
गया था । शेयर बेचने-वाल्ों की उत्सुकता इधलिए थी कि/ प्रत्येक
अपने शेयर का मूल्य घटने के पहले ही उसे / बेच-कर अपनी
दानि दूसरे के भत्थे टालने के-लिये / उत्सुक था।
पाठकों को याद् होगा कि सन् १६२६ में / भी नन््यूयाके की
बाल-सट्वीट में शेयरों में इसी-प्रकार/ की इल्न-चल हुईं थी, जिसके
बाद कि संसार में / आर्थिक संकट की लहर फेल्ल-गई थी और
सभी चीजों । का मूल्य एकाएक गिर-गया-था | इस साल भी
_ बोजार | खुलने के पहले दलालों की भीड़ उसके बाहर खड़ी-हुई-
थी जो कि शेयरों के बिक्री के आडेर के बंडल्न-/ के-बंडल लिए हुए-
थे। बान्वार खुलते ही उसमें ऐसी/ व्यवस्था फैल्-गई कि सेरिटो-
रियम के-लिए सरकार से चिल्लाहठ/ होने लगी |
बहुत तो दिवाल्षा निकाल कर दिवालिया दो-गये/ |. ३००
( २५९ )
४ | १ रह
हर * ४ हा ४
(( 73: / + ८ 6 ३
मप्र
( २८६ )
किस्म-काग्रज्ञात
कबूतियत दुल्तावेंज मुखतारनामा. बयनासा
२, रेहत लामा सरखत किराया नामा जमानत नासा
१०,
११.
१२,
१३.
१७.
१४,
१६.
श्७छ,
इकरार नामा फारखती दिया नामा वसीयत नासा
'द्खल नामा बकालत नामा दृतल्षफ नासा
वारंट गिरफ़्तारी
दृ्रख[स्त इनसालवेन्सी सुलह नामा
साटिफिकेट मेहनताना इजाजत नामा
लोजे साकिन मज्कूर अदम सौजूदगी'
पैरवी सनद् अलमर कूस हक- हृकूक
मसिलकियत सौसूफ. मुवाखिज्ञा. वारिसान
कायम सुकाम बेकासिल नाजायज्ञ बावजूद
शिरकत. सदाखलत मुनदरजे.... मरहूना
गैर-मरहना मनकूला गैेर-सनकूक्ा. सकफूला
इंतकाल बद्-द्यानती जब्रिया/ तकमीता
इंतनास तसदीक द्रतवरदार सुताल्रिकः
इज़राय-डियरी. डिगरीदार सुब्िग मवियून
मोशरिखा.. मिनमुकिर तमत्सुख मुश्राइना
फरीकैत. वाजिवुल् मिनजानिब अहलकार
क्ेफियत तलबाना चल्द. अर्जी दावा
१६
अभ्यास--८१
अदालतों में जो आमतौर-से चालू कागज़ात-हैं उनके आखीर/
में ज्यादातर “नाम” का लफ़ज़ लगा रहता-है जैसे मुख्तारनामा, / '
बयनामा, रेहननामा, किरायानामा, जमानतनासा वगेरा।
इक्रारनामा, दिवानामा, दखलनासा, वकालतनामा भी / ऐसे ही
कागज़ातों के नाम-दै ।
अदालत-सें जब कोई | बात हतफिया बयान-की-जाती-है तो
वह जिस अरजी / मे लिखी-जाती-दहै उसे दल्फ़नामा कहते-हैं।
मुख्तार-नामा | और वकालत-नामा इस बात के सबूत हैं कि मुददई/
या मुद्दालेह ने फलाँ वकील या मुख्तार को अपने मोकदमें / के
लिए मोक़रर किया है।
मकान या किसी चीज़ को / किराये पर लेने से किरायानामा
या सरखत, किसी की जमानत | लेने पर जमानतनासा, किसी बात
की शत-व-इकरार-करने / पर इकरारनामा, किसी जायदाद-पर
।कब्जा-दखल लेने-या देने / पर द्खल-नामा लिखा-जाता-है ।
इस्री-तरह किसी चीज / को कहीं गिरवीं या रेहन-रखने-पर
रेहननामा, किसी चीज़ / को किसी शर्तों या शरायत पर बेचने
था बय करने । का बयनामा, किसी शख्ख को उसकी फ़रमावरदारी
व दूसरी खिद्मतों / क्षे लिए बखुशी किसी चीज़ को बख्स देने से
हिबानामा । और मरते वक्त किसी चीज् को अपने नाते व
रिश्तेदारों / या दूसरे किसी फ़रमाबरदार नौकर में बॉटने से
चसीयतनामा लिखा-जाता- है।
” जमीनदार व किसानों के बीच जिन शर्तों" पर जमीन / ली-या
दी-जाती-दै उसका जिक्र पट्टा कबूलियत में / रहता है।
है भुजर-
डआ और अब /
पहुँची-है और भहाजत /
है क्नि जिससे सराकतर-
श्सके
न अक्षर
१ *६३॥॥७०)
क्र परा-कराले-पर
रबारी एस ॥
णे फी होगी और' ३
चन्द / जरूरी खक्ते के.
"न साहब
सर गैस हाजिर हो-कर अपना
पड भौजा “पूलपुर, परण 7 मेडियाहू निल/
| गीह-व-डाबर: पीर-ब-सवार- ' बायाव / ६ पके
कुधों करी “5 जिमीकार) कि जिस-पर ५. / लोग किन
शिरकत फिसी देपरे के और बिना १२०० मूह [किसी-शर्स / के
ाविज-व-दारिल हें सकफूल-करक १२००) पद सौ,/ रुपया
कि जिसका ञा ००) या होता है फेज बंहिसाइ-
( २६२ )
सूद ॥ |), चौदह आने मेकड़े साहवारी के इस / तफ़्सील से
लिया कि १०६३॥&) वास्ते अदा-करने डिग्री भीखा /<ुबे
-डिग्रीदार के महाजन मोौसूफ के पास छोड़ दिया कि / बह डिग्रि-
यात नम्बरी ५०७ मकू सा १७ जूलाई सन् १८८८ ३० / के नम्बरी
५६६ भू गा ४ अगस्त सन् १ नह नम्बरी / ४४४ ०8
१६ जूलाई सन् १८८८ ३० व नम्बरी ४५४३ / सकू मा १६ जूल
>> अप रण को 2 ओर / बरेली सलकी पेश
डिग्रियात पर लिखा-कर वापस ले-लेवें / और १०६) एक सर
छः रुपया एक आना नकद ले-/ कर अपने खर्च में लाए। अब
कुछ भी जिम्मे मदाज्ञन / के बाकी नहीं। इसलिए यह दस्तावेज
लिख-कर इक़तरार करते / हैं व लिख-देते-हैं कि सूद छमाददी
महाजन सौसूफ / को अदा-करके रसीद उसकी दर्तखतती महाजन
मौसूफ ले-लिया / करेंगे और मीआद पांच वरस में यानी जेठी
पूणंमासी सन् | १३०१ फ़लली को अखिल १२००) रुपया व
जिस कद्र सूद / अदा से बाकी रह-जायगा एक मुश्त अदा व
वेबाक / करके दस्तावेज़ को भरपाई लिखा-कर वापस लेलेंगे
सिदाय / इन दो सूरतों के कोई उजञ्र बाबत वसूली सूद या /
अखिल के काबिल मंजूरी अदालत न होगा अगर सूत
अदा न-दहो तो बाद गरम छमाही के वह्द या वी आम
में जोड़ कर उस-पर 'सूद दर ॥&] / माहवारी के महाजन
मौसूफ को अदा करेंगे ओर अगर दो / छसाही गुज्र जाय और
महाजन को रुपया अदा न दो / तो मद्दाजन को अखितयार होगा
कि बिना गुजरने मीआद भुन्दरजे / दस्तावेज़ के कुत्त रुपया
असिल-मै-सूद नालिश करके हम / लोगों की जात-व-जायदाद
मरहूना-ब-गर-मरहुना व / सनकूला-व-गैर-सनकूज्षा से बसूल-कर
लेवें और मिल्कियत / सकफूला इर-तरह-पर पाक-ब-साफ़ व
दे खलिश / हैं कहीं दूसरी जगह रेहन-या-बय या किसी किस्म /
( २६३. )
से मुन्तकिल नहीं है अगर किसी किस्म का इन्तकाल जाहिर/
होगा तो हम लोग पावन्द् सवाखिज़ा कानून ताजीरात-हिन्द
के/द्ोंगे ओर सद्दाजन मौसूफ को अख्तियार वसूत्न कुल्न-रुपया
असिल-|व-सूद का बिना इन्तज्ञार गुजरने सीआद के होगा
ओर।/सद्ाजन मौसूफ के देन अदा करने तक जायदाद मक-
फूला/की कहीं रेहन-या-चय या किसी किस्म का इन्तकाल/न-
करेंगे अगर करें तो भकूठा व् नाज्ञायज ठहरे/अगर कुल रुपया
असिल-मय-सूद अन्दर सीआद के ही/अदा कर देवें तो
महाजन को वाजिब होगा कि उसको/ लेकर इलाके को फक«
गेहनन्ऋर-दें और दस्तावेज वापस|कर दें और अगर वादा-पर
कुल-रुपया या थोड़ा/ रुपया भी अदा द्वोने से बाक्की रह-जाय
तो महाजन / को जख्तियार होगा कि नालिश नम्बरी करके
छुल-रुपया अपना / हम लोगों की जात व नीलास-जायदाद
मकफूला-व-गेर-/सकफूला व मनकूला-व-्गेर-सनकूला से वसूल-
कर-ले / | इसमें हमको हमारे वारिसान कायम-मुकामान को
कोई उज्ज न/होगा । आराजियाव सीर जो इस दस्तावेज़ में रेहन-
दोती-है / उनके नम्बर इसके नीचे लिख-देते-हैं और यह-भी /
एकरार खास-करते हैं कि बाद गुजर-जाने मीआद के / भी कुल
मुताल्बा वसूल होने तक सूद रुपये का ॥&) / सैकड़े माहवारी
पिना उज्र अदा करेंगे और मनिसबत सूद् के / किसी किस्म का
उज्र न करेंगे इसलिए यह दस्तावेज़ बतौर / रेहन-नामा के लिख
दिया कि वक्त पर काम आधे / व सनद रहे-फक्त । * ६४५७
शी
6 कण हर ०
८,
६.
१०.
११.
११.
१३,
१४.
श्५
२६.
१७.
१८,
१९,
द्०,
( २५६४ )
आप-का-दास, आप-का-आज्ञाकारी, भवदीय, आपका-प्रिय-
मित्र, तुम्हारा-एक-सात्र, आपका-द्वित-चिन्त ऊ, कृपा-आंक्षो,
दशनाभिलापषी ।
तुम्दारा पत्र कल्-शास-की-डाक-से मिल्ला |
. कृपा-पन्न-मिला, आपका-पत्र-मिल्रा, तुम्दारा-पत्र मिला,
, पतन्न-मित्षा, उत्तर-में-निवेद्न-है ।
चहुत-दिनों-से आपरा पत्र नदीं-आया क्या-कारण है ।
, पत्रसिल्ला पढ़कर-हषे-हुआ ।
यहाँ-सब-कुशल-दै-तुम्दारा कुशल-क्षेम-ईैेश्वर-से-चाइता हैँ ।
उत्तर शीघ्रातिशीघ्र भेजिए ।
उत्तर लौटती-डाक-से-मेजिए |
मैंने आपको कई-पतन्न लिखे पर उत्तर-एक-का-भी-न-मित्रा ।
मुझे इस-घात-का-दार्दिक-दुख:-है कि में आपके पन्नों का
यथा-समय उत्तर-न-दे; खका |
थोग्यन्सेवा-को लिखियेगा ।
आपको यह-जञान-कर-प्रसन्नवा-होगी ।
परीक्षा में उत्तीण होने-क्रे-लिए में आपको बधाई देता हूँ ।
आपको यह-सूचना देते-हुए-पम्ुुके कष्ट-हो-रहा है ।
आशा है ऐसा-लिखने-फे-लिए आप-मुम्े-ज्षमा-ऋरंगे ।
मेरे योग्य-सेवा-कार्य-सदेव-लिखते-रदिएगा ।
शेष-मिलने-पर, शेष-फिर-क भी, आज-यहीं-तऊ ।
अँत में आपसे इतना-ही-निमेद्न-है ।
"( रशरह७छ )
नेताओं तथा नगर व प्रान्तों के नास
4. महात्ना बाँधी महात्माजी जवाहरलाल नेहरू
पा : सुभाषचन्द्र बोस
' २, मदनमोहन-मालवीय .. रबीन्द्रनाथ-टेंगोर . राजेन्द्रप्रताद
सरदार वललभ भाई पदेल्
३, अब्दुल गफ़्फार खाँ... पुरुषोत्तमदास टंडन
; आचाय नरेन्द्र देव अबुल कल्लाम आजाद
8. तेज बहादुर सभ्ू चिंतामनी श्रीनिवास शास्त्री
हृदयनाथ कूं नह
४. गोविंद वल्लमभ पंत श्रीकृष्ण राजगोपालाचारय विश्वनाथदास
६. सत्यमूर्ति भूलाभाई देखाई न, थी. खरे. बी. जी. खेर
७, मोहम्द अली जिज्ञा.. शौकतअल्ी भाई परसानन्द
बेरिस्टर सावरकर
२, रायबहाहुर ॒रायसाहब राजा-साहब ,खां-बहादुर डाक्टर
२, माननीय श्री पंडित बाबू मोलाना
३, मिस्टर मिसेज्ञ सेसस सर राइट आनरेबित्
४ शेगाँव वधों इल्लाद्ाबाद कानपुर बनारस
४. कलकत्ता बम्बई सदरास लखनऊ लाहौर
$. देहती अलीगढ़ आगरा देहरादून. नेनीताल
७. अजमेर पटना गया पेशावर. अमृतसर
८, नागपुर बरेली मोगलसरॉय जबलपुर मुरादाबाद
६. संयुक्तप्रांव सध्यप्रांत सेन्ट्रल-इंडिया मध्यप्रदेश पंजाब
१०, ओड़िसा शिमला हैदराबाद मेसूर. करांची
११. सिंघ बंगाल बिद्दार फ्रंटियर-प्राविंस
का ( शेध्ड )
नोट--फिसी सज्जन तथा शहर के नाम आदि को संफेत-लिपि
में न लिखकर नागरी लिपि में इशारे मात्र से लिख लेना
चाहिए पर बहुत प्रचलित नेताओं तथा नगरों के नाम
यथानियम संकेत-लिपि ही में लिखने में सुविधा होंगी ।
इनके अलावा और नये २ विभाग के प्रचलिंत शब्दों
के संकेत स्वयं विद्यार्थरण बनाकर अभ्यास कर
सकते हैं ।
अभ्यास---< ३
१ ;]
कुछ दिन पहले श्री अंजाम दिलाई ने फेंडरेशन के
बाबत / राय-प्रगट-करते-हुए कहा-है कि वर्तमान अन्तरीष्ट्रीय
परिस्थिति / को ध्यान-में-रखते-हुए ब्रिटिश पार्लियामेण्ट हिन्दु-
स्तानियों की / इच्छा फे खिलाफ फेडरेशन को जबरदस्ती नहीं
लाद-सकती । इस-/समय-में भारतीय रजवाड़ों को देश की
भलाई के-लिये / अपने आप फेश्रेशन में शरीक़ होने से
इन्कार-कर-देना / चाहिये क्योंकि अबन्तक कांग्रेस इसका
सवधा विरोध कर-रदी/है । नहीं-ऊद्दा-जा-सकता-कि फरवरी के
प्रथम सप्ताह / में जो महत्वयू्ण बैठक होगी उसमें कांग्रेस
वर्कि ग-कमेटी फैडरेशन/के-सम्बन्ध-में किस नीति को अनुसरण
[।
कक अवसर/पर पंडित-जवाहरलाल-नेहरू, मिसेज सरो-
जनी-नाथडू, भावी राष्ट्रपति / श्री-सुमाषचन्द्र-बोस, बाबू राजेन्द्र-
प्रधाद, सरदार-वल्लभभाई-पटठेल्ल, मौलाना / अबुल-कलाम
आजाद, खॉ-अब्दुल-गफ़्फार खां, आचायें कृपलानी, आचाये /
भरेन्द्र-रेव, रवामी सद्दाजानन्द सररवती, श्री-जय-प्रकाश-नारायण
रादि | वधों में सेठ जमुनालालबनबजाज के निवास-स्थान पर
४ २६६ )
_ » संभवत: / ३ तारीख तक पहुँच-जाँयगे । महात्सा-गान्धी -जी भी
* इस / समय सेगॉव से वर्धा आवेगे। चँँकि इस बैठक का | एक
मुख्य विषय “फेडरेशनः होगा, इससे आशा-की-जाती-है | कि-
' इसमें सद्रास के प्रधान मंत्री श्री राजगोपालाचार्य, माननीय
गोविन्द-/बल्लभ-पन्त, श्री बाबू श्रीकृष्णसिह, डाक्टर न.-बी. खरे,
श्री / बी.-जी.- खेर, श्री विश्वनाथ-दास, मिस्टर मोहनत्ञाल-
सक्सेना, सेठ / ग्रोविन्द-दास आदि मुख्य-पुरूष कांग्रेसी
- काय-कर्ता भी आमंत्रित / किये-जायेंगे। खेद-है कि भिन्न-भिन्न
कारणों से भ्री / मदनमोहन-मालवबीय, श्री सत्यमूर्ति, श्री बाबू
पुरुषोत्तमदास-टरडन , हृदयनाथ-कुंजरू / इसमें भाग स-ले-
सकेंगे | २४५
( २ १
(अ) मिस्टर मोहस्मद-अली जिन्ना के भाषण का प्रत्युत्तर देते
हुए / एक कांग्रेसी अम्रुख नेता ने लिखा था कि राष्ट्र--
निर्माण / के लिये आजकल भारतवर्ष को महात्माजी और
पं० जवाहरलाल-चादिये / न कि भाई परमानन्द, वैरिस्टर-
सावरकर, मोहम्मद्-अली-जिन्ना और / शौकत-अली |
(ब) ठुख-का-विषय-हे-कि नुच्छ मतसेद के | फारण राइट-
आतनरेबिल सर तेज्रवहाहुर-सप्र, डाक्टर सी-बाइ. -
चिन्तासमणि/, और श्रीनिवास-शास्त्री ऐसे सननशील और
कुशल राजनीतिज्ञ कांग्रेस के । बाहर हैं |
(स) वम्बई और यू.-पी.की सरकारों ने प्रस्ताव/-पास-किया-है
कि भविष्य में किसी को रायबद्दादुर/, राजासखाहव,
रायपाइव, खान-बहादुर, खान-साहेच, सर इत्यादि
के सितावब / न दिये जाय । १०३
६ हे०र )
एक ही वर्ण से उच्चारण किये जाने वाले
शब्दों के विभिन्न संकेत
१, स्ली शत्रु , २. अनुसार नज़र
३, बारबार बराबर वारंबार
४. भूषण भाषण आभूषण भीषण
५. उपेक्षा पत्त रखा अपेक्षा प्रतीक्षा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष
६. बालक. बालिका ७, कोष्वाल फोतवाली
८. उपयुक्त उपयु क्त उपरोक्त उपरान्त
६. द्वाकमि हुक्म हकीस १०. प्रांत... पूणतः
११, अधिक घोका पक्का १२. छात्र क्षेत्र
१६. जर्मीदार जिम्मेदार ज़मानतदार
१४. अकसर कसर कसीर कसूर केसर
१५, इश्तद्ार इजहार असेसर १६. स्टेस्प स्तम्भ
१७, विरोध विरुद्ध व्यर्थ
१८, परचात्् पश्चिम पश्चात्ताप पाश्चात्य
१६. साद्ठित्य सहायता. खहद्दित सादित्यक
२८. मुल्क मुल्लाकावा साक्षिक सलिका
२१. इसकार नीोकर नौकरी सरर॒ चागरिक
२२. शस्त्र शा सशर्त शास्त्राथ
२३. घज्माय. वियाज्ञ विज््६ चाज्जिव गेरचाजिब
२ए तत्पर ठातपर्य २५. निरबल आनरेबिल
२६. स्कूल शकल साइकिल. २७ शहादत सहयोग
शेप,
युग. योग्य अयोग्य योग्यता. उपयोग
्ल्द
( दइे०२ )
बोट->इसके अलावा जब ऐमे ही :शब्द आवे;जिसके पढ़ने में
नी
+
री
अस्लुविधा द्ो तो विद्यार्थियों को चाहिये किचे एक दी
वर्णा' से उच्चारण होने चाले-शब्दों के अलग-अलग
संकेतों को बनाकर नोटकर लें और फिर उन्हीं संकेतों
द्वारा उन शब्दों को लिखा करें। ऐसा करने से पढ़ने
की कठिनाई दूर हो जाएगी ।
अभ्यास---८४
(अ) गत वर्ष गर्मी की छुट्टियों में मैंने भारतव्यापी भ्रमण
*(ब)
किया था और बहुत से मख्य-मख्य स्थानों को -देखा |
उनमें / से कुछ ये हैं :--बस्बई, करांची, अजमेर. अलीगढ़,
लाध्ौर,/ अम्ृतघर, नैनीताल, शिमला, पेशावर, देहरादून,
दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, मगलसराय, वनारस,/
पटना, कलकत्ता, जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद, मैसूर,
पूना, लखनऊ, कानपुर, बरेली ,/ म॒रादाबाद, अजंटा और
अलमोरा की गुफायें/और मद्रास ।
इस समय / ११ भान््तो में से बम्बई-प्रांत, संयुक्त-प्रांत/
मध्यप्रांत, मद्रास प्रांत, बिद्दार-प्रांत, उड़ीसा प्रान्तन और
फ्रान्टियर-प्राविन्सेस / यानी सीमाप्रांत में कांग्रेसी-संत्रि-
मण्डल्ञ बने हैं. परंतु कांग्रेस का / बहुसत न होने-से बाकी
के चार प्रांत यानी वगाल, / पंजाव, आसाम और सिंध
में गेर-कांग्रेसी मंत्रिमंडल द्वी कायम / हुये हैं ११२
को
है
ड्
( ३०३ 3)
अश्यास--- ८ ५
(ञ) पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अस्थायी सरकार के उप-
- अध्यक्ष तथा / प्रधान-संत्री की हैसियत से जो भाषण त्राडकारट-
किया है/ उसमें देश-विदेश दी अनेक समस्याओं का उल्लेख-किया
गया /-है और-बतलाया-गया-है कि राष्ट्रीयःसरकार की उनके
सम्बन्ध / में क््या-नीति-होगी । नेहरू जी अन्तरोष्ट्रीय विषयों के
अ्रकाण्ड/ पंडित हैं और नई सरकार के भन्तगंत परराष्ट्र-संत्री भी/
हैं । अत: यह उचितन्ही-था कि अन्तष्ट्रीय संगठन तथा / विश्व-
शान्ति के सम्बन्ध में वे रपष्टरूप से स्वाधीन भारत/ का दृष्टिकोण
प्रकट-कर दें। उन्होंने घोषित-किया-है कि स्वतंत्र / राष्ट्र की
हैसियत से हम अन्तरोष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेंगे,/ हम अपनी
स्वतंत्र नीति ग्रहण करेंगे, किसी दूसरे राष्ट्र के/ हाथ छी कठपुत॒ल्ली
'होकर कास नहीं करेंगे । उन्होंने यह भी / कहा है कि दस गुट-
बन्दी और दलबन्दी से अपने/ को अलग-रक्खेंगे--उस दलबौदी
से जिसके कारण अतीत में/ विश्व युद्ध हुए-हैं ओर ज्ो-पहले-से
भी-बड़े/ पैमाने पर पुनः हमें विनाश की ओर-ले-जा-सकती-/ है।
शान्ति स्वतन्त्रवा दोनों अविभाज्य-हैं। किखी एक देश के/ लोगों
को स्वतन्त्रता से वंचित रखने से दूसरे देश की/ स्वाधीनता खतरे
में-पढ़-सकती-है और फ़िर संघघ एवं/ युद्ध खड़ा हो-सकत्ता-है |
अत: रवतंत्र भारत सभी देशों/ को स्वाधीन बनाने-का-पक्त-लेगा |
नेहरू जी ने स्पष्ट/ शब्दों में घोषित-किया-है कि हम परतंत्र देशों
तथा/ उपनिवेशों की स्वाधीनता में विशेष-रूप-से-द्लचस्पी लेंगे।
सभी/ जातियों छी जीवन में उन्नति करने के लिए समान सुवि-
घायें / प्राप्त-होनी-चाहिये | जावीय श्रेष्ठठा के सिद्धान्त को भारत
कभी / स्वीकार -नहीं-कर-सकता चाहे जिस रूप में वह लागू /
फिया-ज्ञावा-हो । २६३
( ३०४ )
(ब)“भारतवषे में अस्थाई-राष्ट्रीय-सर का र यानरो इन्ट्रीमें-गवर्न
मेंट की स्थापना-होते /-ही और वेदेशिक विभाग नेध्रू नी जैसे
स्सान्य नेता के। द्वाथों मे आते-ही इसारे देश ने ससार के
अन्य/ देशों से स्वतंत्र सम्बन्ध स्थापित करते की-ओर-ध्यांन
दिया/-है । अब यह-आवश्यक-नहीं-है कि भारत भी ससार / फे
किसी देश से ठीक वैसा हीं सम्बन्ध-रक््खे जेसा/ कि उसके ओर
ब्रिटेन के बीच हो | भारत न केवल/ ब्रिटेन और रूस से वल्िकि
ऐसे सभी देशों से मित्रता/-पूण सम्बन्ध-चाहता-है हो- संसार' में
युद्ध और रक्तपात / नहीं बल्कि शांति और संतोष का साम्राज्य
स्थापित दोते-दखना /-चाहते
आज विश्वशांति के लिये यूरोप तथा अमेरिका के /-राजः
नीतिन्न जिस दृष्टिकोण से प्रभावित-हैं उससें तथा नेहरू/ जी के
ष्टिकोण मे महान् अन्तर-है। नेहरू जी ने/ बता-दिया-है “कि
स्वाधीन भारत यूरोप तथा अमेरिका के / वतमान शाजनोीतविज्ञों
की कूंटनीति सहन नहीं करेगा, वह साम्र/ज्यशाही का/ घोर विरोध'
रेगा ओर सच्चे अर्थों मे विश्वशांति स्थापित-करने/-के-लिए. दूसरे
राष्ट्री से सिल-कर-कास-करने-के/-तलिए तैयार-होगा । वह तिठेन;:
अमेरिका और रूस तीनो से/ घनिष्ठता और मेत्री भाव बढ़ाएगा
लेकिन एशियाई देशों स---विशेषक्र / पास-पड़ोस के देशों से
घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित-करेगा। दमारा / ख्यात्न-है-कि श्रव-
राष्ट्रीय मामलों के सम्बन्ध में १०/ नेहरू ने भारत की ओर से
जो दृष्टिकोण प्रकट -किया/ है वह राष्ट्रवादी भारत का लोकमत
प्रकट-करता-है और/ यद्द विश्वास-उत्पन्न-करवा है कि जिस समय
भारत इस/(दृष्टिकोण को लेकर शांति सम्मेलन अथवां झनन््य
किसी अन्तर्राष्ट्रीय, सम्मेलन/ में भाग लेगा तो दूसरे देशों के राज्ञ-
के पर/ उसका काफी प्रभाव पड़ेगा और वे .मौजूदा रवैया,
डू कर/ सच्ची शांति स्थापित करने की दिशा में अग्रसर द्वोंगे।
है" 3०]
0 का
( हेड )
' अभ्यास-- ८६
5 5 पक कट ।'
(अं) “नेता जींओसुभापचन्द्रन््बोस ने आजाद-हिन्द-फौज़ य//
इन्डियेन नेशनल आस का निर्माण करके आजादी की जो तीत्र/
लदरा| लहस.दी है ब्रहकेबंत भारतवर्ष के लिए ही / नहीं बल्कि
संसार: की संमर्त/विजित-देशों की प्रजा में/ नवीनतम स्फूर्ति और
जाग पैंदाकर-रही-दै ।-इसकी जितनी / भी-बढ़ाई-डी-जाय वह-
कर्े-है: । 'यहू नई क्रोन्ति / भारत के अन्दर बच्चों-बच्चों के मुँह
परजये-दिन्दं/ के नारों से गूँज-रही-है।
*' इसके लिए आपने भारतवष / के बाइर यानी रूस, जेनी,
जापान, इटली, चीन, श्याम, मलाया/ और बम के अन्दर कुछ
चुने हुये देशभत्तों को लेकर/ सेनाये भी तैयार-की-हैं। जिनमें से
मुख्यतः नवयुवकों की/ सेनाओं के नाम सुभाष-ब्रिगेड, जवाहर-
ब्रिगेड तथा नवयुवतियों की / सेनाओं के नाम मोसी की रानी
रेजिमेन्ट आदि रखा-गया-/ है । इसके संचाज़्क क्रमश: केप्टने
शाहनवाज खाँ, केप्टन सहगल तथा / महिलाओं की सेना का
प्रधान सेना-नेन्नी कुमारी लक्ष्मी हैं /। इन सब के कमाण्डर हमारे
पृज्य "नेता जीः हैं। ट
, अभी/ द्वाल मे बटिश सरकार ने इन लोगों के खिल्लाफ मुक-
दसा/- भी-चलाया-था । मगर इन लोगों की अद्टट देशभक्ति के।
कारण उसे इन लोगों को बेदाग-छोड्ना-पड़ा। आज. दिन/ दमारी
अखिल-भारतीय-कांग्रेस-कमेटी -भी आजाद-हिन्द-फीज को/ भारत-
बच्चन के अन्द्र वद्दी स्थान-देना-चाहती-है जो / कि इस समय
अंग्रेज़ी फोन का है। हक
| # अतः नेता जी/ का यद्द सराहने य काय भारतवष तथा संसार:
52 5 कन+ पे 7 इलवा: छायज्चउ् से लिश्वाक्ायशा | हाथ शिफ्ट | ४०७०
# ३०/7९० ४ श्री-सुभाष ब्रोस- के-सस्व॒त्घ में 'इघर कुल समय?
से प्रौर अटकलबाजियों हां: वामार :इतनोगर मे ही+,
उठा-दै कि शायद दी कोई दिल ज़ाता:है।जुबे।उनके (चर में कोई,
न कोई नया समाचार प्रकाशित नः। होताहो। “उनको सत्य /के
समाचार सही-हैं-या-नहीं /'यह प्रश्न “तो आब 2पीछिंग्पडटयाहै!
और जितनी / बातें नई कहो-जाती:हं “उनसे ही: निएं
निकलता है /'कि नेता जी तो जीवित-हैं:ही #अ्रेब-तो वे! फहा:हैं:
और कब प्रकट होंगे यही आजकल की चेचोओं।/ का मुंरुय विषय:
बन-गया-है। कोई उन्हें अपने देश | में हो, कोई चीनें में व्औोरः
कोई सीमाप्रान्त से आगे / कबीलों के क्षेत्र में-बतलाता-है। इस,
प्रकार की अफवाहें/ फैलाना नेता जी के रहस्यपूर्ण, साइंसी झौरः
निर्भीक व्यक्तित्व के। अनुरूप द्वी-हं ओर यदि इनसे हम किसी
परिणाम-पर-7हुँचते-हैं तो बह केवल इतना-द्वी-है-कि ओ|-सुभाष-
बोस के जीवित द्वोने में अब सन्देह ही गुनाइश-+ नहीं-हैं. और
उनके स्वदेश में प्रकट होने का समये/ अब्र निकट:आ-गया-है।?:
. मेता जी का भारत से-| जाना उतना अलौकिक नहीं:रह-जाता
जितना कि अब उनका ; प्रत्यक्ष होना रहस्यपूर्ण है। श्र
अभ्यास--<८७ $.. ७
राष्ट्रभाषा हिन्दी का स्वरूप वही-होगा जिसमें समस्त-भारत-
चपष | के निवासी सुगमवा से अपने विचारों को व्यक्त-कर-सकेंगे/।
जो-लोग यह-कह्ते-हैं-कि राष्ट्रभाषा से संस्कृत शब्दों। का अर्धिक
_. से अधिक बहिष्धार किया-जाना-चाहिये वे कदाचित् /व्यह बात
भूल-जाते-हैं कि वर्तमान समय की अधिकांश / प्रान्तीयं: भाषाएँ,
“सरकेत से ही-निकलो-है ओर इसलिए स्वभावतः / उनमें:“संस्कृत'
के शब्द-बहुलता से-पाये- जाते हैं। ऐपतो / अवस्था में अधिकोंश
डे
आ
- भारतवासियों के लिये अम्तप्रोन्तीय भाषा के रूप / से ऐसी दी
/ भाषा अधिक गञ्राह्य और सुविधाजनक होथी जिसमें / संस्कृत के
शब्द काफी दो । दमें दुख के साथ कहदना/-पड़ता-है कि ज्ञो लोग
'बनावटी हिन्दुस्तानी भाषा का निर्माण / करना-चाहते-हैं और इस
ब्ात-पर-जोर-देते-हैं / कि उसमें बोल्चाज् के सरत्न शब्दों का-ही
प्रयोग हो/ वे साम्प्रदायिकता के आधार पर राष्ट्र-्भाषा की समस्या
३०६ रना-चाहते-है। जेसे राजनीतिक क्षेत्र में अन्य अल्पसंख्यकों
को/(प्रीछे डकेल कर केवल सुर्ल्िम-लीग को महत्त्व दिया-गया-/
है और उसके साथ समझौता करने का प्रयत्न किया-जाता/-है
उसी वरह् भाषा के क्षेत्र में केवल उद् वालों / के साथ सममौता
रने की आवश्यकता-सममी-जाती-है । अन्य / प्रान्तीय भाषा-
भाषियों की सुविधा-असुविधा का उतना ख्यात्र-नहीं/-किया-ज्ञाता
जितना कि उदू वालों का | मुसल्लमान कैपी राष्ट्र भाषा/ स्वीकार
कर-सकेंगें इश्ती पर हिन्दुस्तानी के सब हिमायतोी अपना / ध्यान
केन्द्रित-करते-हैं, वे यह देखने का प्रयास नहीं/-करते-कि वे जैसी
कृत्रिम भाषा बनाने का प्रयत्न-कर/-रहे-है, उसको सममने
लिखने और बोलने में अनेक प्रान्तों/ की जनता को बड़ी-कठिनाई
होगी | उसे ग्रहण करना अधिकांश/ मारतवासियों को स्वी झार-न -
होगा | अत: स्राम्प्रदायिकवा के आधार पर / राष्ट्र-भाषा के लिये
कृत्रिम हिन्दुस्तानी भाषा का विकास करने / का प्रयत्त त्याग-कर
हिन्दी को ही अन्तप्रोन्तीय काम के / लिए' अग्र सर-करना-चाहिए
ओर, उसे द्वो राष्ट्रभाषा के रूप / में स्वीकार-करना-चाहिए ।
हिन्दुस्तानी न तो कोई-माषा-दे/ और न उसका कोई साहित्य
है | गूढ़ विषयों को व्यक्त / करने की ज्ञमता हिन्दुस्तानी में न
आ-सकती। विज्ञान, अर्थेशास्ध / तथा राजनीति आदि विषयों पर
जो प्रन्थ लिखे-जायँंगे उनमें / संस्कृत शब्दों का द्वी आश्रय-लेना-
पड़ेगा | अतः हिन्दुस्तानी के / विकास:का प्रयत्व करना शक्ति का
कम +ा 5
सा ज्करिना-दोगां | विससे . रोष, की-समस्ती किमी: हल:
। दो लिंपियों'कीो / सौखनों अतिवां पं करनी बेचा पुर
अनावश्यक रूप से एके भारी/बोमे लादन-होगए। इससे बची की
शक्ति और समय का/दय होगा किसी एक अल्यसरुपक: सल्मदार्थ
के तुष्टी-करण के / लिये उसकी अपैज्ञनिकोलिपिलिकर देश सिर
के लोगों पर/ क्ञांदना कंभी इचित-नहीं हा जा सकती । राष्ट्र
इृष्टिकोश से/ लिपि की संमस्याँ को हल करने की आगे यह है:
कि राष्ट्र-भाषा के लिए केवश पह्ी एक लिंपिरवीकार। कीट न
जो चैज्ञानिकता तथा सुगभत्ता की हृषिट' से संचेश्रेष्ठ /दी:। “वे
कीमती न
यह प्रमाणित हो चुका दे कि देवनागरी' अन्ये / संभी लिपिया से
अच्छी दे अतः राष्ट्रभाषा के लिए उसी /का सैत्रेन्न' प्रचार
होना चाहिये । ०७४३
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की २०० अतियाँ भी बिः श्रकेंगी निकाली
हस्ताक्षर
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उपरोक्त नम्बर को लिखते हुए जो पाठक अपना
नाम और पूरा पता लिख भेजेंगे उनका नाम: अपनेश्यहां।
के रजिस्टर में अंकित कर लिया जायगा ओर/ फिरिहस
सांकेतिक-लिपि की कठिनाइयों के' सम्बन्ध: में: उसे
कोई भी पत्र आने पर उत्तर शीघ्र ही. (दिया: जायगो/
उत्तर के लिए उनकों केबल डेढ़ आने को; टिकट: मेंजना
होगा । जो सब्जन घर पर आंकर पूछना या समंेना
चाहेंगे उनको बराबर बिना क्िंसी प्रकारं का शुल्क लिए!
समझाया या बताया जायगाजे.. «६४४७७ ४5६
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ऋषिकुटी, जीरो रोड,
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मुदक--फेशवमप्रसांद खत्नी, ४
* दी इलाहाबाई/ब्लाक वक््से लिमिदेड, जीरो रोड,
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